17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सहयोग व समन्वय से समाधान

स्वास्थ्य क्षेत्र में ढांचागत विकास करने होंगे. सरकारी अस्पतालों में गुणात्मक बदलाव लाने होंगे और स्वास्थ्य कर्मियों को जनसंख्या के अनुसार समानुपातिक रूप से बढ़ाना होगा.

कोरोना महामारी निश्चय ही सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है. आज विज्ञान विकसित है, स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ी हैं, तब भी इस महामारी ने हमारे आत्मविश्वास को धराशायी कर दिया. मैं स्वयं और मेरे पुत्र भी इस बीमारी से संक्रमित हुए. परिवार के कई सदस्य असमय काल के गाल में समा गये. इस विभीषिका को डेढ़ वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं, इस दौरान जो प्राणों को क्षति हुई है, उसका अनुमान हम मृतकों के आंकड़ों से नहीं लगा सकते. किसी अपने के चले जाने का दर्द अंतहीन है.

विशेषज्ञों की मानें तो वायरस का फैलाव शुरुआत में ज्यादा नहीं दिखता. यह बहुत खामोशी से आगे बढ़ता है और बाद में फट पड़ता है. दूसरी लहर ने व्यवस्थागत कमियों को उजागर किया है. अगर हम एक लोक-कल्याणकारी राज्य होने का दावा करते हैं, तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमें अमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे. सबसे पहले बात केंद्र सरकार की बहुचर्चित आयुष्मान भारत योजना की. इसकी शुरुआत सितंबर, 2018 में रांची से ही हुई थी.

इसके तहत गरीब परिवारों के हर सदस्य का आयुष्मान कार्ड बनता है, जिसमें अस्पताल में भर्ती होने पर पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त होता है. योजना के लाभार्थी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर तय किये जाते हैं, जिसके लिए 2011 में हुई सामाजिक और आर्थिक जनगणना को मानक बनाया गया है. इस योजना का सालाना बजट तकरीबन 6400 करोड़ रुपये है. आंकड़ों के मुताबिक योजना के अंतर्गत चार लाख लोगों का इलाज किया गया है.

कुल 10 लाख कोरोना टेस्ट हुए और कुल 12 करोड़ रुपये खर्च किये गये. भारत सरकार के मुताबिक कोरोना संक्रमितों में 80-90 फीसदी मरीज घरों में ही ठीक हो जाते हैं. केवल 10-20 फीसदी मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है. अगर यह मान लिया जाए कि 10 फीसदी लोगों को अस्पताल जाने की जरूरत हुई, तो लगभग 24 लाख लोग अस्पताल गये और इनमें से मात्र चार लाख लोगों को इस योजना का लाभ मिला. इस क्रम में कुल 12 करोड़ का खर्च हुआ. योजना के 6400 करोड़ के सालाना बजट के सामने यह खर्च कितना नाकाफी है, कहने की आवश्यकता नहीं है.

स्पष्ट है कि इस प्रकार की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से देश की स्वास्थ्य समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है. हमें इसकी आत्मसमीक्षा करनी होगी और सुधार के उपाय अपनाने होंगे. स्वास्थ्य क्षेत्र में ढांचागत विकास करने होंगे. सरकारी अस्पतालों में गुणात्मक बदलाव लाने होंगे और स्वास्थ्य कर्मियों को जनसंख्या के अनुसार समानुपातिक रूप से बढ़ाना होगा. वर्तमान में देश में प्रति 10,189 लोगों के लिए एक चिकित्सक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियत किये गये मापदंड 1:1000 के आधार पर देश में 6,00,000 चिकित्सकों की कमी है. अतः मात्र संख्या का आधार ही लिया जाए, तो स्वास्थ्य व्यवस्था नाकाफी है.

बीमारी केवल मृत्यु अथवा शारीरिक कठिनाइयों का कारण ही नहीं बनती है, बल्कि इसका परिवार की आय पर भी असर पड़ता है. बिना मुक्कमल तैयारी के मात्र चार घंटों की पूर्व सूचना पर लगाये गये लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को धराशायी कर दिया. इसका सबसे निर्मम प्रभाव गरीब जनता पर हुआ है. करीब एक करोड़ प्रवासी मजदूरों को वापस लौटना पड़ा. इस दौरान करीब 300 मजदूरों की दुर्घटना में मौत हो गयी.

बेरोजगारी जो पहले ही 45 वर्षों में उच्चतम स्तर पर थी, पिछले साल मार्च से अक्तूबर के बीच 8.7 प्रतिशत से बढ़ कर 23.5 प्रतिशत हो गयी. सबसे गरीब 23 करोड़ लोगों की आय 375 रुपये की न्यूनतम मजदूरी से भी कम हो गयी. कोरोना से लड़ने के लिए केंद्र ने जो रणनीति अपनायी, वह हर स्तर पर नाकाफी साबित हुई. कोरोना से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार वैक्सीन भी केंद्र सरकार की अदूरदर्शिता का शिकार हुआ. भारत अपने महान वैज्ञानिकों के बल पर वैक्सीन की खोज में अग्रणी देशों में शामिल था.

विश्व की सबसे बड़ी वैक्सीन उत्पादक कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के होने के बावजूद हम ससमय अपने लोगों को टीका नहीं दे पा रहे हैं, पर कठिन समय में भी कुछेक राज्य सरकारों ने सीमित साधनों के बीच उदाहरण प्रस्तुत किया है. महामारी की शुरुआत में झारखंड के पास मात्र 250 ऑक्सीजन बेड उपलब्ध थे, जिसे मात्र एक महीने में बढ़ा कर 10,000 कर दिया गया. अमृत वाहिनी एवं चैटबोर्ड संजीवनी वाहन जैसे नित नये नवाचारों से राज्य सरकार इस आपदा से लड़ने के उपाय ढूंढ़ रही है. सबको मुफ्त वैक्सीन देकर समाज के अंतिम व्यक्ति तक लाभांश पहुंचाने के अपने संकल्प को इस सरकार ने पूरा किया है. आज झारखंड देशभर में ऑक्सीजन प्रदान करने वाला सबसे बड़ा राज्य हो गया है.

केरल सरकार ने भी जिस सजगता से लोगों को बचाने का प्रयास किया है, वह प्रशंसा योग्य है. केरल को वैक्सीन की 73,38,806 डोज मिली थी, जिससे उसने लोगों को 74,26,164 डोज दी. इस प्रकार 87,358 डोज उपलब्ध डोज से ज्यादा दी. वैक्सीन की प्रत्येक शीशी में वैक्सीन कंपनी द्वारा 0.55 से 0.6 मिली तक की अतिरिक्त दवा का उपयोग कर केरल द्वारा यह कमाल किया गया. यह साबित करता है कि कठिन समय में जनता और प्रशासन की सूझ-बूझ से सफलता के नये आयाम कायम किये जा सकते हैं.

कोरोना योद्धाओं की भी बात की जानी चाहिए, जिन्होंने प्राणों की परवाह किये बिना अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. चिकित्सक, पारा मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, श्मशानों के कर्मचारी, पुलिस बल, प्रशासनिक पदाधिकारी, सैकड़ों स्वयंसेवी संस्था के लोग इस संकट की घड़ी में तत्परता से जुटे रहे, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जानी चाहिए. कृतज्ञता उन वैज्ञानिकों के प्रति भी व्यक्त की जानी चाहिए जिन्होंने रिकॉर्ड समय में हमें वैक्सीन दिया है और दिन-रात वायरस के बदलते स्वरूप से बचने के प्रभावी उपाय ढूंढ़ रहे हैं.

महामारी की चुनौतियों से पार पाने के लिए आम लोगों की भागीदारी भी आवश्यक है. बहुतों ने अपनों को खोया है. दूसरी लहर में युवाओं की जानें गयी हैं. हमें कठिनाई में पड़े लोगों का दामन थामना होगा. सामूहिक प्रयास से हम इस कठिन दौर से निकल सकेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें