14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पाकिस्तान की फजीहत

अफगान मीडिया में भी पाकिस्तान की घृणात्मक छवि दिखती है. वहां के लोग बहुत हद तक आंतकवाद के लिए पाकिस्तान को दोषी मानते हैं.

जिस तरीके से चीन ने हालिया आतंकी पर पाकिस्तान को हिदायत दी है, उससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान के बुरे दिन शुरू होनेवाले हैं. चीन चौथी महत्वपूर्ण बाहरी शक्ति है, जो अफगानिस्तान को रास्ते पर लाने की व्यूह रचना करेगी. इससे पहले ब्रिटेन, रूस और अमेरिका अपने हाथ आजमा चुके हैं और पूरी तरह से असफल रहे हैं. इसका एक विशेष कारण यह रहा है कि तीनों शक्तियों का हस्तक्षेप सैनिक था, न कि विकासवादी. चीन का समीकरण बिल्कुल अलग होगा.

उसकी भूमिका आर्थिक तंत्र पर टिकी होगी. पाकिस्तान का मकसद जेहादी था और रहेगा. चीन और पाकिस्तान के बीच तल्खी इसी बात को लेकर होगी, जिसकी शुरुआत हो चुकी है. अंतराष्ट्रीय संगठन भी पाकिस्तान विरोधी हैं. बाहरी शक्तियां अगर तालिबान पर अंकुश रखना चाहेंगी, तो तालिबान भी बहुत उछल-कूद नहीं मचा सकता.

तालिबान का दावा है कि अफगानिस्तान के 85 फीसदी हिस्से पर उसका कब्जा हो गया है, जबकि अफगान सरकार इससे इंकार करती है. करीब 407 जिलों में से 200 के करीब जिले पूरी तरह से तालिबान के कब्जे में हैं. तालिबान की जीत को पाकिस्तान विजय के रूप में देखा जा रहा है. ऐसा देखने का कारण भी है. तालिबान को पोषित और संचालित करने का काम पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर हुआ है.

साल 2020 का ‘दोहा शांति समझौता’ भी पाकिस्तान के कारण से सफल हुआ. विशेषज्ञ इस समझौते को समझौता नहीं, बल्कि एक डील मानते हैं, जिसमें अमेरिका द्वारा एकतरफा समर्पण किया गया और तालिबान की हर जिद्द मानी गयी. चीन की बढ़ती गिरफ्त से पाकिस्तान का वजूद और मजबूत बनता गया. तुर्की, ईरान और रूस भी अमेरिकी वापसी से खुश हैं, यानी हर तरफ से पाकिस्तानी दांव सार्थक होता दिख रहा है, लेकिन सच कुछ और ही है. भू-राजनीतिक संघर्ष को गंभीरता से देखा जाए, तो बदतर स्थिति पाकिस्तान की दिख रही है.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा 2600 किलोमीटर लंबी है. इस क्षेत्र पर पूरी तरह आतंकियों और क्षेत्रीय समूहों का कब्जा है. पाकिस्तान की तरफ का क्षेत्र तहरीके-तालिबान पाकिस्तान के प्रभाव में है. पिछले कुछ वर्षों में यह समूह 32 से ज्यादा घातक आंतकी हमले पाकिस्तान के भीतर कर चुका है, जिनमें हजारों पाकिस्तानी मारे जा चुके हैं. अभी लाखों तालिबानी पाकिस्तान में शरणार्थी के रूप में पलायन कर रहे हैं.

उसमें तहरीक के लड़ाके भी हैं. समय और परिस्थिति के अनुरूप यह समूह पाकिस्तान को तबाह करने की मुहिम छेड़ेगा. पाकिस्तान और अफगानिस्तान का इतिहास भी बहुत पेचीदा रहा है. दोनो देशों के बीच की सीमा, जिसे ‘डूरंड लाइन‘ कहा जाता है, उसे अफगानिस्तान की किसी हुकूमत ने मान्यता नहीं दी है, तालिबान ने भी नहीं. साल 1893 में तय इस लाइन का दर्द आज भी अफगानिस्तान में है. सौ साल बाद 1993 में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्तूनों ने आंदोलन शुरू किया था कि पाकिस्तान का वृहत क्षेत्र ‘पख्तूनख्वा’ के अफगानिस्तान में विलय की इजाजत दी जाए.

यह क्षेत्र पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 60 प्रतिशत हिस्सा है. अगर यह क्षेत्र पाकिस्तान से अलग हो गया, तो पाकिस्तान का करीब दो तिहाई हिस्सा हाथ से निकल जायेगा. साठ और सत्तर के दशक में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात थे. शीत युद्ध के समीकरण ने पाकिस्तान को दोहरे आघात से बचा लिया था. जिस समय पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में एक अलग देश बन गया था, उसी दौरान पश्तूनिस्तान के भी अलग होने की स्थिति पैदा हो गयी थी.

इससे बचने के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस्लामिक कार्ड खेलना शुरू किया था. वहीं से अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथ की शुरूआत हुई, लेकिन अफगान ‘डूरंड लाइन‘ पर एकमत हैं. अफगान मीडिया में भी पाकिस्तान के विरूद्ध घृणात्मक छवि दिखती है. वहां के लोग बहुत हद तक आंतकवाद और खून-खराबे के लिए पाकिस्तान को दोषी मानते हैं. तालिबान केवल पश्तून पहचान के साथ अफगानिस्तान को नियंत्रित नहीं कर सकता.

शिया बहुल क्षेत्र भी हैं, जिनकी सीमा ईरान से मिलती है. ताजिक और अन्य जातीय समुदाय तालिबान के साथ पाकिस्तान विरोधी भी हैं. अफगान सेना और तालिबान में बुनियादी अंतर यह है कि प्रशिक्षित सेना के पास हवाई हमले की सुविधा है. अमेरिका द्वारा उसे तैयार भी किया गया है. गृहयुद्ध की स्थिति में सेना तालिबान को गंभीर चोट पंहुचा सकती है. शहरी इलाके अभी भी सेना के कब्जे में हैं. उत्तर की सीमा पर तालिबान की पहुंच कमजोर है.

रूस और ईरान पाकिस्तान समर्थित तालिबान के पक्ष में नहीं हैं. चीन और रूस भी इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित हैं. अफगानिस्तान की शांति दोनों के लिए अहम है, लेकिन पाकिस्तान के समीकरण से गृहयुद्ध की आशंका ज्यादा है. अफगान-पाक सीमा पर नशीले पदार्थों का अड्डा है. पूरे इलाके में भयंकर गरीबी और बेरोजगारी है.

अफगानिस्तान में आर्थिक संसाधन का मुख्य आधार अमेरिकी अनुदान था, जो अब संभव नहीं है. पाकिस्तान की स्थिति भी बदतर है. चीन केवल अपने व्यापार और सामरिक समीकरण के कारण उससे जुड़ा हुआ है. मध्य एशिया के भीतर अगर अफगानिस्तान के कारण अशांति फैलती है, तो रूस का तेवर उग्र होगा. स्वाभाविक है कि दहशतगर्दी से शांति और विकास की बात नहीं बन सकती. पाकिस्तान अफगानिस्तान को भारत मुक्त बनाने की कोशिश में पाकिस्तान ने अपने को बारूद की ढेर पर ला खड़ा किया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें