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बिहार को मिले विशेष राज्य का दर्जा

अविकसित राज्यों को गरीबी के कलंक से दूर करने के लिए विशेष राज्य के दर्जे और विशेष अनुदान के फर्क को समझना होगा.

हाल ही में नीति आयोग द्वारा देश का पहला बहुआयामी गरीबी सूचकांक जारी किया गया है. गरीब राज्यों की सूची में शामिल राज्यों ने पुन: विशेष राज्य के दर्जे की मांग शुरू कर दी है. नेशनल इंडेक्स में बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम आदि राज्य शामिल हैं. जिलास्तरीय गरीबी का स्वास्थ्य, शिक्षा व जीवन स्तर से जुड़े 12 सूचकांकों के आधार पर आकलन किया गया है.

पिछले सप्ताह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी ने प्रधानमंत्री से मिलकर इस आशय की मांग दोहरायी है. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन ने ‘आंध्र प्रदेश रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट-2014’ पर बहस के दौरान पांच वर्ष के लिए विशेष दर्जे की बात कही थी. ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार राज्यों की विधानसभाओं में विशेष राज्य के दर्जे के िलए प्रस्ताव पारित हो चुके हैं.

नीति आयोग की रिपोर्ट को लेकर बिहार फिर सुर्खियों में है. खराब रैंकिंग पर कई प्रकार के राजनीतिक मायने निकलने स्वाभाविक हैं और विपक्ष को आरोप का अवसर भी मिलता है. यद्यपि आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार द्वारा पिछले 15 वर्षों में हुई निरतंर प्रगति का उल्लेख कर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया है. लेकिन समग्र विकास को लेकर बहस की शुरुआत हो गयी है.

बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र यादव ने आपत्ति की है कि पिछले आंकड़ों के हवाले से तैयार की गयी रपट वर्तमान सरकार की उपलब्धियों को नकार रही है. वर्ष 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में आयी एनडीए गठबंधन की सरकार में ‘ब्रांड बिहार’ के लिए नित-नयी योजनाएं अस्तित्व में आने लगीं. साक्षरता दर 70 प्रतिशत के पार पहुंचाकर शिक्षा क्षेत्र में बड़ा बदलाव हुआ है.

वर्ष 2021-22 में बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 7,57,026 करोड़ होने का अनुमान है, यह 2019-20 के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक है. नीति आयोग की रिपोर्ट में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार की 39 प्रतिशत आबादी बिजली की पहुंच से बाहर थी, जबकि वर्तमान आंकड़ों के मुताबिक मात्र दो प्रतिशत ही आबादी बिजली से दूर है.

पिछले दिनों उप-मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने वित्तमंत्री द्वारा बजट पूर्व बैठक में हिस्सा लेते हुए बिहार के साथ किये गये भेद-भाव को स्वीकारा. उनके अनुसार 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर वित्तीय वर्ष 2015-16 से राज्य को अधिक राशि मिल रही थी. केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी बढ़ने का सिलसिला 2018-19 तक जारी रहा. उस समय तक इस मद में राज्य को 73 हजार करोड़ रुपये तक मिले, उसके बाद गिरावट हुई.

राज्य की राजस्व प्राप्तियों में केंद्र की भागीदारी आधी होती है. कम राशि मिलने का असर वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट घाटे पर हुआ. एक कारण यह भी है कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में अंशदान बढ़ गया है. तारकिशोर प्रसाद स्वीकार करते हैं कि 2015-16 के पहले तक केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य को 10,25, 35 प्रतिशत तक हिस्सा देना होता था, अब 40 प्रतिशत हिस्सा देना पड़ रहा है. इससे राजस्व पर बोझ बढ़ा है. कई मानकों पर बिहार पिछड़ा है, क्योंकि उसे केंद्र से जरूरतों के मुताबिक राशि नहीं मिल पा रही है.

उप-मुख्यमंत्री ने विशेष राज्य के दर्जे की पटकथा स्वयं ही वित्तमंत्री के सम्मुख अपने ज्ञापन में स्वीकार कर ली. इसे आधार मानकर ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव ने योजना उपाध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा है कि बिहार विशेष राज्य की सभी अर्हताओं को पूरा करता है. उनकी शिकायत है कि सार्वजनिक उपक्रम इकाइयों की बिहार में स्थापना करने की पहल में कमी रही है, जो औद्योगिक विकास और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दे सके.

आरजेडी शासनकाल के कुप्रबंधन ने बिहार की जीडीपी को शून्य से नीचे ला दिया था. सामाजिक अशांति, आर्थिक दुर्दशा, ढांचागत विकास में शून्यता, भ्रष्टाचार के कुप्रभाव को समाप्त कर नयी व्यवस्था का निर्माण करना पड़ा. अविकसित राज्यों को गरीबी के कलंक से दूर करने के लिए विशेष राज्य के दर्जे और विशेष अनुदान के फर्क को समझना होगा.

हालांकि, संविधान में विशेष दर्जे का प्रावधान नहीं है, लेकिन नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल द्वारा पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों, कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों, प्रति व्यक्ति आय व गैर कर राजस्व कमी वाले राज्यों तथा आदिवासी बहुल इलाके समेत अंतरराष्ट्रीय सीमा को आधार बनाकर विशेष राज्य के दर्जा का प्रावधान किया गया था.

इसी आधार पर अरुणाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, नागालैंड, मणिपुर समेत 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है. गाडगिल फार्मूले के तहत दर्जा मिलने पर केंद्र सरकार से मिलने वाली रकम में 90 प्रतिशत ग्रांट का होगा, जबकि 10 प्रतिशत कर्ज के रूप में मिलेगा. समान्य राज्यों को केंद्र से दी जाने वाली रकम का महज 30 प्रतिशत ही अनुदान है.

वर्ष 1969 में केंद्रीय सहायता का फार्मूला बनाते समय पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फार्मूला के तहत असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर तीन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया. इसके बाद पूर्वोत्तर के बाकी पांच राज्यों के साथ कई अन्य राज्यों को भी यह दर्जा प्राप्त हुआ. इससे एक्साइज और कस्टम ड्यूटी, इनकम टैक्स एवं कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी राहत प्राप्त हो जाती है.

केंद्रीय बजट को योजित व्यय का 30 प्रतिशत विशेष दर्जे वाले राज्यों के विकास पर खर्च होता है. साथ ही इन राज्यों को मिलनेवाले 90 प्रतिशत अनुदान और 10 प्रतिशत कर्ज पर भी ब्याज नहीं होता. सामान्य राज्य को 70 प्रतिशत अनुदान और 30 प्रतिशत कर्ज मिलता है. ऐसे में प्रश्न है कि गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे मजबूत बुनियादी ढांचे वाले राज्यों को छोड़कर कोई कॉरपोरेट असम ओडिशा, बिहार जैसे कमजोर ढांचे वाले राज्यों में क्यों निवेश करना चाहेगा?

वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के लिए विशेष राज्य की मांग उठी. बड़े विकसित शहर, शिक्षा संस्थान, औद्योगिक नगर, बिहार की सभी खनिज संपदा झारखंड के हिस्से आ गयी. मनमोहन सरकार में गठित रघुराम राजन कमेटी द्वारा कहा गया था कि केंद्र सरकार से अपेक्षा है कि वह बिहार को विशेष अनुदान के अलावा विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करे.

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