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ऑनलाइन गेमिंग का भी नियमन हो

डिजिटल तकनीक जीवन के हर क्षेत्र में गहरी पैठ बना चुकी है. इसलिए लत को रोक पाना नियमन और कराधान भर से ही संभव नहीं है.

किप्टोकरेंसी पर कानूनी पहल की चर्चा के बीच ऑनलाइन गेमिंग के नियमन और कराधान पर बहस हो रही है. कुछ दिन पहले राज्यसभा में भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने यह मसला उठाया था और उपराष्ट्रपति-सह-सभापति एम वेंकैया नायडू ने भी उनकी चिंता से सहमति जताते हुए सरकार को इसका संज्ञान लेने को कहा था. इस संदर्भ में सबसे पहले यह रेखांकित करना जरूरी है कि नियमन और कराधान दो अलग-अलग क्षेत्र हैं और उन्हें एक साथ रखकर नहीं देखा जाना चाहिए.

जिस प्रकार से व्यापक डिजिटल नियमन का होना आवश्यक है, उसी तरह ऑनलाइन गेमिंग का नियमन भी किया जाना चाहिए. विभिन्न ऑनलाइन गतिविधियों और सेवाओं की तरह इसका भी विस्तार हो रहा है.

जहां तक ऐसे खेलों का सवाल है, जिनमें भागीदारी करने के लिए न तो खेलनेवाले को कोई राशि देनी पड़ती है और न ही ऐसे गेमिंग पोर्टल से कोई पुरस्कार हासिल होता है, वहां कराधान का मामला आसान नहीं है. यदि उस खेल में अश्लीलता है, उससे हिंसा या किसी समाज विरोधी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है या देश के कानूनों का उल्लंघन किया जाता है, तो इनकी रोकथाम के लिए पहले से ही वैधानिक प्रावधान हैं.

इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में ठोस प्रयास होने चाहिए. खेल के ऐसे चिंताजनक आयामों को कराधान से नियंत्रित या प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है. ऑनलाइन गेमिंग भले ही अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है, लेकिन वीडियो गेमिंग तो बड़े शहरी क्षेत्रों में लगभग तीन दशक से खेली जाती रही है और धीरे-धीरे उसका विस्तार छोटे शहरों और कस्बों तक होता गया. उसके आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को लेकर भी लंबे समय से चर्चा होती रही है. इस पृष्ठभूमि में ऑनलाइन गेमिंग पर नियंत्रण करना मुश्किल काम नहीं हैं.

ऑनलाइन गेमिंग की लत से निपटने का मसला एक गंभीर विषय है और इसे काबू में करना आसान नहीं है क्योंकि इंटरनेट पर तमाम गतिविधियों और उसके इस्तेमाल को लेकर भी ऐसी चिंताएं हैं. डिजिटल तकनीक हमारे जीवन के हर क्षेत्र में गहरे तक पैठ बना चुकी है. इसलिए लत को रोक पाना नियमन कर देने और कर लगा देने भर से ही संभव नहीं है.

इसके लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए ताकि लोग संयमित ढंग से ऑनलाइन खेलों में भागीदारी करें और उसकी लत की चपेट में न आयें. हमने पहले पबजी, ब्लू व्हेल जैसे बेहद हिंसक खेलों के असर को देखा है. ऐसे कई खेलों पर पाबंदी लगानी पड़ी. लेकिन समूचे गेमिंग के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता है. इंटरनेट की गतिविधियों पर बड़े पैमाने पर पाबंदी लगा पाना संभव भी नहीं है.

एक खेल को रोका जायेगा या उस पर बड़ा कर लगाया जायेगा, तो कोई और गेमिंग पोर्टल या एप आ जायेगा और यह सिलसिला चलता रहेगा. नियमन के स्तर पर यह हो सकता है कि मौजूदा कानूनों को ठीक से लागू किया जाये और उनमें जरूरत के मुताबिक संशोधन किये जायें. इस क्रम में यह भी उल्लिखित करना जरूरी है कि सिक्किम, गोवा, नागालैंड, मेघालय आदि कुछ राज्यों में ऑनलाइन खेलों पर नियंत्रण रखने के कानून हैं. इसी तरह लॉटरी से जुड़े वैधानिक प्रावधान भी हैं. उनके अनुभवों के आधार पर संशोधन करने या नये कानून बनाने का काम किया जा सकता है.

ऑनलाइन खेलों को आम तौर पर दो श्रेणियों में बांटा जाता है- एक, जिनमें कौशल की जरूरत होती है और दूसरे, जिनमें संयोग से फैसला होता है, जैसे- रमी, पोकर आदि. यदि हम इनके लिए एक या दो तरह के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाते हैं, तो उसका निर्धारण करना आसान नहीं है क्योंकि दोनों तरह के खेलों में लोग पैसा लगाते हैं और जीतने की आशा करते हैं.

इन खेलों के कारोबार में लगी कंपनियों को खेलनेवाले के पंजीकरण शुल्क से कमाई होती है. उस कमाई पर आयकर समेत अन्य कराधान व्यवस्थाएं पहले से हैं. उसमें यह देखा जाना चाहिए कि कंपनियां ठीक से अपना टैक्स भरें. ऐसा न करने पर दंडित करने के कानून भी अस्तित्व में हैं.

संयोग के आधार पर जीते जानेवाले खेलों से खिलाड़ी को मिलनेवाली राशि पर भी टैक्स लगाया जाता है. ऐसा नहीं है कि उसे पूरी राशि मिलती है. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी को लॉटरी से एक लाख रुपये मिलते हैं, तो उसे एक ठीक-ठाक हिस्सा कर के रूप में चुकाना पड़ता है. इन व्यवस्थाओं का दायरा बढ़ाकर ऑनलाइन खेलों पर लागू किया जा सकता है. डिजिटल लेन-देन होने से भुगतान को छिपाना अब बेहद मुश्किल है.

दो माह पहले ऐसी खबरें आयी थीं कि सरकार इन खेलों की श्रेणी के आधार पर 18 और 28 फीसदी जीएसटी लगाने पर विचार कर रही है. उम्मीद है कि जीएसटी काउंसिल इस संबध में जल्दी ही किसी ठोस फैसले पर पहुंचेगी. गेमिंग के कारोबारी मौजूदा 18 फीसदी दर को जारी रखने की पैरोकारी कर रहे हैं.

जो भी फैसला हो, बहुत सोच-विचार कर लिया जाना चाहिए. गेमिंग ही नहीं, समूचे डिजिटल कारोबार और उसके कराधान की ठीक से समीक्षा जरूरी है. कंपनियां कानूनी खामियों का भी फायदा उठाती हैं, जिसका नकारात्मक असर कर संग्रहण पर होता है. इसे रोका जाना चाहिए. गेमिंग की लत निश्चित ही चिंताजनक है और इस संबंध में समाजशास्त्रियों और मनोचिकित्सकों की राय पर गौर किया जाना चाहिए.

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