इन दिनों चारों तरफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का बोलबाला है. इसे संक्षेप में एआइ कहा जाता है और अपने इसी नाम से यह अधिकांश लाेगों के बीच जाना जाता है. बहुत से लोग कह रहे हैं कि इससे दुनिया की तसवीर बदल जायेगी. इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि 2030 तक यह तकनीक मनुष्य के दिमाग की बराबरी कर लेगी और एक तरह से सभ्यता का अंत नजदीक है. क्या होगा, यह तो समय ही बतायेगा. अमेरिका में जब चैट जीपीटी से एक किशोर ने बार-बार सवाल पूछे, तो उसने नाराज होकर कहा कि तुम्हें कुछ नहीं आता है. बेहतर है कि तुम मर जाओ. जब इसकी शिकायत की गयी, तो चैट जीपीटी के कर्ता-धर्ताओं ने माफी मांग ली. आप सोचिए भला, कि क्या कोई अध्यापक अपने छात्र से ऐसी बात कह सकता है. यदि वह ऐसा कहेगा, तो उसका क्या होगा. इसी तरह अभी एक व्यक्ति ने एआइ कोड असिस्टेंट से जब कई प्रश्न पूछे, तो उसे असिस्टेंट से डांट पड़ी कि अपना काम खुद करना सीखो. असिस्टेंट ने यह भी कहा कि मैं तुम्हारे लिए कोड नहीं लिख सकता. क्योंकि इस तरह तो मैं तुम्हारा काम कर दूंगा. फिर तुम क्या करोगे. उस व्यक्ति ने असिस्टेंट से जुड़े फोरम पर शिकायत दर्ज करायी और कहा कि समझ में नहीं आ रहा कि यह एआइ असिस्टेंट आखिर है किसलिए. मैंने एक घंटे की कोडिंग की थी और इसने किसी भी तरह की सहायता करने से मना कर दिया.
चैट जीपीटी से तो लोग आजकल कालेजों का टाइम टेबल भी बनाने लगे हैं. पढ़ाने की तैयारी भी करते हैं. जो समझ में नहीं आता, उसे चैट जीपीटी से पूछ लेते हैं. कई बार यह भी वैसी ही गलतियां करता है, जैसा कि गूगल मैप. हालांकि बहुत से युवाओं का मानना है कि एआइ उनकी बहुत सहायता भी करता रहा है. खास तौर से संदेश लिखने में. पर कभी-कभी इसका उल्टा भी हो जाता है. एक लड़की ने कहा कि उसके मित्र ने डेटिंग एप पर उसे एक ऐसा संदेश भेजा जिसमें बहुत अच्छी बातें लिखी थीं. यहां तक कि भाषा से संबंधित कोई गलती भी नहीं की थी उसने. बल्कि दिन पर दिन उसके संदेश बहुत अच्छे होते चले गये. उनमें उसकी केयर और प्यार की भावना छिपी हुई थी. मैं उसकी मानवीयता से बहुत प्रभावित हुई. वह बार-बार मिलने की जिद कर रहा था. मैं भी उससे मिलना चाहती थी. पर जब मैं मिलने गयी, तो उसके व्यवहार को बहुत अलग पाया. उसकी बातचीत की भाषा भी वैसी नहीं थी जैसा वह लिखता था. मुझे लगता है, उसने जरूर उन संदेशों को लिखने में एआइ की मदद ली होगी. वह वास्तव में वैसा था ही नहीं जैसा मैंने उन संदेशों को पढ़कर उसे समझा था. एक और लड़के ने बताया था कि एक बार वह अपनी पार्टनर से एक मुश्किल बात कर रहा था. इसमें एआइ ने उसकी मदद की कि ठीक से संदेश कैसे लिखें. एक लड़की ने कहा कि जब से मैंने एआइ की मदद से संदेश लिखना शुरू किया है, उनमें कोई गलती नहीं होती.
आजकल लोग प्रेम करने के लिए मशीन से मदद ले रहे हैं, यानी कि उनके पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए जो भाषा होनी चाहिए, जो भावनाएं होनी चाहिए, वह कहीं गायब हो गयी हैं. कुछ दिन पहले खबर आयी थी कि लड़के-लड़कियां डेटिंग पर जब जाएं, तो क्या-क्या बातें करें, कैसे समझें कि जिससे मिल रहे हैं वह उनसे प्रभावित है कि नहीं और उसे प्रभावित कैसे करें, इसके लिए बाकायदा कक्षाओं में जा रहे हैं और भारी-भरकम फीस चुका रहे हैं. एक समय में प्रेम पत्रों का बहुत महत्व रहा है. जिससे प्रेम किया, उससे विवाह न भी हो सका तो भी उन पत्रों को बहुत से लोग जीवनभर संभालकर रखते थे. हिंदी फिल्मों ने भी प्रेम के महत्व को बहुत बढ़ाया था. मगर अब मेल, व्हाटसएप, इंस्टा आदि के जमाने में चिट्ठियों का ही समय खत्म हो गया, तो पत्र आयें कहां से. पर एक चीज कहीं खत्म होती है, तो किसी दूसरी तरह से शुरू हो जाती है. कुछ वर्ष पहले इटली के बारे में पढ़ा था कि वहां प्रेम पत्र लिखना सिखाने के लिए एक स्कूल खोला गया है. आश्चर्य होता है कि पुराने जमाने में जब न प्रेम पत्र लिखना सिखाने के लिए कोई स्कूल था, न एआइ ही थी, तब लोग कैसे प्रेम पत्र लिखते थे. किस तरह से उन्हें तरह-तरह के इत्रों और खुशबू से सराबोर करते थे. यहां तक कि किसी लड़की को प्रेम पत्र पहुंचाने के लिए उसकी सबसे अच्छी सहेली को अपनी बहन बना लेते थे और लड़कियां लड़के के दोस्त को भाई.
प्रेम में जो कोमलता होती है, चाहत होती है, एक-दूसरे की हर तरह से मदद करने की इच्छा होती है, जब तक वह नहीं है, तब तक कोई मशीन या कोई अध्यापक उसे समझा भी नहीं सकता. हमारे मध्यवर्गीय युवाओं की यह मुसीबत भी है कि अरसे से वे कहते रहे हैं कि ‘करियर के आगे नो टाइम फॉर रिलेशनशिप्स.’ इसलिए वह भाषा भी गायब हो गयी है, जिससे प्रेम की मासूमियत की अभिव्यक्ति होती थी. बहुत से एआइ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भावनात्मक रिश्तों में इसका अधिक इस्तेमाल अच्छा नहीं है. न ही यह उन भावनाओं को सही तरह से व्यक्त कर सकता है जो आपके मन में किसी के लिए होती हैं.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)