मनोज श्रीवास्तव
स्वतंत्र टिप्पणीकार
गायों के संरक्षण के लिए एकमात्र उपाय यह है कि पहले हमें पुनः गौ-धन की उपयोगिता स्थापित करनी होगी. वर्तमान परिदृश्य में हम गौ-धन संरक्षण के लिए पुर्णतः गौशाला पर निर्भर हो गये हैं. गौशाला एक तरह से गायों के लिए सहारा भर है, यदि उसे हम पूर्णकालिक गौ-संरक्षण व्यवस्था की तरह अपनायेंगे, तो गौ-वंश रक्षा का हमारा उद्देश्य शायद फलीभूत होगा. गौशाला की व्यवस्था बेसहारा गायों के लिए बहुत पहले से उपलब्ध रही है, लेकिन पूर्णकालिक व्यवस्था के लिए जरूरी है कि किसान पुनः अपने घरों में गौ-पालन प्रारंभ करें.
यांत्रिक खेती ने बैलों को खेतों से बाहर कर दिया है, इस कारण किसान के घरों में गाय की उपयोगिता नहीं रही. साथ ही देशी गाय की दूध उत्पादन क्षमता कम होने से किसान को उसका रख-रखाव महंगा पड़ने लगा है. खासकर चरनोई की भूमि खत्म होना भी एक कारण है, जिसकी वजह से किसानों ने गाय की जगह दूध के लिए भैंस को अपना लिया है.
एक समय था, जब गांवों में किसानों के घरों में गायें होती थीं और कस्बों के घरों में भी गौ-पालन को महत्व दिया जाता था. शहरीकरण ने धीरे-धीरे कस्बों के घरों से गाय को दूर किया और अब यांत्रिक खेती ने गाय को किसान से भी दूर कर दिया है. कई सालों से यह स्थिति बनी हुई है कि गांव के किसान खुद अपने गौ-वंश को गौशाला में छोड़ कर चले जाते हैं.
गौशालाओं में यह हाल है कि जगह न होने और अत्यधिक गायों की उपलब्धता के कारण उनका रख-रखाव कठिन हो गया है, जिससे गायों में बीमारियां होने का भय रहता है. सीमित तंगहाल जगह और उस पर गायों की अधिकता से गौशालाओं में गायों की मृत्यु दर भी बढ़ रही है.
यदि वास्तव में गौ-वंश की सुरक्षा करनी है, तो कुछ ऐसे उपायों पर विचार किया जाना चाहिए, जिससे कि किसान पुनः गौ-पालन की ओर उन्मुख हो. इसके लिए गौ-पालक किसानों को प्रति माह गाय के लिए कुछ अनुदान दिया जाये और यदि कोई किसान यांत्रिक खेती की जगह बैलों पर निर्भर रहता है, तो ऐसे किसानों को गौशाला की निगरानी और माध्यम से अनुदान या फ्री खाद-बीज प्रदान कराये जाये.
एक और महत्वपूर्ण सुझाव है यदि सरकार किसानों से सीधे उच्च दर पर गाय का दूध खरीदे और उसे कुछ कम कीमत पर बाजार में उपलब्ध कराये, तो हो सकता है कि हमारे किसान पुनः अपने घरों में गौ-पालन प्रारंभ कर दें. गाय के दूध के उपयोग का प्रचार-प्रसार इसमें बहुत सहायक होगा तथा किसानों को भी गाय के दूध से एक नया आय स्रोत दिखने लगेगा, जो खासकर छोटे किसानों को खेती से भी जोड़े रखेगा और गांवों से पलायन भी रुकेगा.