महिला भिखारियों को छत मुहैया कराने की बिहार सरकार की नयी योजना राज्य में एक नये सामाजिक बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. इस बदलाव का लाभ न केवल बिहार की धरती को मिलेगा, बल्कि दूसरे राज्यों में भी भिक्षाटन से जुड़े लोगों को इसके फायदे मिलेंगे. देश के महानगरों में भीख मांग रहे लोगों में बिहार के लोग भी मिल जायें, तो आश्चर्य की बात नहीं. बिहार को हिकारत की जिस नजर से प्रदेश के बाहर लोग देखते रहे हैं, उसके लिए भिक्षाटन की प्रवृत्ति भी जिम्मेवार है.
कोलकाता, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में भीख मांगते लोग अगर हिंदी में बातें करते हुए सुन लिये जायें, तो वे हों चाहे कहीं के, मोटे तौर पर मान लिया जाता है कि वे जरूर बिहार के ही होंगे. पर, अब चूंकि बिहार सरकार ने इस स्थिति को बदलने का मन बना लिया है, निश्चित तौर पर बिहार के लोगों को इसका सामाजिक लाभ मिलेगा ही. पर, इस दिशा में राज्य सरकार को आगे चल कर अपने प्रयास के दायरे को और व्यापक बनाना होगा. अभी तो राज्य सरकार महिला भिक्षुकों को रात गुजारने के लिए छत और रोजगार के अवसर के लिए ट्रेनिंग मुहैया कराने की सोच रही है.
आगे चल कर इसे तमाम भिखारियों की जिंदगी पटरी पर लाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास करना होगा. इस प्रयास के तहत महिला भिखारियों के साथ पुरुष भिक्षुकों को भी बदलने की कोशिश करनी होगी. उन्हें स्वनिर्भर होने के गुर सिखाने होंगे.
इतना ही नहीं, उनकी जिंदगी पटरी पर आये, इसके लिए शुरुआती दौर में जरूरी साधन-संसाधन भी उपलब्ध कराने के मामले में सरकार को उदारता दिखानी होगी. इसी देश में कई ऐसे इलाके भी हैं, जहां के लोग भिक्षाटन या तो करते ही नहीं या काफी कम संख्या में दिखते हैं. बिहारी जमात को इन्हें उदाहरण के तौर पर अपने सामने रखना होगा. वैसे, रात गुजारने के लिए माथे पर छत और रोजी-रोटी के लिए हाथ को नये हुनर से लैस कराने की मांग राजधानी पटना की महिला भिखारियों ने नहीं की थी, बल्कि सरकार ने स्वयं इस दिशा में पहल की है. इससे स्पष्ट है कि प्रशासन की मंशा तो ठीक है ही. वह भिक्षाटन बंद कराने की दिशा में गंभीरता से सोचने लगा है. उम्मीद है कि इस पहल से बिहार का समाज भिखारियों से मुक्त होगा. कोई दूसरे की दया का मुहताज नहीं होगा.