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मौके का फायदा उठाने की प्रवृत्ति

होली का हिंदी पट्टी के समाज में खास महत्व है. हर कोई इस दिन अपने गांव-घर में रहना चाहता है. लोगों की इस छोटी सी चाहत का फायदा उठा कर लूट-खसोट करनेवालों की कमी नहीं है. टैक्सी-टेंपो वाले मनमाना किराया वसूल रहे हैं. ट्रेनों में जगह नहीं है. इक्का-दुक्का स्पेशल ट्रेनें चलायी जा रही हैं, […]

होली का हिंदी पट्टी के समाज में खास महत्व है. हर कोई इस दिन अपने गांव-घर में रहना चाहता है. लोगों की इस छोटी सी चाहत का फायदा उठा कर लूट-खसोट करनेवालों की कमी नहीं है. टैक्सी-टेंपो वाले मनमाना किराया वसूल रहे हैं. ट्रेनों में जगह नहीं है. इक्का-दुक्का स्पेशल ट्रेनें चलायी जा रही हैं, जिनके बारे में यात्रियों को जानकारी नहीं है. होली अपने परिवार के संग मनाने की इच्छा रखनेवाले पूरी तरह मौके का फायदा उठानेवालों के भरोसे हैं.

प्रशासनिक अधिकारियों को इस बात की पूरी जानकारी रहती है, पर उनका खामोश रहना अपनी जिम्मेवारियों से मुंह मोड़ने वाली बात है. एक खबर के मुताबिक, हवाई जहाज से दिल्ली-पटना की यात्र करनेवालों को एक टिकट के लिए 18 हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. यह इस बात की नजीर है कि अभिजात्य वर्ग कोई भी कीमत देकर अपने लिए इंतजाम कर लेने या करवा लेने की प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है. जिनके पास पैसे हैं, वे मुंहमांगा कीमत देकर यात्र कर सकते हैं, लेकिन सीमित आय या कम आयवालों को जरूरी सुविधाएं मिलें, यह तय करने की जिम्मेवारी किसकी है.

होली में बड़ी संख्या में पंजाब, हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों में रहनेवाले मजदूर भी लौटते हैं. घर लौटने के दौरान उनके साथ ऐसे हालात पेश होते हैं कि वे लुटे-पिटे पहुंचते हैं. ट्रेनों में उनके साथ बुरा सलूक होता है. फिर जब वे अपने गृह राज्य के स्टेशनों पर पहुंचते हैं, तो उनके साथ और भी बुरा सलूक होना शुरू होता है. ज्यादातर लोगों की मंशा इन हैरान-परेशान मजदूरों से और उगाही कर लेने की होती है. ऐसे में प्रशासन की भूमिका अहम हो जाती है. ऐसे मौकों की पहचान करके इस तरह की तैयारियां करनी चाहिए कि पर्व-त्योहार के मौके पर घर पहुंचनेवालों को कोई परेशानी नहीं हो.

मौके का लाभ उठा कर लोगों को परेशान करनेवालों के खिलाफ अगर कुछ मामलों में भी सख्त कार्रवाई हो, तो ऐसा करनेवालों का हौसला टूटेगा. एक संदेश ऐसे लोगों की बीच जाने भर से ही लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है. इस कवायद के लिए कोई अतिरिक्त फौज-फाटे की भी जरूरत नहीं है. बस, लोगों को राहत देने की थोड़ी सी इच्छा शक्ति और एक योजना हो, तो वर्तमान व्यवस्था में ही चीजें ठीक हो सकती हैं.

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