21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आज के बजट से आम अपेक्षाएं

पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक आज जब केंद्र सरकार संसद में बजट पेश करेगी, तो ऐसा पहली बार होगा कि यह फरवरी के अंत के बजाय उसके आरंभ में पेश होगा. ऐसा निर्णय इसलिए लिया गया, ताकि जब 1 अप्रैल को नया वित्तीय वर्ष आरंभ हो, तो निधियों की उपलब्धता में कोई विलंब […]

पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
आज जब केंद्र सरकार संसद में बजट पेश करेगी, तो ऐसा पहली बार होगा कि यह फरवरी के अंत के बजाय उसके आरंभ में पेश होगा. ऐसा निर्णय इसलिए लिया गया, ताकि जब 1 अप्रैल को नया वित्तीय वर्ष आरंभ हो, तो निधियों की उपलब्धता में कोई विलंब न हो.
बजट के इस नये वक्त ने चुनावी वजहों से एक विवाद को जन्म दे दिया, क्योंकि यूपी तथा पंजाब समेत पांच राज्यों में कुछ ही दिनों बाद मतदान की शुरुआत होनी है. चूंकि बजट में ऐसे प्रावधान हो सकते हैं, जो मतदाताओं की पसंद प्रभावित कर सकें, तो क्या यह बेहतर न होता कि उसे 11 मार्च तक टाल दिया जाता, जैसा 2012 में तब किया जा चुका है, जब इन्हीं पांच राज्यों में चुनाव हो रहे थे? निर्वाचन आयोग ने इस शर्त के साथ बजट पेश करने की अनुमति दे दी है कि उसमें खासकर इन राज्यों के लिए कोई प्रस्ताव नहीं होना चाहिए.
मेरे मत से यह एक अनगढ़ सा समझौता है. यदि उसमें इन पांच राज्यों के लिए कुछ लोकलुभावन होने के बजाय पूरे राष्ट्र के लिए ही वैसा हो, फिर भी वह इन राज्यों के मतदाताओं को भी प्रभावित तो करेगा. दूसरी ओर, यह दलील भी अपनी जगह है कि बजट एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसे किसी स्थानीय चुनाव का बंधक नहीं बनाया जाना चाहिए, क्योंकि पूरे भारत में सालभर कोई न कोई चुनाव तो चलता ही रहता है. ऐसे में केवल यही आशा की जा सकती है कि ‘राष्ट्रीय’ प्रस्ताव की आड़ लेकर केंद्र सरकार बजट में कोई जोड़-तोड़ नहीं करेगी.
बजट में आखिर होना क्या चाहिए? पहले तो इसमें वैसे करोड़ों लोगों के लिए कुछ राहत होनी चाहिए, जिन्होंने नोटबंदी की वजह से पीड़ाएं झेली हैं, जो खास तौर पर असंगठित क्षेत्रों के निर्धनों, किसानों, उद्यमियों, व्यापारियों तथा मध्यवर्ग के लिए अधिक कष्टकारक रहीं.
दूसरे, इस नये बजट के केंद्र में कृषि होनी चाहिए. हमारे किसान लगातार दो वर्षों से अनावृष्टि के शिकार रहे हैं और पिछले साल कृषि क्षेत्र में दो फीसदी से भी कम की बढ़ोतरी हुई है. अरसे से किसान बड़ी तादाद में आत्महत्याएं करते आ रहे हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी के 2014 में किये अपने चुनावी वादे से भाजपा मुकर चुकी है. पिछले बजट में सरकार ने यह कहा था कि वह 2022 तक कृषि आय दोगुनी करेगी. दो टूक कहा जाये, तो इसका कोई मतलब नहीं होता और यह एक सिर्फ बहुत अच्छा जुमला है. राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के अनुसार, एक मध्यस्तरीय किसान की औसत वार्षिक आय 20,000 रुपये से कम है. यदि यह रकम दोगुनी कर भी दी जाये, तो यह बढ़ कर 40,000 रुपये सालाना होगी, जो प्रतिमाह महज 3,000 रुपये के आसपास बैठेगी. यदि इससे मुद्रास्फीति को घटा दें, तो यह और भी नीचे चली जायेगी.वर्तमान में, अपनी तादाद के आधे किसान प्रति व्यक्ति 47,000 रुपये के कर्ज में डूबे हुए हैं.
जैसा पिछले बजट में उनके साथ हुआ, उनकी वर्तमान ऋणग्रस्तता तथा बैंकों के डूबे ऋणों की पृष्ठभूमि में किसानों को केवल और अधिक कर्ज मुहैया करने से भी कोई उद्देश्य नहीं सधता. जरूरत तो इसकी है कि कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिए बेहतर बीज तथा उर्वरक, प्रशिक्षण एवं प्रसार कार्य, भंडारण और शीत भंडारण, सिंचाई, परिवहन, शोध एवं विकास के लिए पर्याप्त ऊंचे आवंटन किये जायें. दुर्भाग्य से, कृषि पर पिछले वर्ष का आवंटन 2005 में किये गये प्रावधान से भी कमतर था. इसे हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि कृषि में एक प्रतिशत की वृद्धि जीडीपी में दो प्रतिशत की समग्र बढ़ोतरी ले आती है.
तीसरे, बजट को रोजगारों के सृजन पर ज्यादा कुछ करना चाहिए. 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने दो करोड़ रोजगार के सृजन का वादा किया था, किंतु उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि निर्यात तथा विनिर्माण जैसे अहम क्षेत्रों में रोजगार के मौके वस्तुतः घटे ही हैं. चौथे, बजट को कारोबारी सुगमता काफी अधिक बढ़ाने के लिए ठोस उपाय करने चाहिए. इसके लिए कर-ढांचे में तार्किकता एवं सरलता, कारोबारी प्रस्तावों की स्वीकृत प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता तथा तेजी, निवेश को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन, बैंकिंग सेक्टर में सुधार और उद्यमशीलता के लिए ज्यादा दोस्ताना माहौल की जरूरत है.
अंततः, नीति के एक साधन के रूप में बजट को संतुलित और समान क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहन प्रदान करनेवाला होना चाहिए. देश में बिहार, पश्चिम बंगाल या ओडिशा जैसे बड़े इलाके हैं, जो अतीत की विरासत के शिकार होकर आज भी अल्पविकसित बने हुए हैं. वर्तमान में सभी सार्वजनिक तथा निजी निवेशों का 90 प्रतिशत पांच-छह अधिक विकसित राज्यों के पाले चला जाता है. मौजूदा एनडीए सरकार के लिए वह वक्त आ गया है कि वह ‘अच्छे दिन’ के अपने नारे को चरितार्थ करके दिखाये. कुछ चुनिंदा आंकड़ों की आड़ में आत्मतुष्टि का शिकार बन बैठना आसान होता है, लेकिन लोगों को बजट में असली आर्थिक समस्याओं की तह तक पहुंचने के तत्वों की तलाश है.
(अनुवाद : विजय नंदन)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें