हमारे राज्य में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है. समाचार पत्रों में ऐसी चर्चाएं चल रही हैं कि यहां कुलपति बाहरी होना चाहिए या भीतरी. हमारी शिक्षा मंत्री महोदया ने भी कहा कि ऐसे ही किसी बाहरी को कुलपति कैसे बनने दिया जा सकता है.
विडंबना तो यह है कि जहां राजनीति होनी चाहिए वहां होती नहीं. जब प्रदेश से राज्यसभा सदस्य चुनने की बारी थी, तब यह बात किसी ने क्यों नहीं कही? क्या प्रदेश में ऐसे लोग नहीं हैं जो राज्यसभा में प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर सकें?
प्रदेश में कितने महान साहित्यकार, शिक्षाविद्, समाजसेवी, खिलाड़ी, पत्रकार, नेतृत्व की क्षमता रखने वाले लोग मौजूद हैं फिर भी बाहर के लोगों को राज्यसभा सदस्य बनाने में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हुई, फिर शिक्षा के गंभीर मसले पर इतनी राजनीति क्यों हो रही है? हर जगह प्रांतवाद की राजनीति अच्छी नहीं लगती.
सौरभ मिश्र, बोकारो