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विकास से ज्यादा लोगों की जेब का ख्याल!

भारत के आर्थिक नीतिकार पिछले लंबे अरसे से विकास बनाम महंगाई की पहेली को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) द्वारा जारी उच्च ब्याज दर की रणनीति का आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. चूंकि कर्ज पर ऊंची […]

भारत के आर्थिक नीतिकार पिछले लंबे अरसे से विकास बनाम महंगाई की पहेली को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) द्वारा जारी उच्च ब्याज दर की रणनीति का आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. चूंकि कर्ज पर ऊंची ब्याज दर की नीति के बावजूद महंगाई पर लगाम नहीं लगाया जा सका है, ऐसे में इसका कोई औचित्य नहीं है.

लेकिन, आर्थिक विकास के लिए जरूरी वातावरण तैयार करने के हिमायती इन विशेषज्ञों की राय के उलट आरबीआइ की चिंता के केंद्र में महंगाई ही है. आरबीआइ के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव के कार्यकाल से जारी उच्च ब्याज दर की नीति को नये गवर्नर रघुराम राजन ने भी न सिर्फ अपना समर्थन दिया है, बल्कि उसे आगे बढ़ाया है. उनके इस रुख से वे लोग हैरान हैं, जो राजन को नव-उदारवादी आर्थिक विकास का प्रबल पैरोकार मानते हैं. राजन ने कार्यभार ग्रहण करने से पहले ही इस बाबत पुख्ता संकेत दे दिये थे कि महंगाई पर नियंत्रण उनका पहला लक्ष्य है और वे इससे कोई समझौता नहीं करनेवाले हैं.

महंगाई के खिलाफ अपनी कठोर मौद्रिक नीति को जारी रखते हुए अब रिजर्व बैंक ने एक बार फिर लघु आवधिक ब्याज दर यानी रेपो रेट (वह दर जिस पर व्यावसायिक बैंक रिजर्व बैंक से पैसे उधार लेते हैं) में बढ़ोतरी की है और इसे 0.25 फीसदी बढ़ा कर आठ फीसदी कर दिया है. तर्क वही पुराना है कि इससे आर्थिक तंत्र में तरलता में कमी आयेगी, उधारी और उपभोग को हतोत्साहित किया जा सकेगा, जिससे मांग घटेगी और महंगाई में कमी आयेगी. यानी आरबीआइ ने एक तरह से यह साफ कर दिया है कि विकास दर बढ़ाना भले सरकार की प्राथमिकता में सबसे ऊपर हो, उसकी प्राथमिकता में आम आदमी की जेब सबसे ऊपर है, जिस पर महंगाई का सबसे ज्यादा असर पड़ता है.

सवाल पूछा जा सकता है कि जब रेपो रेट बढ़ने से होम और कार लोन की मासिक किस्त बढ़ने की आशंका जतायी जा रही है, तब क्या वास्तव में इसे आम आदमी के पक्ष में कहा जा सकता है? हालांकि महंगाई पर काबू पाने की आरबीआइ की इस नीति पर भले सवाल उठाये जायें, उसकी मंशा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता.

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