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डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ने रिलीज होने से पहले ही पंजाब को दुनियाभर में इतना प्रसिद्ध कर दिया कि रिलीज होने के बाद उसके प्रसिद्ध होने के लिए कुछ खास नहीं बचा. अलबत्ता इससे प्रसिद्धि के मामले में यूपी-बिहार का वर्चस्व अवश्य टूट गया. प्रसिद्धि की दृष्टि से अभी तक यूपी […]

डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ने रिलीज होने से पहले ही पंजाब को दुनियाभर में इतना प्रसिद्ध कर दिया कि रिलीज होने के बाद उसके प्रसिद्ध होने के लिए कुछ खास नहीं बचा. अलबत्ता इससे प्रसिद्धि के मामले में यूपी-बिहार का वर्चस्व अवश्य टूट गया. प्रसिद्धि की दृष्टि से अभी तक यूपी और बिहार ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटल पर छाये हुए थे.
इनकी यह प्रसिद्धि ज्यादातर लुटने-लुटाने के मामले में थी. ‘हमें अपनों ने ही लूटा, गैरों में कहां दम था’ जैसे आप्त वचनों के अनुसार, यह समझ कर कि बेचारे गैरों में तो लूटने का दम है नहीं, लिहाजा यह पुण्य कार्य हमें खुद ही करना पड़ेगा. यहां के बाशिंदों, खासकर नेताओं ने खुद ही अपने प्रदेशों को लूट लिया.
यह देख शीघ्र ही गैर भी यह सोच कर इन्हें लूटने आने लगे कि जब इनके अपने ही इन्हें लूटने में नहीं हिचकते, तो फिर हम गैर ही क्यों शर्म करें? यहां तक कि स्त्रियों ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर योगदान दिया. एक हीरोइन ने तो खुलेआम यह घोषणा की कि मैं आयी हूं यूपी-बिहार लूटने! ताज्जुब की बात है कि पूरा यूपी-बिहार उसकी यह घोषणा सुन कर बजाय अपना बचाव करने के खुद ही लुटने को तैयार हो जाता है और वह उसे बंदूक की नोक पर नहीं, बल्कि ठुमके की नोक पर लूट ले जाती है.
‘उड़ता पंजाब’ ने अन्य प्रदेशों के लिए भी प्रसिद्धि का मार्ग प्रशस्त किया है. अन्य कारणों से पहले से प्रसिद्ध यूपी-बिहार को भी उसने नये कारणों से और अधिक प्रसिद्ध होने की राह दिखायी है. इस फिल्म में जिस कारण से पंजाब को उड़ता दिखाया गया है, उससे मिलते-जुलते कारण इन प्रदेशों में भी कम नहीं हैं.
पंजाब शराब उतनी नहीं पीता होगा, जितना यूपी गुटका गटकता है और बिहार खैनी रगड़ता है.नब्बे के दशक में जब मैं रिजर्व बैंक के कानपुर कार्यालय में कार्यरत था, तो वह इतना कुख्यात था कि पूरे भारत में कहीं से भी वहां स्थानांतरित होनेवाला अधिकारी पहले तो हार्ट अटैक के दौर से गुजरता था, फिर सहकर्मियों द्वारा बार-बार दी जानेवाली दिलासा के बाद ही कानपुर आने को तैयार होता था.
वहां गुटका थूकने के लिए बिल्डिंग तो छोड़िए, कमरे से बाहर जाने की भी जरूरत नहीं. कमरों के कोने, सीढ़ियों की दीवारें, यहां तक कि पूरी बिल्डिंग गुटका खाकर थूकनेवालों की रचनात्मक पच्चीकारी से सजी थी. बेशक यूपी के अन्य शहर, कस्बे और गांव भी इस मामले में पीछे नहीं होंगे. कोई फिल्मकार चाहे तो ‘उड़ता पंजाब’ की तर्ज पर ‘थूकता यूपी’ नाम से फिल्म बना कर यूपी की शान में और इजाफा कर सकता है.
बिहार भी खैनी रगड़ने में महारत रखता है. उसे लेकर फिल्म-निर्माता ‘रगड़ता बिहार’ नामक फिल्म बना सकते हैं. पंजाब से लगता हुआ, बल्कि उसी से जन्मा हरियाणा भी दारू पीकर लुढ़कने में पंजाब से पीछे नहीं है और इसलिए ‘लुढ़कता हरियाणा’ नाम से फिल्म बनाया जाना डिजर्व करता है. गोवा गांजा खींचने के लिए, तो हिमाचल प्रदेश चिलम में भर कर अफीम पीने के लिए क्रमश: ‘खेंचता गोवा’ और ‘चिलमता हिमाचल’ नाम से फिल्में बनायी जाने की मुंतजिर हैं.
और सिगरेट फूंकने के लिए जानी जानेवाली राजधानी दिल्ली भी ‘फूंकती दिल्ली’ नाम से फिल्म बनाये जाने की बाट जोह रही है.
लेकिन जिस तरह से अदालत ने केवल एक कट के साथ ‘उड़ता पंजाब’ को रिलीज होने की अनुमति दी है, उससे उसमें दर्जनों कट लगानेवाले और खुद को मोदी का चमचा कहे जाने पर गर्व का अनुभव करनेवाले सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष को लेकर ‘उड़ता चमचा’ नाम से फिल्म बनाये जाने की मांग भी अनुचित नहीं लगती.

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