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शिक्षा ही विकास का असली मापदंड

पिछले दिनों बिहार में बोर्ड टॉपर के इंटरव्यू ने न केवल उस टाॅपर, बल्कि पूरे बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी़ समाचार पत्र से लेकर सोशल मीडिया तक में बिहार के शिक्षा तंत्र बखिया उधड़ गयी़ राजनीतिक पंडितों ने भी इसे खूब भुनाया. पर यह सच केवल बिहार का नहीं, पूरे देश का […]

पिछले दिनों बिहार में बोर्ड टॉपर के इंटरव्यू ने न केवल उस टाॅपर, बल्कि पूरे बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी़ समाचार पत्र से लेकर सोशल मीडिया तक में बिहार के शिक्षा तंत्र बखिया उधड़ गयी़ राजनीतिक पंडितों ने भी इसे खूब भुनाया. पर यह सच केवल बिहार का नहीं, पूरे देश का है. आजकल शिक्षा को लेकर हो रहे भष्टाचार प्रतिदिन हो रहे हैं.
ऐसी अधकचरी शिक्षा प्रणाली से हम 21वीं सदी को भारत की सदी कैसे बनायेंगे? यह सवाल हमारे बीच खड़ा होता है. आरटीइ यानी शिक्षा के अधिकार के द्वारा 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को शिक्षा अनिवार्य की गयी, लेकिन सात साल के बाद भी स्कूलों में ढांचागत सुविधा मुहैया कराने और गुणवत्ता संबंधी शर्तों को पूरा करने में भी सरकार नाकाम रही.
न स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक हैं, न बुनियादी सुविधाओं का विस्तार हुआ. कमोबेश आज हम वहीं खड़े हैं, जहां से चले थे. आज सरकारी स्कूलों की दुर्दशा देख निजी स्कूल जम कर फायदा उठा रहे हैं. आज हकीकत यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को सरकारी स्कूल भेजना नहीं चाहता, चाहे वह मजदूर ही क्यों न हो. यह व्यवस्था बदलनी चाहिए क्योंकि शिक्षा ही विकास का असली मापदंड है.
सुमित कुमार बड़ाईक, सिसई
डोभा पर ध्यान जरूरी

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