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निंदक नियरे राखिए, पर कैसे!

।। कमलेश सिंह।। (इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक) आजकल वीआइपी कल्चर पर बड़ा बखेड़ा बना हुआ है. लोग चाहते हैं नेता भी आम आदमी की तरह रहें, सपने बुनें, सिर धुनें, मनेमन घुनें. ऐसे में देश का विकास कैसे होगा, बताइए. क्यूं ना आम आदमी को आगे लाया जाये, उसकी फटफटिया पर लाल […]

।। कमलेश सिंह।।

(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)

आजकल वीआइपी कल्चर पर बड़ा बखेड़ा बना हुआ है. लोग चाहते हैं नेता भी आम आदमी की तरह रहें, सपने बुनें, सिर धुनें, मनेमन घुनें. ऐसे में देश का विकास कैसे होगा, बताइए. क्यूं ना आम आदमी को आगे लाया जाये, उसकी फटफटिया पर लाल बत्ती लगाया जाये. थोड़ा आदमी आगे बढ़े, थोड़ा नेताजी पीछे हटें और दोनों में एक दिन मधुर मिलन हो जाये.

उत्तर प्रदेश जैसे महान राज्य में प्रतिभाशाली युवा नेता अखिलेश यादव ने यह करिश्मा कर दिया है. पहले वह दो कदम पीछे आये, आम आदमी की तरफ. आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री गाड़ी में लालबत्ती नहीं लगाते. अरविंद केजरीवाल वैगन आर कार में चलते हैं. अखिलेश ने नयी सादगी का परिचय दिया साइकिल से यात्र करके. साइकिल उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न् भी है. यात्रा का यात्रा और प्रचार का प्रचार. अब चूंकि वह मुख्यमंत्री हैं, तो उनकी साइकिल भी मर्सिडीज की बनी थी, जिसकी कीमत अरविंद केजरीवाल के पुराने वैगनआर से ज्यादा ही होगी. इससे उत्तर प्रदेश में हो रहे विकास का भी अंदाजा लगता है.

फिर वह आम आदमी को चार कदम आगे ले गये. जिस विलासिता का नेताओं पर आरोप लगता है, उसे ही वह आम आदमी तक ले आये. फाइव-स्टार फंक्शन, फाइव-स्टार लोकेशन, मल्टी-स्टार परफॉर्मेस. सब निहट गांव में. अब ये उनका पुश्तैनी गांव है, इस बात पर बहस करना आफताब में कीड़े निकालनेवाली बात होगी. दाग तो चांद में भी है और ग्रहण भी लग जाता है उसको. चांद तो सूरज की रौशनी में नहाया आता है, इसलिए साफ और शफ्फाफ दीखता है. अखिलेश, शिवपाल, रामगोपाल और सैफई अपने अखाड़े के पहलवान मुलायम की रौशनी में नहा लेते हैं, तो शहर की दमक भी धमक महसूस करती है.

सफाई घर से शुरू होती है. विकास भी घर से शुरू हो, तो इसमें क्या बुरा है. सैफई उनका घर है और वहां सब सुविधाएं हैं, जो शहरों में होती हैं. गांव और शहर के बीच दूरी कम से कम एक गांव ने पाट ही दी. इस उपलब्धि का जश्न पूरा देश नहीं मनाता, तो न मनाये. सैफई तो मनाता है हर साल. आपके गांव में उत्सव होता होगा. सैफई में महोत्सव होता है. आपका गांव- गांव है, मुलायम सिंह का गांव- महागांव है. वहां माधुरी दीक्षित एक-दो-तीन.. करती हैं, आप के यहां भैंस खुट्टा छोड़ के नौ दो ग्यारह. आपके गांव में पोखर होगा, वहां स्विमिंग पूल है, जिसके रख-रखाव में कमी पर सरकारी अफसरों की छुट्टी हो जाती है. बड़ा अस्पताल है, ढेर सारे डॉक्टर हैं. चमचम सड़कें हैं. सालाना महोत्सव में मुंबई से कलाकार और देश-विदेश की नृत्यांगनाएं आती हैं.

इस साल आये तो बवाल ही हो गया. मुजफ्फरनगर में दंगे से पीड़ित कई नवजातों ने ठिठुर कर दम तोड़ दिया, तो लोग इसका दोष अखिलेश पर मढ़ने लगे. अखिलेश सरकार के एक बड़े अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ठंड से कोई मरता ही नहीं. अगर ठंड से लोग मरते तो साइबेरिया में कौन रहता? यह बात सैफई में साबित भी करके दिखा दी सरकार ने. साइबेरिया है रूस में. अब चूंकि लोगों को साइबेरिया नहीं ले जाया जा सकता, अखिलेश सरकार ने रूस से डांसर मंगाये और उन्हें बिल्कुल कम कपड़ों में नाचने को कहा, इसी ठंड में. सैफई में यों गरमी बढ़ गयी कि सैफ अली खान शरमा गये. उनकी फिल्म बुलेट राजा उत्तर प्रदेश पर आधारित थी, उसका टैगलाइन था : बुलेट राजा आयेंगे, गरमी बढ़ायेंगे. उनकी फिल्म को ठंडा रिस्पांस मिला. सैफ को सैफई ने ही इज्जत बख्शी. उनकी फिल्म को मुख्यमंत्री की तरफ से अनुदान मिला. माधुरी दीक्षित को भी एक करोड़ का अनुदान मिला. नृत्यकला और चलचित्री साहित्य के लिए ऐसी उदारता लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के बाद पहली बार देखने को मिली है. सोचिए, तो आंखें नम हो जाती हैं.

मीडिया चूंकि सामाजिक न्याय के इन नायकों से ईष्र्या करता है, इसलिए जगह-जगह इनके बारे में सच्ची कहानियां सुनायी जाने लगीं. अखिलेश ने अद्भुत विवेकशीलता का परिचय देते हुए आखिरी रात टीवी कैमरों को प्रतिबंधित कर दिया. इससे ग्रामीण पार्टी कार्यकर्ता भी मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित हुए. इनमें वे भी शामिल थे जो कुर्सी फेंकने, भौंडा नृत्य करने और निहायत निम्न स्तर की दांत-दिखाई में उत्तम किस्म की महारत रखते हैं. ऐसी प्रतिभाओं के मध्य कुछ दुर्घटनाओं का सुयोग भी बना रहता है, इसलिए 45 डॉक्टर रात-दिन सेवारत थे. निंदक नियरे राखिए पर कैसे, जब निंदक बात-बात पर मुजफ्फरनगर के ठंडे पड़े शवों को उत्सवों में उठाने लगें. बच्चे ठंड से नहीं मरते अगर उनको डॉक्टरी सहायता मिल जाती. पर डॉक्टर अगर शामली के गांवों में होते तो आन गांव और सैफई में क्या फर्क रह जाता?

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