।। सत्य प्रकाश चौधरी।।
(प्रभात खबर, रांची)
रुसवा साहब को पिछले कुछ दिनों से रात में डरावने ख्वाब आ रहे हैं. लाठी-तलवार लिये पीछा करती भीड़, जलते मकान, कब्र में दफन होते बच्चे, अधजली लाशों की बू, कानों के परदे छेदते नारे.. इन सबका का ऐसा कोलाज बनता कि वह इस सर्दी में भी पसीने से तर होकर उठके बैठ जाते. वह डॉक्टर के पास गये. डॉक्टर ने इसे कुछ ऐसी दिमागी बीमारियों का नतीजा बताया जो सुनने में लैटिन, ग्रीक जैसी जान पड़ती थीं.
रुसवा साहब को यकीन नहीं हुआ कि उनके जैसे मामूली आदमी को इतनी गैर मामूली बीमारियां हो सकती हैं. उन्होंने डॉक्टर के परचे को गोली बना कर सड़क के किनारे उछाला और एक पुराने परिचित वैद्यजी के पास जा पहुंचे. यह जानते हुए भी कि वैद्यजी कभी हिंदू रक्षा दल के नेता हुआ करते थे. उनके संगठन के कार्यकर्ता हर सालबिला नागा वैलेंटाइन डे पर लड़के-लड़कियों को बड़े मौलिक ढंग से दंडित करते थे. कभी मुर्गा बनाते, कभी सात फेरे कराते, तो कभी थप्पड़ों से खातिरदारी कर उनके मां-बाप को फोन लगा देते.
लेकिन, एकाएक वैद्यजी यह सब छोड़ अपने खानदानी पेशे में मशगूल हो गये और बीमारों को गोली-चूरन देने लगे. दरअसल, हुआ यूं कि बड़े शहर में पढ़नेवाले उनके दोनों बेटों ने बहुत कम वक्त के अंतराल में ‘लव मैरिज’ कर ली. एक तो ‘विधर्मी’ को बहू बना लाया. बेटों ने ‘भारतीय संस्कृति’ पर जो ‘कालिख’ पोती, उससे उन्हें अपना मुंह काला हुआ लगने लगा. इसके बाद उन्होंने ‘जय श्रीराम’ कहने की जगह संगठन को ‘राम-राम’ कह दिया. इन्हीं वैद्यजी ने रुसवा साहब को इलाज के लिए पीपल की छाल लाने को कहा. दिमाग पर थोड़ा जोर डालने के बाद उन्हें याद आया कि पीपल का एक पेड़ तो कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर के सामने भी हुआ करता था, जहां पहले वह रोज जाया करते थे.
शुरुआत में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में और बाद में अखबार पढ़ कर वक्त काटने के लिए. पर धीरे-धीरे वह नाउम्मीद हो चले और पार्टी दफ्तर जाना पूरी तरह छूट गया. आज जब वह छाल लेने वहां पहुंचे, तो पीपल का पेड़ गायब था. उसकी जगह पर बड़ा सा मंदिर उग आया था. मंदिर में पुजारी का मकान और एक दानवीर व्यापारी की दुकान भी बन गयी थी जिसमें जॉकी का कच्छा-बनियान बिक रहा था. मंदिर की दीवार पर आसाराम की तसवीरवाला पोस्टर लगा था जो हिंदू संतों के सम्मान की रक्षा के लिए हिंदुओं से उठ खड़े होने की अपील कर रहा था. जब मैंने पुजारी से पीपल के बारे में पूछा, तो उसने मुंह बनाते हुए एक गमले की ओर इशारा किया. उसमें लगा पौधानुमा पेड़ एक बकरी का पेट भरने के लिए भी काफी नहीं था, मैं उसकी छाल भला क्या लेता? कभी बड़े-से पीपल की छांव में छोटा-सा मंदिर था, आज बड़े-से मंदिर की छांव में छोटा-सा पीपल है. रुसवा साहब को एकाएक लगा कि गमले में लगा पीपल उनकी पुरानी पार्टी है और यह मंदिर मुल्क का मौजूदा निजाम.