।। सुधींद्र कुलकर्णी।।
-वरिष्ठ पत्रकार-
(अटलजी के करीबी रहे हैं)
कामयाब हुआ. गंठबंधन की सरकारें देश में इससे पहले भी बन चुकी थीं. आपातकाल के बाद 1977 में पहली बार देश में जनता पार्टी के नेतृत्व में एक गैर कांग्रेसी सरकार बनी. जनता पार्टी का गठन चार पार्टियों के साथ आने से हुआ था, इसलिए वह भी एक गंठबंधन सरकार ही थी, लेकिन नेताओं के बीच उभरे अंतर्विरोधों के कारण जनता पार्टी दो साल भी शासन नहीं कर पायी. 1990 के दौर में वीपी सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में भी गंठबंधन की सरकारें बनीं, लेकिन इनमें से कोई भी सरकार कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी. आखिर अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी गंठबंधन सरकार ने पहली बार आजादीकेबादकेंद्रमेंजितनीभीसरकारेंबनीं,उनमेंअटलबिहारीवाजपेयीकेनेतृत्वमेंबनीएनडीएसरकारहीसहीमायनेमेंसफलगंठबंधनकीसरकारथी.यहगंठबंधननसिर्फअटलजीकेपूरेशासनकालमेंस्थिररहा,बल्किअच्छीसरकारदेनेमेंभी कार्यकाल पूरा कर भारत के राजनीतिक इतिहास में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. हालांकि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी, बीच-बीच में यूपीए के दलों के बीच उभरे मतभेदों के बावजूद, पिछले दस सालों से गंठबंधन सरकार चला रहे हैं, परंतु एक सफल गंठबंधन सरकार की नींव रखने का काम वाजपेयीजी ने किया.
अटलजी को प्रधानमंत्री पद छोड़े दस साल हो गये हैं, लेकिन आज भी लोग उन्हें याद करते हैं, यह उनकी महानता का परिचायक है. दरअसल, अटलजी की स्वीकार्यता दलीय सीमाओं से परे है. तब सही मायने में वे ‘अजातशत्रु’ थे. उनमें सबको साथ लेकर चलने का अद्भुत गुण था. यही वजह है कि उन्होंने 23 दलों को साथ लेकर पूरे पांच साल तक देश को एक अच्छा शासन दिया. देश का सबसे बेहतर प्रधानमंत्री कौन था, इसे लेकर लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है, लेकिन यह बात सभी स्वीकार करते हैं कि अटलजी एक बेहतरीन प्रधानमंत्री साबित हुए. आज की प्रतिस्पद्र्धी राजनीति के दौर में ऐसा कोई नेता शायद ही रहा है, जिसकी स्वीकार्यता अन्य दलों में भी समान रूप से हो.
देश में अटलजी की लोकप्रियता प्रधानमंत्री बनने से पहले भी थी. उनके व्यक्तिगत गुणों का असर 1990 की राजनीति को दिशा देनेवाला साबित हुआ. प्रधानमंत्री रहते वाजपेयी ने विकास और विदेश नीति के मोरचे पर कई अहम कदम उठाये. सर्वसम्मति की राजनीति में माहिर वाजपेयी ने विदेश नीति के मोरचे पर भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर करने का साहसिक कदम उठाया. दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए उन्होंने खुद बस में बैठ क र लाहौर की यात्र की. पाकिस्तान ने करगिल में घुसपैठ कर विश्वासघात किया, इसके बावजूद अटलजी ने शांति के मिशन को जारी रखा. उन्होंने विश्व को यह दिखाया कि भारत-पाक संबंधों में बदलाव लाया जा सकता है. पाकिस्तान ही नहीं, सभी पड़ोसी देशों के साथ रिश्त सुधारने के लिए अटलजी ने पूरी ईमानदारी से प्रयास किया. भारत-पाक संबंध सुधारने के प्रयासों के बेहतर नतीजे अब तक भले नहीं मिले हैं, पर वे सही मायने में ‘शांति के दूत’ हैं. उन्होंने कश्मीर में हालात सुधारने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाये. अटलजी ने कश्मीर जाकर लोगों से कहा कि वे समस्या का समाधान इनसानियत के दायरे में करना चाहते हैं.
राजनीतिक तौर पर उनके नेतृत्व कौशल की असली परीक्षा 1996 के लोकसभा चुनाव में दिखी, जब भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी. हालांकि धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर कांग्रेस स्थायी सरकार की राह में बाधा बनने में सफल रही और अटलजी महज 13 दिन ही प्रधानमंत्री रह पाये. बाद में कांग्रेस के सहयोग से देश में दो अस्थिर सरकारें बनीं, लेकिन 1998 के चुनावों में एनडीए को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई और अटलजी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. पूर्व में उनका विरोध करनेवाले दल भी एनडीए का हिस्सा बन गये. हालांकि एक बार फिर कांग्रेस ने वाजपेयी सरकार गिरा दी. वाजपेयी सरकार महज एक वोट से विश्वास मत हासिल नहीं कर सकी, लेकिन ऐसे समय में, जब खरीद-फरोख्त की राजनीति हावी हो, वाजपेयीजी ने अपनी सरकार बचाने के लिए सिद्धांतों के साथ कोई भी समझौता नहीं किया. हालांकि उन्होंने हार भी नहीं मानी और 1999 के लोकसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में एनडीए और भी ताकतवर बन कर उभरा.
अटलजी ने देश को विकास के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर खासा जोर दिया. उनकी सरकार ने देश में सड़कों का जाल बिछाने के लिए हाईवे निर्माण को गति दी. राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, सर्वशिक्षा अभियान और टेलीकॉम क्षेत्र में सुधार ने देश के विकास को नयी गति दी. अटलजी के शासनकाल में राष्ट्रीय राजमार्ग का विकास जिस तेजी से किया गया, शायद आजादी के बाद उतनी तेजी से सड़कों का निर्माण कभी नहीं हुआ था. उस दौरान गांवों को सड़कों से जोड़ने में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का अहम योगदान रहा. वाजपेयी के शासनकाल में टेलीकॉम क्षेत्र का भी जबरदस्त विकास हुआ.
कुछ लोग मानते हैं कि अटल सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि 1998 में पोखरण में किया गया परमाणु विस्फोट है. हालांकि परमाणु परीक्षण की मुख्य वजह परमाणु निषेध संधि की खामियां थीं. परमाणु परीक्षण करने का फैसला काफी साहसिक था, लेकिन भारत विश्व को परमाणु हथियार रहित बनाने की नीति पर कायम रहा. यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला था और अटलजी की सोच थी कि एक दिन सभी देश परमाणु हथियारों को खत्म करने पर राजी हो जायेंगे. पोखरन परमाणु परीक्षण अभियान की गोपनीयता ने अमेरिका को भी हैरान कर दिया था. इस परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाये, लेकिन इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर खास असर नहीं पड़ा. बाद में अटलजी ने भारत और अमेरिका के रिश्तों को नये मुकाम पर पहुंचाया.
मेरा मानना है कि एक प्रधानमंत्री के तौर पर अटलजी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी सामाजिक-आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण मामलों पर राष्ट्रीय सहमति बनाना. आज जहां केंद्र और राज्यों के बीच संबंध काफी कटुतापूर्ण हो गये हैं, वाजपेयी के शासनकाल में इसे बेहतर करने की कई सफल कोशिशें की गयी थी. इसलिए मेरा मानना है कि वाजपेयी किसी दल के नेता नहीं, बल्कि देश के नेता हैं.
(विनय तिवारी से बातचीत पर आधारित)