।। चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)
अजीब खब्ती इनसान है! जब सारी दुनिया बहुत कुछ हासिल करने के लिए भाग रही है, तब यह शख्स कुछ सिरफिरों को लेकर पीछे लौट रहा है और तुर्रा देखिए कि अपने को सही भी बता रहा है. अब आपै बताओ चिखुरी काका! इस जमाने में जब गांव-गांव मांटेसरी मदरसे खुल चुके हैं, सो भी अंगरेजी मीडियम से, बच्चे नाक पोछना भी अंगरेजी में सीख रहे हैं, यह खब्ती होरीलाल पुराने जमाने का मदरसा खोले बैठा है. पट्टी-बोरिका, इस्लेट खड़िया से बच्चों को पढ़ाने की बात करता है! यह कैसे चलेगा?
कयूम की बात को चिखुरी ने गौर से सुना, जबकि बाकियों ने उसी तरह बेपरवाही से सुना, जिस तरह होरीलाल की हरकत को पागलपन और होरीलाल को पगलेट कह कर चित से उतार दिया है. चिखुरी देर तक चुप रहे. नवल उपाधिया से नहीं रहा गया- काहे सुबह-सुबह जायका बिगाड़ रहे हो कयूम चाचा! कोई और बात करते, उठा लाये उस पगलेट होरीलाल को? उमर दरजी ने टुकड़ा जोड़ा- पगलेट? कौन कहता है पगलेट है? कलकत्ते वाले कंपनी बाबू मूरख हैं का? दर्जनों ट्रक चलती है, उनकी अपनी गैरेज है. कंजूस समझते रहे सब. किसी भी इस्कूल को एक पैसा नहीं दिये. गांव के एक से एक बड़ मनइ उनसे चंदा मांगने गये रहे ‘सेंट बाबा धुंधा राम मांटेसरी अंगरेजी मीडियम’ के लिए. किस तरह ङड़क कर भगा दिये. वही कंपनी बाबू ने कल होरीलाल को बुला कर पूरे दस हजार रुपये नकद दिये. बोले, बच्चों के घर की छत जल्दी लगवा लो. इतना ही नहीं, अपने नाती को उस मदरसे में पढ़ने के लिए पूरे घर से झगड़ा कर लिये, पर सब को मना ले गये.. तो कोई बात तो होगी ही.
झूठ, सब झूठ! एक नम्मर का मक्खीचूस अठन्नी नहीं देनेवाला दस हजार तो बहुत दूर की बात है. चिखुरी फिर मुस्कुराये, लेकिन इस बार मूछों में- इ झूठ ना है. हमरी बात कंपनी साहेब से भई रही. ‘बाल घर’ के बारे में हमी ने उन्हें बताया रहा. दोपहर में बात हुई और संझलौके कंपनी ने होरीलाल को दस हजार की गड्डी पकड़ा दी. छप्पर डालने के लिए. और वह रुपया हमारे पास यह रहा. कहते हुए चिखुरी ने दस हजार की गड्डी निकाल दिया. लोग सन्नाटे में. यह हुआ कैसे? इस बार चिखुरी ने सब चेहरों को गौर से देखा. गंभीर रहे. अचानक ठहाका लगा कर हंसे. चलो आज तुम्हें असलियत बता ही देता हूं. हुआ यूं कि जब गांव में एक नहीं, तीन-तीन मांटेसरी स्कूल खुले और अंगरेजी की लालच दिखा कर लड़कों से मोटी रकम वसूल की जाने लगी तो बड़ी तकलीफ हुई.
एक तरफ तो सरकार सारी सुविधाएं देकर बच्चों को पढ़ाने का उपक्रम कर रही है. कपड़ा, झोला, किताब. दोपहर का भोजन, मोटी-मोटी रकमवाले अध्यापक, लेकिन जनता को देखिये अंगरेजी की दुम पकड़े भागी जा रही है. हम्मे गलत न समझना, हम अंगरेजी भाषा का विरोध नहीं कर रहे, हर भाषा अच्छी होती है, पर हमारा असल विरोध है अंग्रेजियत के रुआब से और अंगरेजी के नाम पर लूट से और इस्से ज्यादा है ये ससुरे मांटेसरी हमारे बच्चों से उनका बचपना जो छीन लिये हैं. हम बच्चों को पहले एक बच्चा बना रहना सिखायेंगे, उन्हें खुद आगे बढ़ने में उनकी मदद करेंगे. इसलिए हमने होरीलाल को पकड़ा. वह जो दालान बना है न, किताबों से भरा पड़ा है. पूरे गांव को मालूम है कि वह एक पुस्तकालय है, पर कितने लोग जाते हैं पढ़ने? मुट्ठी भर. गांव की भी गलती नहीं. उन्हें बताया ही नहीं गया कि रामायण, महाभारत, हनुमान चालीसा और कोकशास्त्र के अलावा भी किताबें हैं. उन्हें पढ़ो, देश-दुनिया को जानो.
लालसाहेब ने गौर से सुना और सवाल के साथ संजीदा हुए- तो एक बात बताइए, सुना है बच्चे दर्जा दो तक कापी और पेन से नहीं लिखेंगे? लकड़ी की पट्टी पर नरकुल के कलम से लिखेंगे. स्लेट पर अक्षर सीखेंगे? चिखुरी ने जोर देकर कहा- हां यह सही है. अंगरेजी माध्यम हमारे बच्चे की इंद्रियों का कत्ल कर रहा है. बाल घर में बच्चे मिट्टी पर ऊंगली से लिखना सीखेंगे. मिट्टी का स्पर्श, उसकी गंध, उसका रूप, उसका स्वाद बच्चे को मां का प्यार देता है. बच्चों की गिनती में, पहाड़ा में एक संगीत है. वह संगीत बच्चे के मन-मस्तिष्क में अपनी जगह बना लेता है. बांगला में देखो, मैथिल, भोजपुरी, अवधी, मराठी, तमिल में देखो, हर भाषा की अपनी मिठास है. ‘अग्दुम बग्दुम घोड़ा दुम साजे.. अस्सी नब्बे पूरे सौ’ कहां डूब गयी ये बच्चों की कविताएं?
पर एक बात है, वहां का डिसिप्लिन बड़ा चोख है. जदी कोई लड़का टाई औ जूता के बगैर गया तो फौरन वापस.. नवल ने भद्दी सी गाली दी. एको टीचर को ससुरा टाई लगाने का सऊर नहीं है औ न खुद पहनते हैं.. तो पंचों आपै फैसला करो, गांव के बच्चे अंगरेजी में जायंेगे या माटी के बाल घर में पढ़ेंगे? नवल को मौका मिल गया. साइकिल उठी. घंटी बजी. इसके बाद खुद बजने लगे- ओक्का, बोक्का, तीन तिलोका, लक्ष्या लाची, चंदन काटी.. और आगे बढ़ गये.. फैसला अभी होना है!