आज मानव ही दानव के रूप में इनसानियत को मारता है, यही है हमारे समाज का सबसे बड़ा सच! यहां लोग प्रेम भाव से नहीं, बल्कि हिंसा भाव से रहते हैं. सब अपने स्वार्थ के लिए जीते हैं. सब एक -दूसरे से आगे बढ़ना चाहते हैं. यहां बहुत सारी कुप्रथाएं वास करती हैं. कहीं छुआछूत, तो कहीं दहेज. कोई बारूद-गोलियां बनाता है, तो कोई शराब-सिगरेट का उत्पादन करता है. जब तक ये हम तक न पहुंचें और जब तक हम इससे प्रभावित न हों, तब तक हम चुप्पी साधे रहते हैं. आखिर हम कब तक चुप रहेंगे? कब तक किसी मसीहा के आने का इंतजार करेंगे कि वह आकर हमारी सारी दुख-परेशानियां हर ले?
हमें अपनी मदद खुद करनी होगी. समाज को देखने का अपना नजरिया बदलना पड़ेगा. वरना नहीं बढ़ेगा हमारा देश और समाज तरक्की की ओर. हमें अपनी लड़ाई लड़ने का पूरा अधिकार है. हमारे समाज का एक दृष्टिकोण यह भी है कि हम एक -दूसरे को संदेह की नजरों से देखते हैं और खुद को उन सबसे ऊंचा समझते हैं. उदाहरणत के लिए, हम कहीं किसी युवक -युवती को साथ में देखते हैं तो पहले यही सोचते हैं कि जरूर इनके बीच कुछ होगा, घर से झूठ बोल कर निकले होंगे, अड्डेबाजी कर रहे होंगे. क्या ऐसा दृष्टिकोण सही है?
हो सकता है कि वे भाई-बहन, दोस्त या फिर रिश्तेदार हों. तो सोचिए कि हमारी मानसिकता कितनी छोटी और गंदी है. हो सकता है कि कुछ बच्चे राह से भटक गये हों, लेकिन क्या हमें ऐसी स्थिति में उन्हें सही राह से परिचित नहीं कराना चाहिए? कहने का अर्थ है कि दुनिया बहुत सुंदर है, यह आपको वैसी ही दिखेगी, जैसी आप इसे देखना चाहते हैं. अपने दृष्टिकोण को हमेशा ऊंचा, सम्मानित रखें, ताकि आप खुद की नजरों में उठ सकें.
पूनम बेहरा, दाहिगोड़ा, घाटशिला