झारखंड में लंबे समय से नये उद्योग नहीं लग रहे हैं. हाल के वर्षो में जो दो-एक पावर प्लांट लगे भी, या तो वे खस्ताहाल हैं या फिर उनसे अब तक सही से उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है.
राज्य सरकार वर्ष 2012 में नयी औद्योगिक नीति लेकर आयी. उसके बाद यह उम्मीद जगी कि यहां पहले से मौजूद उद्योगों को कुछ राहत मिलेगी और नये उद्योगों को प्रोत्साहन. लेकिन झारखंड में उद्योग के नाम पर खनिजों पर अधिकार पाने की जद्दोजहद ही ज्यादा दिखायी देती है. रोजगार, राज्य के आर्थिक विकास और राजस्व बढ़ोतरी के लिए औद्योगिक इकाइयों की स्थापना का उद्देश्य बहुत पीछे छूट चुका होता है.
हाल ही में, ऑटोमोबाइल विनिर्माण क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी कंपनी टाटा मोटर्स द्वारा जमशेदपुर प्लांट से ट्रकों के कई मल्टी एक्सएल मॉडलों को अपने पंतनगर प्लांट में शिफ्ट करने की तैयारी करने की खबरें आयीं.
यदि ऐसा होता है, तो न सिर्फ इससे यहां के टाटा मोटर्स के हजारों कर्मचारी प्रभावित होंगे, बल्कि इसके लिए कल-पुरजों का निर्माण करनेवाली कई एंसीलरी कंपनियों पर भी ताले लग जायेंगे. यह झारखंड के उद्योग क्षेत्र के लिए बड़ा संकट है. कंपनी के इस फैसले के अपने तर्क हैं. एक अनुमान के अनुसार, विभिन्न कारकों के कारण झारखंड में प्रति भारी वाहन के निर्माण पर दो लाख रुपये की अतिरिक्त लागत आ रही है. जबकि उत्तराखंड में उसी तरह के वाहन का उत्पादन सस्ता है.
इसका कारण उत्तराखंड को केंद्र की ओर से मिला विशेष राज्य का दरजा, वैट में राज्य सरकार की ओर से पूरी रियायत, नये उद्योगों को 10 साल तक करों में छूट जैसे कई प्रावधान हैं. लेकिन इसके विपरीत झारखंड में वैट दर सर्वाधिक 14 फीसदी (बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी यह चार फीसदी है), आधारभूत ढांचे का बेहद अभाव, ट्रांसपोर्ट लागत का कई गुना होना, लैंड बैंक का अभाव जैसी समस्याएं ऐसी हैं जो किसी भी उद्योग की कमर तोड़ दें.
उद्योगों के लिए जाने जानेवाले कोल्हान में पिछले चार साल में 35 स्टील कंपनियां बंद हो चुकी हैं. राज्य सरकार को उद्योगों के साथ बैठ कर इन मुद्दों के हल निकालने होंगे. नहीं तो, उद्योग इसी तरह बंद होते रहेंगे और बेरोजगारी के कारण यहां के लोग दूसरे राज्यों में पलायन के लिए बाध्य होते रहेंगे.