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कहां ले जायेगी अल्ट्रामॉडर्न संस्कृति?

सूचना क्रांति और वैचारिक उथल-पुथल के इस युग में दुनिया ग्लोबल गांव का आकार ले चुकी है. अब दूरी गौण हो गयी है. छद्म भूमंडलीकरण का महानायक अमेरिका डब्ल्यूटीओ आधारित अर्थतंत्र के मजबूत हथियार से भारत जैसे विशाल देश को अपने उत्पादों की मंडी बनाना चाहता है. वर्तमान पीढ़ी को वह ‘अल्ट्रामॉडर्न’ पाश्चात्य संस्कृति का […]

सूचना क्रांति और वैचारिक उथल-पुथल के इस युग में दुनिया ग्लोबल गांव का आकार ले चुकी है. अब दूरी गौण हो गयी है. छद्म भूमंडलीकरण का महानायक अमेरिका डब्ल्यूटीओ आधारित अर्थतंत्र के मजबूत हथियार से भारत जैसे विशाल देश को अपने उत्पादों की मंडी बनाना चाहता है.

वर्तमान पीढ़ी को वह ‘अल्ट्रामॉडर्न’ पाश्चात्य संस्कृति का दीवाना बनाकर, उनके अंदर भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के प्रति अनास्था उत्पन्न करना चाहता है. यदि अमेरिका अपने स्वकेंद्रित, संकीर्ण और भोगवादी सोच को व्यावहारिक रूप देने में सफल हो गया तो जो काम सिकंदर की दक्ष सेना, मुगलों का अत्याचार, साम्यवादियों की लाल सेना, ब्रिटिशों का अनाचार और चर्च के उपदेशक नहीं कर सके, वह काम अमेरिका और मित्र देश बिना लड़ाई के ही भूमंडलीकरण के अस्त्र से कर लेंगे.

स्वामी गोपाल आनंद बाबा, रामगढ़

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