चारा घोटले के मुख्य अभियुक्त लालू प्रसाद यादव का जमानत पर रिहा होना, हमारे देश में कानून की बेचारगी की जीती-जागती मिसाल है. अगर आज लालू प्रसाद की जगह कोई आम आदमी रहता, तो क्या उसे भी कानून की ओर से इस तरह की छूट मिलती? हरगिज नहीं. दूसरी तरफ, तमाम ऐसे आरोपी हैं जो छोटे-छोटे मामलो में सालों से जेलों में पड़े हैं.
अनेक मामलों में साधारण लोग कानून की जानकारी के अभाव और आर्थिक तंगी के कारण ऊपरी अदालतों तक नहीं पहुंच पाते हैं! इसी का खमियाजा वो भुगतते हैं. जब इस मामले में सीबीआइ ही चाहती थी कि लालू को जमानत मिले, तो कोई और क्या कर सकता है? कम से कम सीबीआइ को तो इसका विरोध करना चाहिए था. क्या इस देश में अब भी यह कहा जा सकता है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं?
मदन मोहन सिंह मुंडा, ई-मेल से