जिस भारत में कभी श्रवण कुमार, श्रीराम जैसे आदर्श चरित्रों ने जन्म लिया, अचानक उस भारत को क्या हो गया कि आतंकवादी, हत्यारे और राक्षस इस देश में पैदा होने लगे? इसका कारण है युवाओं को दुष्प्रभवित करनेवाली फिल्में. जैसे राजा हरिशचंद्र पर नाटक देख कर कोई महात्मा बन जाता है, वैसे ही कोई सनी लियोन को देख कर समूहिक बलात्कारी बन सकता है. कोई ज्ञानी जाम्बवंत बनके युवा की शक्ति को जाग्रत कर उसे महान बलवान वीर हनुमान बना देता है, तो कोई महेश भट्ट जैसा व्यक्ति अच्छे भले करोड़ो युवाओं को चोर, उचक्का और यौन हिंसक बना देता है. भारत में देशभक्ति की फिल्में बनायी जायें तो युवा अपने देश की रक्षा के लिए आगे आयेंगे, पर अगर हर फिल्म यौनेच्छा और कामुकता को बढ़ायेगी, तब तो देश का सर्वसत्यानाश हो जाएगा.
फिल्म निर्माता खुद सोचें कि वे भारत के युवाओं को पश्चिमी अज्ञान का अभ्यस्त बनायेंगे तो देश का क्या होगा? जैसा चित्रपट आज भारत में दिखाया जा रहा है, उसकी उत्पत्ति और उसके दुष्परिणाम पर एक नजर डालिये. सन 2001 में किये गए सर्वे के अनुसार अमेरिका में 51} शादियां तलाक में बदल जाती हैं. मनुष्य के लिए प्रकृति द्वारा तय संयम का उपहास करने के कारण प्रकृति ने उन्हें ऐसे रोगों का शिकार बना रखा है जो राष्ट्रीय महामारी बन चुके हैं. इनमें मुख्यत: एड्स की बीमारी दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही है. वहां के पारिवारिक व सामाजिक जीवन में कलह, असंतोष, संताप, उच्छृंखलता उद्दंडता व शत्रुता का महाभयानक वातावरण छा गया है. अब आप खुद सोचिए कि हमें कैसा विकास चाहिए? सर्वसत्यानाशी या भारतीय पद्धति से किया गया सनातनी स्वदेशी और सर्वोदयी विकास.
प्रीतीश दास, मुसाबनी, जमशेदपुर