नासा के यान मंगल ग्रह पर जा चुके हैं तो भारत का मंगलयान भी मंगल की कक्षा में भ्रमण कर रहा है और नयी जानकारियां मुहैया करा रहा है. चांद पर पहुंचने की वर्षगांठ पर नासा के न्यू होराइजन अंतरिक्ष यान ने सुदूर प्लूटो के बारे में अद्भुत सूचनाएं दी हैं. मंगल, प्लूटो और अन्य खगोलीय पिंडों के निरंतर करीब पहुंचने के इन प्रयासों की नींव 1969 के चांद पर जाने की कवायद में ही है. उससे पहले अंतरिक्ष अभियान अमूमन पृथ्वी की कक्षा तक ही सीमित थे और बहुत कम कोशिशें ही ऐसी थीं, जो निर्वात अंतरिक्ष की टोह लगा रही थीं. परंतु चंद्रमा पर पहुंचना मानव सभ्यता की उस सामूहिक उम्मीद का एक हद तक हकीकत होना था जो यह मानती है कि असंभव जैसी कोई चीज नहीं होती और क्षितिज के परे व्यापक ब्रह्मांड हमारी पहुंच से दूर नहीं है. अंतरिक्ष को टोहने की इस मानवीय प्रयास में भारत विकसित देशों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहा है. भारत ने सोवियत संघ की मदद से 1975 में अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा था, लेकिन आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) अनेक भारतीय उपग्रहों समेत दुनिया के 19 देशो के 40 उपग्रह छोड़ चुका है.
इनमें कई यूरोपीय और विकसित देश हैं. भारत के अलावा इसरो के 20 केंद्र विभिन्न देशों में कार्यरत हैं. अंतरिक्ष में शोध और विभिन्न ग्रहों-पिंडों के बारे में जानकारियां जुटा कर मनुष्य न सिर्फअपने वर्तमान की बेहतरी के प्रयास में है, बल्कि भविष्य की नयी मंजिलों की तलाश भी कर रहा है. अपोलो 11 की वह यात्र और मंगलयान की परिक्र मा के साथ अनेक अंतरिक्ष यान हमारी कल्पनाओं को संतुष्ट करने के साथ असीम को छूने की क्षमताओं को भी साध रहे हैं. विभिन्न देशों और संस्थाओं की ये कवायदें क्षुद्रताओं में विभाजित मनुष्यता की सामूहिकता का रेखांकन भी हैं. ये साझा प्रयासों और उपलिब्धयों का विलक्षण उत्सव भी हैं.