अभी गर्मी का मौसम शुरू होने में दो महीने से ज्यादा का वक्त है और मेदनीनगर के आसपास के इलाकों में पानी की किल्लत शुरू हो गयी. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थिति निमिया के हालात भयावह हैं. करीब चार हजार की आबादी वालेइस बड़े गांव में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. महिलाएं व बच्चे तीन किलोमीटर दूर कोयल नदी से पानी ला रहे हैं. अगर चापाकल का पानी चाहिए तो इससे भी ज्यादा दूर जाना पड़ रहा है. गांव में जलस्तर छह सौ फीट तक नीचे चला गया है. सभी चापाकल व कुएं सूख गये हैं.
इस इलाके के लोग बरसों से पाइपलाइन से पानी की आपूर्ति के वादे पर छले जा रहे हैं. पाइप लाइन बिछाने का शिलान्यास हो चुका है, पर काम कब तक पूरा होगा, कुछ पता नहीं. अब ग्रामीणों का सब्र जवाब देने लगा है. रविवार को इन लोगों ने जिले के उपायुक्त कार्यालय के सामने प्रदर्शन भी किया. पलामू और गढ़वा जिले पानी की किल्लत के लिए जाने जाते हैं. लेकिन ताज्जुब की बात है कि यह समस्या से गर्मियों से बहुत पहले ही शुरू हो गयी है. यह खतरे की घंटी है. इनसान ने प्राकृतिक संसाधनों का जिस बेदर्दी से दोहन किया है, उसके खतरनाक नतीजे सामने आना शुरू हो चुके हैं.
जलस्नेतों के संरक्षण को लेकर कोई संवेदनशीलता नहीं दिखती, जिसका नतीजा है कि नदी, तालाब, पोखर सब खत्म हो रहे हैं. इनसानी बसाहटों के कारण नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र (इनकैचमेंट एरिया) लगातार सिकुड़ रहा है. जमीन की हवस में तालाब-पोखर सुखाये जा रहे हैं. तकनीकी के विकास का दुष्परिणाम यह हुआ कि हमने पानी की कीमत समझनी बंद कर दी. जमीन में 100 फुट पाइप डाला और मनमाना पानी निकालना शुरू कर दिया. 100 फुट पर दिक्कत हुई तो 200 फुट, फिर 300, 400, 500 फुट तक बोरिंग करते गये. पर इसकी भी एक सीमा है. आखिर कितनी गहराई तक जा सकते हैं. एक सीमा के बाद गहरे भू-गर्भ जल में खतरनाक रासायनिक तत्व पाये जाते हैं. फौरी राहत के लिए सरकार अभी टैंकर से पानी की आपूर्ति करे. फिर पाइपलाइन चालू कराये. लेकिन दीर्घकालिक योजना के तहत जल छाजन, तालाब, पोखर वगैरह पर भी काम होना जरूरी है.