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विरोध से और चमक रही है पीके

यह सही है कि जिसका जितना विरोध होता है, वह उतना ही अधिक चमकता है. अभी पीके फिल्म के विरोध से ही वह और अधिक चमक कर ऊपर उठ गयी. मुट्ठी भर लोगों के विरोध से देश के अवाम की उत्सुकता और अधिक बढ़ रही है. इससे पहले भी समलैंगिकता पर बनी दीपा मेहता की […]

यह सही है कि जिसका जितना विरोध होता है, वह उतना ही अधिक चमकता है. अभी पीके फिल्म के विरोध से ही वह और अधिक चमक कर ऊपर उठ गयी. मुट्ठी भर लोगों के विरोध से देश के अवाम की उत्सुकता और अधिक बढ़ रही है. इससे पहले भी समलैंगिकता पर बनी दीपा मेहता की फायर और वाटर फिल्मों का विरोध हुआ और उनकी आय में इजाफा हुआ. ऐसा तो नहीं कि कहीं इस विरोध के पीछे आय वृद्धि की नयी राजनीति काम नहीं कर रही हो.
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के इलाहबाद हाई कोर्ट से केस हारने और लोकनायक जेपी के संपूर्ण क्रांति से वर्ष 1975 में देश में इमरजेंसी थोप दी गयी. जनता पर नसबंदी जैसे जुल्म ढाये गये. इससे कांग्रेस का देश से सफाया ही हो गया और जनता पार्टी की सरकार के मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. उस समय हुए सभी जुल्म और ज्यादतियों के लिए शाह कमीशन बैठाया गया. इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी आदि के कारण उसकी शक्ति बढ़ती गयी. धीरे-धीरे उन्हें जनता की हमदर्दी भी मिल गयी. 1980 में कांग्रेस पूरी शक्ति के साथ दोबारा सत्ता में आयी. यह सभी सिर्फ विरोध के कारण ही हुआ. लगता है खालिस विरोध से ही अब भी दिल्ली के आगामी चुनाव में कांग्रेस हमदर्दी से ही कुछ बढ़त हासिल कर जाए.
किसी ने ठीक ही कहा है कि यदि किसी को गिराना ही है, तो उसे सिर्फ नजरों से ही गिरा दीजिये, बाकी कुछ करने की जरूरत नहीं है. यहां अश्लीलता का विरोध तो जायज है, मगर दुर्भाग्य से विरोध से कुछ उल्टा ही हो रहा है. इसलिए विरोधियों को भी इस पर कुछ गंभीरता से सोचना होगा. देश में पीके फिल्म का विरोध कर लोगों ने उसकी आय को बढ़ाने में अहम भूमिका निभायी है.
वेद, नरेला, दिल्ली

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