हर वित्तीय वर्ष में अक्तूबर से फरवरी तक सरकारी स्वास्थ्य विभागों को एक खास लक्ष्य पूरा करना होता है. यह लक्ष्य होता है केंद्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम का. आबादी की बढ़वार नियंत्रण में रहे, जच्चा-बच्चा स्वस्थ जीवन गुजारें, ऐसी नीतिगत समझ के साथ परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत जिलों में नसबंदी शिविर लगते हैं.
इन शिविरों में हुई नसबंदी की संख्या पर परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता निर्भर करती है, और इसी आधार पर मानव-विकास के सूचकांकों में जिलों और राज्यों की जगह तय होती है. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के संकरी गांव में लगे स्वास्थ्य शिविर में आंकड़े बढ़ाने के फेर में जिले के सिविल सर्जन की देखरेख में 6 घंटे के भीतर 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी गयी. इस हड़बड़ी के परिणामस्वरूप अब तक आठ महिलाओं की मौत हो चुकी है और 32 महिलाओं की हालत गंभीर है. छत्तीसगढ़ में ही पिछले तीन वर्षो में आंखों के ऑपरेशन के कैंपों में 60 से अधिक लोग अपनी दृष्टि खो चुके हैं. हकीकत यह है कि ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण भी स्वास्थ्य शिविरों लोगों की भीड़ बढ़ रही है.
क्या देश मौजूदा 1,48,366 स्वास्थ्य उपकेंद्रों, 24,049 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और 4,833 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के बूते करीब 6,36,000 गांवों में रहनेवाले 70 करोड़ भारतीयों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरत की पूर्ति कर लेगा? सरकारी आंकड़े ही कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में फिलहाल 9,814 स्वास्थ्य केंद्रों और 12,300 विशेषज्ञ चिकित्सकों (करीब 64 फीसदी) की कमी है.
देश की 31 फीसदी ग्रामीण आबादी को औसतन 30 किलोमीटर के बाद ही शुरुआती उपचार हासिल हो पाता है. मौजूदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 74.9 फीसदी सर्जन, 65.1 फीसदी प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, 79.6 फीसदी फिजिशियन तथा 79.8 प्रतिशत बाल-रोग विशेषज्ञ की कमी है. जब तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य-सेवा की ढांचागत कमियों को दूर नहीं कर लिया जाता, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की कहानी अलग-अलग रूपों में कभी बंगाल के मालदा में, कभी बिहार के मुजफ्फरपुर में, तो कभी यूपी के गोरखपुर में दोहरायी जाती रहेगी और जननी एवं शिशु अकाल मृत्यु को अभिशप्त रहेंगे.