झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स का हाल बेहाल है. जूनियर डॉक्टरों का मारपीट करके हड़ताल पर चले जाना आम बात हो गयी है. अभी चल रही हड़ताल की वजह से एक दर्जन मरीजों की जान जा चुकी है.
वहीं, 600 से अधिक मरीजों को दूसरी जगह जाना पड़ा है. राज्य का इकलौता बड़ा सरकारी अस्पताल होने की वजह से रिम्स में सभी जिलों के लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं. पड़ोसी राज्यों छत्तीसगढ़, बंगाल व बिहार तक से मरीज इलाज कराने आते हैं.
रिम्स में कई बेहतरीन डॉक्टर हैं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक है. ऐसे में जूनियर डॉक्टरों की आये दिन हड़ताल अस्पताल की प्रतिष्ठा पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न् बन गयी है. यहां आकर डॉक्टरी पढ़नेवाले छात्रों का कानून अपने हाथ में लेना और बात-बात पर मारपीट करना अच्छी बात नहीं है. इसको रोकने का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए. सरकार के स्तर पर डॉक्टरों की सुरक्षा का इंतजाम होना चाहिए. रिम्स प्रशासन स्थिति नियंत्रण के बाहर होने तक हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है. उसे तुरंत सक्रिय होने की जरूरत है.
अस्पताल इलाज के लिए है, इसे रणक्षेत्र क्यों बनने दिया जाता है? अब तो रिम्स में बात-बात पर उपद्रव हो जाना आम बात हो गयी है. अब भी देर नहीं हुई है, प्रशासन को चाहिए कि दोषी जूनियर डॉक्टरों पर कार्रवाई करके हड़ताल समाप्त करवाये, जिससे मरीजों का सुचारु रूप से इलाज हो सके . डॉक्टर और मरीज का संबंध सौहार्दपूर्ण होना बेहद जरूरी है.
यह भी ध्यान रखना होगा कि किसी पक्ष का अपमान न हो. असामाजिक तत्व ऐसे मौके की तलाश में रहते हैं, ताकि वे अपना उल्लू सीधा कर सकें . चिकित्सकों को भी बेहतर सुरक्षा मुहैया करायी जाये. ऐसा मरीज का बेहतर ख्याल रखने के लिए बहुत जरूरी है. फिलहाल बात काफी आगे बढ़ चुकी है. इस लिए मामले का निदान संजीदगी से करना होगा. जूनियर डॉक्टरों को भी संजीदगी से जिम्मेदारी का अहसास कराना पड़ेगा. संवाद से हर समस्या का समाधान संभव है. जरूरी है कि सभी पक्ष सूझबूझ से काम लें. भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसका ख्याल रखा जाये. सभ्य समाज में हिंसा और उपद्रव की इजाजत किसी भी पक्ष को नहीं दी जा सकती. रिम्स को बेहतर इलाज की जरूरत आन पड़ी है.