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चुनावी समर में गंभीरता जरूरी

चुनावी समर में आरोप प्रत्यारोप के साथ निम्न स्तरीय भाषा शैली का प्रयोग आज बहुत ही सामान्य हो गया है. आनेवाले दिनों में झारखंड के विधानसभा चुनाव का प्रचार बेशक इस दलील को सही साबित करेगा. लेकिन राजनीतिक दलों ªद्वारा जरूरी चुनावी मुद्दों को बेहतर तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत कर इनके निदान के […]

चुनावी समर में आरोप प्रत्यारोप के साथ निम्न स्तरीय भाषा शैली का प्रयोग आज बहुत ही सामान्य हो गया है. आनेवाले दिनों में झारखंड के विधानसभा चुनाव का प्रचार बेशक इस दलील को सही साबित करेगा. लेकिन राजनीतिक दलों ªद्वारा जरूरी चुनावी मुद्दों को बेहतर तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत कर इनके निदान के लिए प्रयास अति सराहनीय पहल हो सकती है.

राजनीतिक दलों को लुभावनी, भड़काऊ एवं कर्णप्रिय बातों के जरिये अपनी नैया पार करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. तार्किक एवं ज्वलंत मुद्दों को गंभीरता से लेते हुए इस चुनावी दंगल में लोगों का समर्थन एवं विश्वास हासिल करना चाहिए. आज भारत के साथ सारा विश्व प्रदूषण, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता, धार्मिक असहिष्णुता जैसी समस्याओं से जूझ रहा है.
इस संदर्भ में आदिवासियों के अस्तित्व की रक्षा और उनकी मौजूदा समस्याओं को अनदेखा करना ठीक नहीं है. कई मायनों में आदिवासियों की जीवनशैली एवं उनका जीवन दर्शन हमारी वर्तमान समस्याओं के निदान में मील का पत्थर साबित हो सकता है.
राजेंद्र टेटे, हजारीबाग

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