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आरसीइपी : दुग्ध उत्पादकों पर संकट
योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com अगले सप्ताह भारत सरकार एक दूरगामी व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करनेवाली है, जिससे भारत के किसानों और दुग्ध उत्पादकों के बर्बाद होने की आशंका है.खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार नवंबर को इस पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं. रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीइपी) यानी क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी के […]
योगेंद्र यादव
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
अगले सप्ताह भारत सरकार एक दूरगामी व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करनेवाली है, जिससे भारत के किसानों और दुग्ध उत्पादकों के बर्बाद होने की आशंका है.खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार नवंबर को इस पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं. रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीइपी) यानी क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी के नाम से 16 देशों के बीच प्रस्तावित इस मुक्त व्यापार समझौते में दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिणी कोरिया के साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं. यानी इस समझौते के तहत दुनिया की आधी आबादी और 40 प्रतिशत आर्थिक ताकत शामिल हो जायेगी. इस समझौते के लिए बातचीत पिछली कांग्रेस सरकार के समय 2012 में शुरू हो गयी थी.
हैरानी की बात यह है कि सात साल तक 26 राउंड की आधिकारिक चर्चा के बावजूद देश में अभी तक इस समझौते के बारे में किसी को आधिकारिक जानकारी नहीं है.
हस्ताक्षर की तैयारी है, लेकिन आज तक समझौते का मसविदा सार्वजनिक नहीं किया गया है. खबर यह है कि पिछले साल सभी देशों में समझौते के मुख्य अंशों को सार्वजनिक करने की बात उठी, तो भारत सरकार की जिद पर इसे गुप्त बनाये रखा गया. कृषि और डेयरी के लिए जिम्मेदार राज्य सरकारों के साथ इसके बारे में कोई बातचीत नहीं हुई है. संसद या संसद की समिति में भी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई है.
आरसीइपी भारत का कोई पहला मुक्त व्यापार समझौता नहीं है. भारत पहले ही विश्व व्यापार संघ (डब्लयूटीओ) का सदस्य है और अब तक 42 मुक्त व्यापार समझौते कर चुका है. इनके तहत कई देशों के साथ भारत का व्यापार शुल्क रहित होता है.
लेकिन, अब तक यह सब समझौते सीमित थे. डब्लयूटीओ में शामिल होने के बावजूद भारत सरकार ने कृषि उत्पाद और दूध आदि को मुक्त व्यापार (फ्री ट्रेड) से काफी हद तक बचाये रखा है. आरसीइपी पहला बड़ा मुक्त व्यापार समझौता होगा, जिसका असर सीधे-सीधे किसानों पर पड़ेगा.
आरसीइपी को लेकर आशंका यह है कि इस समझौते के बाद भारत समेत सभी देशों को कृषि पदार्थों के आयात पर लगे शुल्क हटाने होंगे. इसके चलते एक दो फसलों में भारत के किसान को फायदा हो सकता है. लेकिन, अनेक फसलों में भारत की कृषि पर बाहरी देशों से बड़े पैमाने पर आयात का खतरा होगा, जिससे बाजार में फसलों के दाम और भी गिर जायेंगे.
श्रीलंका और दक्षिण-पूर्वी एशिया से हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद काली मिर्च, इलायची, नारियल और रबड़ के किसान बरबादी झेल चुके हैं. पाम ऑयल के बड़े पैमाने पर आयात की वजह से भारतीय बाजार में तिलहन के दाम गिरे हैं. दाल का आयात होने पर किसान को होनेवाला असर हम पहले ही देख चुके हैं. अब तक तो सरकार शुल्क बढ़ा कर इस आयात से किसान को बचा सकती थी. लेकिन, अब यह समझौता लागू होने के बाद सरकार के हाथ से यह अधिकार भी चला जायेगा.
आरसीइपी की सबसे बड़ी मार डेयरी सेक्टर यानी दुग्ध उत्पादकों पर पड़ेगी. वैसे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है और दूध के मामले में आत्मनिर्भर है. लेकिन, ऑस्ट्रेलिया और खासतौर पर न्यूजीलैंड बड़े पैमाने पर निर्यात के लिए दूध का उत्पादन करता है.
फिलहाल भारत सरकार ने विदेश से दूध और दूध पावडर के आयात पर 34 प्रतिशत शुल्क लगाकर दुग्ध उत्पादक को बचाया हुआ है. लेकिन, आरसीइपी लागू होने पर इस शुल्क को हटाना पड़ेगा. न्यूजीलैंड अगर अपने दूध उत्पादन का पांच प्रतिशत भी भारत में बेच देता है, तो भारतीय बाजार में दूध की बाढ़ आ जायेगी. न्यूजीलैंड से दूध का पाउडर आयेगा और उसे ताजा दूध बनाकर बेचा जायेगा. भारत के 10 करोड़ दूध उत्पादक और डेयरियां बरबाद हो जायेंगी.
शुल्क घटने के अलावा और आशंकाएं भी हैं. इस समझौते में बीज की कंपनियों की पेटेंट की ताकत बढ़ जायेगी. इस तरह के समझौतों में मुकदमा विदेशी मंच पर होता है और खुफिया तरीके से चलता है. खतरा यह भी है कि इस समझौते से विदेशी कंपनियों को हमारे यहां खेती की जमीन खरीदने का अधिकार मिलेगा. उन्हें फसलों की सरकारी खरीद में भी हिस्सा लेने का मौका मिलेगा.
यह आशंकाएं हवाई नहीं है. इन्हें व्यक्त करते हुए पंजाब और केरल की सरकार ने औपचारिक रूप से केंद्र सरकार को लिखा है, मांग की है कि उसे चर्चा में शामिल किया जाये. अमूल डेयरी सहित देश के अधिकांश सहकारी डेयरी संघ इस बारे में वाणिज्य मंत्री को मिल कर अपनी आशंका जता चुके हैं.
अमूल डेयरी के महा प्रबंधक और डेयरी के नामी-गिरामी एक्सपर्ट डॉक्टर सोढ़ी खुल कर इस समझौते के खिलाफ बोल रहे हैं. देशभर के अनेक संगठन इसके खिलाफ एक दिवसीय विरोध व्यक्त कर चुके हैं. यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित स्वदेशी जागरण मंच भी खुल कर इस समझौते के विरुद्ध बोल रहा है.
लेकिन सरकार मौन है. सिर्फ गाहे-बगाहे इतना बोल देती है कि राष्ट्रीय हित का ध्यान रखा जायेगा. लेकिन, डर बना हुआ है कि आइटी और फार्मा उद्योगों में कुछ लाभ लेने के लिए किसानों के हितों की कुर्बानी दी जा रही है. राष्ट्र के किस हित का कितना ध्यान रखा गया है, यह तो चार नवंबर को ही पता लग पायेगा.
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