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थर्ड जेंडर को समाज में नहीं मिल रहा समान हक

हमारा समाज पुरुषवादी समाज है, जो लिंग के आधार पर दो वर्गों को स्वीकार किया है, जिसमें स्त्री और पुरुष हैं. लेकिन, कुछ ऐसे भी मानवीय प्राणी हैं, जिन्हें हम न तो स्त्री वर्ग में शामिल कर सकते हैं और न ही पुरुष वर्ग में. इस तरह के लोगों के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष […]

हमारा समाज पुरुषवादी समाज है, जो लिंग के आधार पर दो वर्गों को स्वीकार किया है, जिसमें स्त्री और पुरुष हैं. लेकिन, कुछ ऐसे भी मानवीय प्राणी हैं, जिन्हें हम न तो स्त्री वर्ग में शामिल कर सकते हैं और न ही पुरुष वर्ग में.
इस तरह के लोगों के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 में संवैधानिक मान्यता के तहत थर्ड जेंडर की सूची में रखा. उसे अब भी हमारा समाज सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पाया है. इस द्विलिंगी समाज में दो लिंगों के अलावा भी अन्य लैंगिक पहचान और व्यवहार रखने वाले लोग हैं, जिसे हमारा समाज सहज भाव से स्वीकार नहीं कर पाते हैं. थर्ड जेंडर का वैज्ञानिक पड़ताल भी बताता है कि ऐसे लोग क्रोमोजोम की गड़बड़ी से जन्म लेते हैं, पर व्यवहार में स्त्री और पुरुष जैसे ही होते हैं.
नितेश कुमार सिन्हा, मोतिहारी

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