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चिंताजनक मॉनसून

इस वर्ष मॉनसून में प्रगति 12 सालों में सबसे धीमी है. आम तौर पर इस समय तक देश के दो-तिहाई हिस्सों में मॉनसून आ जाता है, किंतु अभी इसकी पहुंच 10-15 फीसदी इलाकों तक ही हो सकी है और यह 15 दिनों की देरी से गतिमान है. एक जून से अब तक देशभर में औसतन […]

इस वर्ष मॉनसून में प्रगति 12 सालों में सबसे धीमी है. आम तौर पर इस समय तक देश के दो-तिहाई हिस्सों में मॉनसून आ जाता है, किंतु अभी इसकी पहुंच 10-15 फीसदी इलाकों तक ही हो सकी है और यह 15 दिनों की देरी से गतिमान है.
एक जून से अब तक देशभर में औसतन 44 फीसदी बारिश कम हुई है और महीने के आखिर तक यह आंकड़ा 40 फीसदी के आस-पास रहने की आशंका है. मॉनसून-पूर्व बारिश में कमी, सूखते जलाशय और करीब आधे देश में सूखे की स्थिति के बाद मॉनसून का इस हद तक कमजोर होना ढाई ट्रिलियन डॉलर की हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बेहद निराशाजनक है. सालाना बारिश में जून और सितंबर के बीच बरसनेवाले पानी का हिस्सा लगभग 70 फीसदी होता है. इस कमी का सीधा असर खरीफ की बुवाई पर पड़ा है.
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 14 जून तक 8.22 मिलियन हेक्टेयर रकबे में बुवाई हुई है, जो इसी अवधि में पिछले साल के आंकड़े से नौ फीसदी कम है. हालांकि, इस हालत में सुधार की गुंजाइश है, पर फसलों की बुवाई के दिन बहुत सीमित होते हैं और उसके बाद भी उन्हें पानी की दरकार होती है. जलाशयों और नहरों में पानी की कमी के कारण सिंचित क्षेत्रों में भी अनिश्चितता बनी हुई है तथा असिंचित रकबा तो मॉनसून पर निर्भर है ही. इस महीने की 13 तारीख तक जलाशयों में कुल क्षमता का 18 फीसदी पानी ही बचा हुआ था. इस संबंध में एक चिंता खाद्यान्न और सब्जियों की कीमत को लेकर है, लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति के निम्न स्तर पर रहने के कारण ऐसा होने की संभावना नहीं है. परंतु फसलों के कम उत्पादन से किसानों की आमदनी घट सकती है.
इससे कृषि संकट बढ़ सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में कमी आ सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. हालांकि, देश के सकल घरेलू उत्पादन में खेती का योगदान लगातार कम हो रहा है, किंतु आज भी इस पर आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा सीधे या परोक्ष तौर पर निर्भर करता है.
वाहन, उपभोक्ता वस्तु, सीमेंट, ट्रैक्टर एवं किसानी के उपकरण आदि औद्योगिक उत्पादन के अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्र ग्रामीण और कस्बाई बाजार में मांग बढ़ने की उम्मीद लगाये बैठे हैं. बीते कुछ महीनों के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इन सभी वस्तुओं की मांग घट रही है. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारणों से अर्थव्यवस्था की बढ़त पहले से ही कुछ नरम है. सूखे और जल-संकट के कारण अनेक इलाकों से बड़े स्तर पर लोगों का पलायन हो रहा है.
इससे शहरी संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा तथा ऐसे लोगों के लिए रोजगार जुटाने की समस्या भी पैदा होगी. तेज गर्मी और पेयजल के अभाव से सामान्य आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है. हालांकि, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने राज्यों को किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा है, पर युद्धस्तर पर प्रयासों की दरकार है.

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