मुल्क बड़ा हो या छोटा, विदेशों की सड़कें वहां जाने पर हमें आकर्षित करती हैं. हमारा देश विकसित राष्ट्र बनने की तरफ तेजी से बढ़ रहा है, मगर क्या हम तरक्की के राजमार्गों के लिए वाकई तैयार हैं? दुनिया के मुकाबले पिछड़ने की वजह हमारी सोच और शिक्षा तो नहीं!
जिस मुल्क में आजादी के 70 सालों बाद भी शौचालय के इस्तेमाल पर ज्ञान की घुट्टी पिलायी जाए, वहां लोगों को राजमार्गों की कीमत समझने में वर्षों लग जाएं, तो आश्चर्य नहीं. आज भी कई मुख्य मार्गों पर लोग चौपाल से लेकर खलिहान तक बनाये बैठे हैं. रास्ते किनारे आने वाले गैराजों, हवा मशीनों और खोमचे-ठेलों ने पैदल-पथ को कारोबारी इस्तेमाल में ले रखा है.
बाकी कसर छोटी गाड़ियों ने जगह-जगह पार्किंग कर पूरी कर दी है. कब्जों का हक में तब्दील होना सियासत की पहली सीढ़ी बन जाती है. वक्त रहते सड़कों को सिमटने से न रोका गया, तो सुधार की हर कोशिश नाकाम हो जायेगी और आने वाले समय में यह परेशानी नासूर बन जायेंगी. इसलिए सरकार हो या प्रशासन या नागरिक संगठन, सब को सचेत होना होगा.
एमके मिश्रा, रातू, रांची