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मौका भी है, दस्तूर भी
चुनाव हारने के बाद नैतिक जिम्मेवारी लेना और इस्तीफे देना एक आम रिवाज है. देश की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस के अध्यक्ष का दबाव में दिखना अप्रत्याशित भी नहीं है. कांग्रेस पुराने ढर्रे पर चल कर सभी नुकसानों की भरपाई की नाकाम कोशिश करती रही. पार्टी मुखिया के […]
चुनाव हारने के बाद नैतिक जिम्मेवारी लेना और इस्तीफे देना एक आम रिवाज है. देश की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस के अध्यक्ष का दबाव में दिखना अप्रत्याशित भी नहीं है.
कांग्रेस पुराने ढर्रे पर चल कर सभी नुकसानों की भरपाई की नाकाम कोशिश करती रही. पार्टी मुखिया के अंदाज में गर्मजोशी की कमी पहले ही जाहिर हो चुकी थी. वंशवाद के दाग से उबरने की कोशिशों के बावजूद वंश के चक्रव्यूह से निकलने में पार्टी पूरी तरह असफल रही.
डरे-सहमे कांग्रेस अध्यक्ष के मुंह से आखिरकार वह दर्द छलक ही आया. बेशक कांग्रेस की जड़ को दीमकों ने खोखला कर दिया है, मगर निजात पाने की कोशिशों में कहीं पुराना दरख्त जमींदोज न हो जाए. ऐसे में दल में नयी जान फूंकने के वास्ते एक जादुई चेहरे की जरूरत होगी, जो राजनीति के पुराने सिलेबस से निकल कर केमेस्ट्री के नये नुस्खे आजमाने का हौसला रख सके.
एमके मिश्रा, मां आनंदमयीनागर,रातू, रांची
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