वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के उद्देश्य से तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप सार्वजनिक चर्चा के लिए उपलब्ध है. कस्तूरीरंगन समिति ने इसमें अनेक सुझाव दिये हैं और उनका लक्ष्य छात्रों को कौशल एवं ज्ञान से संपन्न करना, विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और उद्योग में योग्य लोगों की कमी को पूरा करना तथा शिक्षा की पहुंच, समता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के साथ उसे सस्ता और उत्तरदायित्वपूर्ण बनाना है.
स्वर्गीय टीएसआर सुब्रमण्यम की अगुआई में बनी एक समिति ने 2016 में एक रिपोर्ट दी थी, जो देश के कोने-कोने में आयोजित बैठकों में हुई व्यापक चर्चा के आधार पर लिखी गयी थी. उसके आधार पर मानव संसाधन मंत्रालय ने भी सुझावों की एक सूची बनायी थी.
समीक्षा और संशोधन के बाद स्वीकृत होने पर कस्तूरीरंगन रिपोर्ट आगामी दो दशकों तक शिक्षा तंत्र को निर्देशित करेगी. अभी जो नीति चल रही है, उसे 1986 में लागू किया गया था और 1992 में उसमें कुछ संशोधन हुए थे. करीब तीन दशकों की इस अवधि में देश-दुनिया में बहुत तेजी से बदलाव हुए हैं, जिनके हिसाब से शिक्षा व्यवस्था को भी बदलने की दरकार है. प्रस्ताव में आंगनबाड़ी, प्री-स्कूल और प्राथमिक शिक्षा को जोड़ा गया है, ताकि बच्चों में शुरू में ही स्कूल छोड़ने की दर को रोका जा सके. शिक्षा के अधिकार के तहत माध्यमिक और 12वीं तक के छात्रों को लाना भी सराहनीय है.
यदि इसे ठीक से लागू किया गया, तो मौजूदा 14 साल की जगह बच्चे 18 साल तक अनिवार्य शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे. क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर दिया जाना भी भाषायी विकास के साथ ज्ञान-विज्ञान में विभिन्न भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकता है.
जहां तक त्रिभाषा सूत्र के हिसाब से कुछ हिस्सों में हिंदी पर हो रहे विवाद का प्रश्न है, इसे संवाद के माध्यम से हल किया जा सकता है. सरकार ने भी कहा है कि प्रस्ताव का उद्देश्य किसी भाषा को थोपने का नहीं है. देश में उच्च एवं पेशेवर शिक्षा को बेहतर बनाने के इरादे से नियामक संस्था बनाने का सुझाव बेहद अहम है. अनेक उपलब्धियों के बावजूद शिक्षा के इस हिस्से की हालत संतोषजनक नहीं है.
शोध व अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रबंधन और निवेश के लिए एक राष्ट्रीय संस्था की स्थापना का प्रस्ताव बहुत सराहनीय है. अंतरराष्ट्रीय स्तर के साथ सामंजस्य तथा छात्रों की क्षमता एवं सामाजिक-भावनात्मक विकास से जुड़े पहलुओं को ध्यान में रखते 10+2 की व्यवस्था में बदलाव का भी स्वागत होना चाहिए. व्यापक विमर्श पर आधारित होने के बाद भी प्रारूप के संदर्भ में सुझावों और बहसों का सिलसिला स्वाभाविक है.
उम्मीद है कि शीघ्र ही इस नीति को अपेक्षित संशोधनों के साथ लागू कर दिया जायेगा, ताकि हमारी शिक्षा व्यवस्था विश्वस्तरीय बन सके. आम सहमति या संसाधनों के अभाव में यदि पूरे सुझाव को अमल में लाने में देरी हो, तो आंशिक रूप से ही नीति को प्रभावी बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देनी चाहिए.