डॉ अश्वनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
लोकसभा चुनाव अब सिर पर हैं और राजनीतिक पार्टियां चुनावी गुणा-गणित में लगी हुई हैं. इसी बीच कांग्रेस ने कहा है कि वह 20 प्रतिशत गरीब परिवारों के लिए 6,000 रुपये प्रतिमाह की न्यूनतम आय सुनिश्चित करेगी. हालांकि, इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि क्या इन 20 प्रतिशत परिवारों को चिह्नित कर हर गरीब परिवार के खाते में 6,000 रुपये प्रति माह भेजा जायेगा, या 6,000 रुपये से कम आमदनी को टॉपअप करते हुए भरपाई करके इतने रुपये की आय सुनिश्चित होगी.
बीते वर्षों में हमारे देश में गरीबी घटने के बावजूद अब भी 20 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करते हैं. इसलिए पिछले कुछ समय से गरीबों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी को लेकर बात चलती रही है.
अब सवाल यह उठता है कि न्यूनतम आय की गारंटी या यूं कहें कि ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ कैसे सुनिश्चित हो? गरीबी की सरकारी परिभाषा है कि एक परिवार के पास पेट भरने और अत्यंत मामूली शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधा हेतु भी पैसा नहीं है. भले सरकारी आंकड़े यह कहते हों कि देश में 20 प्रतिशत परिवार ही गरीब हैं, वास्तव में गरीबी से नीचे बसर करनेवालों की संख्या इससे अधिक है. देश में कौन गरीब है, यह निर्विवाद रूप से चिह्नित करने में सरकारें असफल रही हैं.
एक अंदाजा बीपीएल कार्डों की संख्या से लगाया जा सकता है. लेकिन इसमें एक बड़ी कमी दिखाई देती है. लगभग डेढ़ दशक पहले सरकार द्वारा गठित एनसी सक्सेना कमेटी की रपट के अनुसार देश में जिनके पास बीपीएल कार्ड है, उसमें से 50 प्रतिशत ऐसे हैं जो इसके पात्र नहीं हैं, यानी उन्होंने गलत तरीके से कार्ड बनवा लिया है. इस कमेटी ने यह भी कहा कि देश में कुल बीपीएल परिवारों में से 50 प्रतिशत ऐसे परिवार भी हैं, जिनके पास बीपीएल कार्ड है ही नहीं.
वर्तमान केंद्रीय वित्त मंत्री ने न्यूनतम आय की गारंटी के इस प्रस्ताव को यह कहकर खारिज किया है कि सरकार इस राशि से कहीं ज्यादा पैसा गरीबों के खातों में भेज रही है.
देखा जाये तो 20 प्रतिशत परिवार यानी करीब 5 करोड़ परिवारों को 72,000 रुपये सालाना दिये जाने का मतलब है कुल 3,60,000 करोड़ रुपये का सालाना सरकारी खर्च. न्यूनतम आय गारंटी की बात सबसे पहले भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में वर्ष 2016-17 में आयी थी. तब कहा गया था कि सैद्धांतिक रूप से एक बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ-साथ एक न्यूनतम आय सुनिश्चित करना और उसके माध्यम से सामाजिक न्याय आज की जरूरत है.
यह बात भी कही गयी कि यह न्यूनतम आय गारंटी योजना वर्तमान में चल रही विविध सरकारी योजनाओं के एवज में होगी. सरकारी योजनाओं में संसाधनों का असमान विस्तार होता है. ऐसे में न्यूनतम आय की गारंटी अकुशलताओं से छुटकारा पहुंचा सकती है.
पिछले कुछ समय से विभिन्न प्रकार की सब्सिडी लक्षित रूप से लाभार्थियों तक पहुंचायी जा रही है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि 72,000 रुपये की न्यूनतम आय गारंटी एक छलावा है, क्योंकि वर्तमान में सरकार द्वारा गरीबों को लगभग पांच लाख 34 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी का प्रत्यक्ष हस्तांतरण उनके बैंक खातों में सीधा किया जा रहा है. इसका औसत लें, तो यह 1,06,800 रुपया प्रति गृहस्थ है. इस डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) में 1.84 लाख करोड़ रुपया राइट टू फूड के लिए, 75 हजार करोड़ रुपया किसान सम्मान निधि के लिए और 20 हजार करोड़ रुपया आयुष्मान भारत के लिए शामिल है.
चूंकि कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित 72,000 रुपये की न्यूनतम आय गारंटी के प्रस्ताव में नहीं बताया गया कि इसमें वर्तमान डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर का क्या हश्र होगा, लेकिन यह बात स्पष्ट है कि न्यूनतम आय गारंटी के लिए सरकारी बजट को तीन लाख 60 हजार करोड़ रुपये बढ़ाया जाना नामुमकिन है.
गौरतलब है कि वर्ष 2019-20 के केंद्रीय बजट में कुल 27.84 लाख करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है. इस खर्च को पूरा करने के लिए 17.05 लाख करोड़ रुपया टैक्स और 10.8 लाख करोड़ रुपया अन्य स्रोतों, जैसे उधार और अन्य से प्राप्त होगा.
चूंकि शेष सभी प्रकार के खर्च पहले से ही स्थायी रूप से प्रतिबद्ध हैं, इसलिए गरीबों के खाते में हर साल 72,000 रुपये डालना तभी संभव हो सकता है, जब उनको दी जानेवाली सीधी सहायता में कटौती की जाये. वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में दिये न्यूनतम आय गारंटी के प्रस्ताव को यदि आधार बनाया जायेगा, तो स्वाभाविक रूप से इन प्रत्यक्ष सहायताओं में कटौती की जायेगी. इसलिए वित्त मंत्री का यह कहना कि न्यूनतम आय गारंटी एक छलावा है, सही प्रतीत होता है.
लोगों को बिना काम किये न्यूनतम आय देना अकर्मण्यता को बढ़ावा दे सकता है. जहां तक सस्ता अनाज, सस्ता ईंधन, किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने का सवाल है, ये सब काम करने की प्रेरणा को बाधित नहीं करते. सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाओं पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है.
बजट का आकार बढ़ाना संभव नहीं, इसलिए न्यूनतम आय गारंटी देने से सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी योजनाओं और डीबीटी से पीछे हटना पड़ेगा. इसलिए वर्तमान में कुशलतापूर्वक चल रही योजनाओं को बाधित करने से वास्तविक रूप से गरीबों की हालत को सुधारने के प्रयासों को धक्का लगेगा. उम्मीद है कि राजनीतिक दल परिपक्वता से कार्य करेंगे.