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पाकिस्तान का उकसावा

इमरान खान सरकार से यह उम्मीद की जा रही थी कि भारत के साथ उसके रिश्ते बेहतर होंगे, लेकिन यह उम्मीद लगातार टूटती जा रही है. बीते हफ्ते लाहौर में आतंकी सरगना हाफिज सईद को खुलेआम कश्मीर के नाम पर भारत के खिलाफ जहर उगलने की मंजूरी देकर पाकिस्तान सरकार ने यही इंगित किया है […]

इमरान खान सरकार से यह उम्मीद की जा रही थी कि भारत के साथ उसके रिश्ते बेहतर होंगे, लेकिन यह उम्मीद लगातार टूटती जा रही है. बीते हफ्ते लाहौर में आतंकी सरगना हाफिज सईद को खुलेआम कश्मीर के नाम पर भारत के खिलाफ जहर उगलने की मंजूरी देकर पाकिस्तान सरकार ने यही इंगित किया है कि उसकी नीतियां पिछली सरकारों से अलग नहीं हैं.

सईद संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी करार दिया जा चुका है और उसी ने मुंबई हमले की साजिश रची थी. हालांकि भारत ने जोरदार विरोध जताते हुए पाकिस्तान से मांग की है कि वह अपनी जमीन पर भारत के खिलाफ किसी गतिविधि की अनुमति न दे, पर इसका शायद ही कोई असर होगा.

पिछले हफ्ते ही ब्रिटिश संसद के परिसर में आयोजित एक भारत-विरोधी आयोजन में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हाफिज सईद की तरह ही बातें कीं. सितंबर में इमरान सरकार में मजहबी मामलों के मंत्री नूरूल हक कादरी ने हाफिज सईद के साथ एक ही मंच पर खड़े होकर भारत-विरोधी बयानबाजी की थी.

दिसंबर में वहां के गृह राज्यमंत्री शहरयार खान अफरीदी ने हाफिज सईद और उसके गिरोहों के प्रति समर्थन की खुली घोषणा की थी. साल 2018 में दोनों देशों की सीमा और नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा युद्धविराम के उल्लंघन की 2,936 घटनाएं हुई हैं.

यह संख्या 2017 की 971 घटनाओं से तीन गुनी अधिक है. पंद्रह सालों में यह सबसे बड़ी संख्या है. इससे यही जाहिर होता है कि 2003 में एक-दूसरे पर गोलाबारी न करने का समझौता बेमानी हो चुका है.

उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के बीच 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें 221 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा और 740 किलोमीटर नियंत्रण रेखा जम्मू-कश्मीर में है. कश्मीर में घुसपैठ के जरिये आतंकी भेजने और अलगाववादियों को शह देने की पाकिस्तानी नीति भी बदस्तूर जारी है. इसके अलावा नशीले पदार्थों की तस्करी तथा अपराधियों को शरण देने की उसकी परिपाटी भी नहीं बदली है.

दशकों से भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तथा द्विपक्षीय संवादों में यह कहता रहा है कि आतंकवाद वास्तव में पाकिस्तान की विदेश, रक्षा और आंतरिक नीतियों का अभिन्न हिस्सा है. भारत समेत दक्षिण एशिया के अनेक देशों में उसकी हरकतों का संज्ञान वैश्विक स्तर पर भी लिया जाता रहा है, पर अफसोस की बात यह है कि प्रभावशाली देशों ने इस समस्या को अपने स्वार्थ के हिसाब से देखा है, जिसके कारण पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी है.

मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर चीन का वीटो और पाकिस्तान में भारी निवेश, रूस द्वारा पाकिस्तान के साथ सामरिक समझौता करना, सामरिक आर्थिक सहयोग रोकने के बाद भी अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान मसले में पाकिस्तान को महत्व देना तथा ब्रिटेन द्वारा पाकिस्तान के भारत-विरोधी अभियान के लिए संसद परिसर के इस्तेमाल की अनुमति देना इस रवैये के कुछ ठोस उदाहरण हैं. ऐसे में भारत को पाकिस्तान के बरक्स अपनी कूटनीति और रणनीति पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए.

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