जगदीप छोकर
सह-संस्थापक, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म्स
jchhokar@gmail.com
इवीएम को लेकर बीते दिनों लंदन में हुए एक प्रेस कांफ्रेंस में जो बातें सामने आयीं, उसके बाद फिर से इवीएम हैकिंग पर चर्चा निकल पड़ी है. हालांकि, उस प्रेस कांफ्रेंस में जिस व्यक्ति को बोलना था, वह नहीं आया, लेकिन उसने स्काइप के जरिये अपनी बात रखी.
उस प्रेस कांफ्रेंस में इवीएम के हैक होने को लेकर कोई सबूत नहीं रखा गया, सिर्फ बातें ही हुईं कि इसे हैक किया जा सकता है. अगर आप ध्यान दें, तो जिस दिन से इवीएम से छेड़छाड़ को लेकर चर्चा गर्म है, तब से आज तक कोई ठोस सबूत नहीं आया है कि सचमुच इवीएम की हैकिंग या छेड़छाड़ हो सकती है.
लोगों ने अभी तक सिर्फ दावे ही किये हैं कि इवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है. फिर से बैलेट पेपर से चुनाव कराने के बारे में सोचने से ज्यादा अच्छा होता कि हम इवीएम की तकनीकी खामियों (सचमुच में अगर खामियां हैं तो) को दूर करने के बारे में सोचते.
कुछ समय पहले जब कुछ दलों ने इवीएम पर सवाल उठाये थे, तब चुनाव आयोग ने उन्हें बुलाकर कहा था कि आप इसमें गड़बड़ी करके दिखाएं, तभी आपकी बात मानी जायेगी. तब सिर्फ दो दल गये थे, लेकिन उन्होंने वहां जाकर कहा कि हम तो बस यह देखने आये हैं कि इवीएम चलता कैसे है, हमें इवीएम को गड़बड़ करने नहीं आता.
इवीएम का विरोध करनेवाले सारे लोग सिर्फ बातें ही करते हैं, कोई ठोस सबूत पेश नहीं करते. इवीएम से वोट देने के लिए जब मतदाता बटन दबाता है, तो उसमें से एक प्रकार की सीटी की तरह आवाज आती है और वोट दर्ज हो जाता है. अब तो कुछ जगह पर इवीएम में वीवीपीएटी की भी व्यवस्था हो गयी है. वोट डाले जाने के बाद मशीन से वीवीपीएटी के जरिये ही पर्ची निकलती है, जिससे मतदाता को फौरन यह पता चल जाता है कि उसका वोट सही जगह पड़ा है.
अक्सर सुनने में आता है, लोग यह कहते हैं कि दूसरे कई देशों में चुनाव में इवीएम की जगह फिर से बैलेट पेपर का इस्तेमाल होने लगा है, तो फिर भारत में क्यों नहीं. चुनाव बाद आरोप लगाये जाते हैं कि फलां पार्टी ने इवीएम से छेड़छाड़ करके वोट अपने पाले में कर लिये. लेकिन, हमें यह समझना होगा कि हर देश में इवीएम से चुनाव न कराने की वजहें अलग-अलग हैं.
मसलन, जर्मनी में अदालत ने कहा था कि सैद्धांतिक तौर पर हमारी चुनाव प्रक्रिया में ऐसी कोई भी चीज घटित नहीं होनी चाहिए, जो वोटर की नजर से छुपी हुई हो. अब चूंकि वोट मशीन में दर्ज हो जाता है, वह बैलेट पेपर की तरह वोटर को नहीं दिखता, इसलिए जर्मनी में इवीएम हटा दिया गया.
हालांकि, इवीएम में वोट पड़ जाने के बाद, वोटों की गिनती कैसे होती है, यह तो किसी को नहीं पता. लेकिन, यह गिनती उसी तरह की होती है, जैसे कैलकुलेटर में होती है या कंप्यूटर में होती है. गिनती तो होती है, लेकिन हमें दिखायी नहीं देती.
बिल्कुल सही-सही गिनती होती है, बशर्ते कोई खराबी न हो. अगर कैलकुलेटर खराब होगा और पांच बटन दबाने पर कोई और नंबर दिखायेगा, तब उसकी गिनती हरगिज सही नहीं हो सकती. इवीएम अगर खराब हो, तो इसके साथ भी ऐसा हो सकता है. लेकिन, इवीएम को उपयोग में लाने से पहले दो बार चेक किया जाता है और जब तक यह पुख्ता नहीं हो जाता कि मशीन सही काम कर रही है, तब तक उसे मतदान स्थल पर नहीं भेजा जाता है.
भारत की इवीएम पूरी दुनिया में अपनी तरह की एक ही है. इसे ‘स्टैंड अलोन मशीन’ कहा जाता है. इनमें कहीं प्लग नहीं होता. ये बैटरी से चलती हैं. इवीएम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि अगर इसमें कोई छेड़छाड़ की कोशिश करता है, तो यह अपने-आप बंद हो जाती है.
दूसरी बात यह है कि इसके ‘स्टैंड अलोन मशीन’ होने की वजह से इसका किसी दूसरी मशीन से कहीं कोई कनेक्शन नहीं है. यह एक महत्वपूर्ण बात है. इसलिए इसमें छेड़छाड़ कर पाना नामुमकिन सा है. यह अलग बात है कि मशीन के चलने में खराब आ जाती है, लेकिन खराबी आ जाना और उसमें छेड़छाड़ करना, इन दोनों बातों में अंतर है. चुनावों में अक्सर मशीनें अपने आप खराब हो सकती हैं, लेकिन इनमें कोई छेड़छाड़ करके वोट अपने पाले में कर लेगा, यह इतनी आसान बात नहीं है.
तीसरी बात यह है कि इन मशीनों के इस्तेमाल करने का प्रोटोकॉल बहुत सुदृढ़ है. इस्तेमाल से पहले पूरी चाकचौबंद सुरक्षा के बीच सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में मशीनों का एक बार ट्रायल होता है. और जब ये मशीनें बूथ पर पहुंच जाती हैं, तब वहां भी एक बार इसी तरह से इनकी चेकिंग होती है. चौथी बात यह है कि यह किसी को पता नहीं होता कि कौन सी मशीन किस बूथ में जायेगी. ऐसे में सवाल है कि कोई किसी मशीन को कैसे छेड़छाड़ कर सकता है.
मैंने पढ़ा है कि किसी मशीन में दो तरीके से छेड़छाड़ संभव है- या तो उसे तार के जरिये किसी अन्य मशीन से जोड़ा जा सके, या फिर उसमें वायरलेस नेटवर्क काम करता हो. इवीएम के साथ यह संभावना नहीं है, क्योंकि यह न तो किसी दूसरी मशीन से जुड़ सकती है और न ही इसमें कोई नेटवर्क काम करता है.
इसलिए इवीएम को लेकर जो बेवजह की चर्चा है, वह बंद होनी चाहिए. मैं समझता हूं कि यह उचित नहीं है. बकौल चुनाव आयुक्त, हमें हरगिज बैलेट पेपर युग में नहीं लौटना है, हां मौजूदा खामियों को तो दूर करना ही होगा.