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पिकनिक नहीं, वन-भोज है!

मिथिलेश कु. राय युवा रचनाकार mithileshray82@gmail.com पिकनिक अपने देहाती रूप ‘वन-भोज’ को लेकर गांव में आज भी लोकप्रिय है. अन्य किसी दिन न सही, लेकिन पहली जनवरी को यह घर से दूर खेतों में (खासकर वहां जहां वन जैसा माहौल हो) अब भी मनाया जाता है और इसके लिए पहले से ही योजनाएं बनने लगती […]

मिथिलेश कु. राय
युवा रचनाकार
mithileshray82@gmail.com
पिकनिक अपने देहाती रूप ‘वन-भोज’ को लेकर गांव में आज भी लोकप्रिय है. अन्य किसी दिन न सही, लेकिन पहली जनवरी को यह घर से दूर खेतों में (खासकर वहां जहां वन जैसा माहौल हो) अब भी मनाया जाता है और इसके लिए पहले से ही योजनाएं बनने लगती हैं.
हालांकि, बड़ी उम्र के लोगों में वन-भोज को लेकर उतनी दिलचस्पी नहीं देखी जाती है. बच्चे और किशोरों की भी एक दुनिया बसती है, जिन्हें लेकर गांव-जवार में वन-भोज अस्तित्व में है और इन्हीं से इसमें रोमांच बचा हुआ है!
हर गांव में कई टोले होते हैं. हरेक टोले में बच्चे होते हैं. जहां गांव बसा है, अक्सर उसके चारों तरफ खेत होते हैं. कहीं बांसों के विशाल झुरमुट, तो कहीं आम के बगीचे हैं. यह सब मिलकर जंगल का आभास कराता है. जंगल में ही वन-भोज का आयोजन होगा. कैसे होगा. क्या-क्या बनेगा.
किसको-किसको साथ लेंगे. किससे कितना पैसा लेंगे. पहली जनवरी से पहले हरेक टोले के बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद इसी में उलझे रहते हैं. पहली जनवरी तक सबको पता चल जाता है कि ये लोग कहां वन-भोज करेंगे. बड़ी उम्र के लोग ठिठोली करते हैं कि बेटा, हमे भी न्योता दे दो! योजना बना रहे बच्चे नहीं-नहीं करते दूसरी भाग जाते हैं. कल कोई कह रहा था कि पुरबिया टोले के बच्चे वहां आम के बगीचे में तंबू लगायेंगे. जबकि पछवारी टोले के बच्चों ने बांस के झुरमुट को चुना है.
बारह बच्चों (लड़के) का एक ग्रुप बना है. सारे बच्चे दस-दस के नोट इकट्ठा कर रहे हैं. एक सौ बीस रुपये में वे कैसे क्या करेंगे, यह जानना दिलचस्प है!
बच्चों ने गांव की एक बड़ी लड़की को अपनी समस्या बतायी है. लड़की ने उसकी मदद करने का आश्वासन दिया है और लिस्ट भी फाइनल कर दिया है. तय हुआ कि हलवा-पूड़ी, सब्जी, सेवई और पापड़ बनेगा. एक लड़का अपने घर से छोटा वाला गैस लायेगा. आटा भी सब अपने घर ही से लायेंगे. नहीं तो इतने कम पैसे में क्या होगा. बिट्टू के पापा की सब्जी की खेती है.
बिट्टू ने कहा है कि सब्जी वह लायेगा. विक्की एक साड़ी लायेगा. लड़की को तंबू बनाना आता है. सबका यह भी विचार है कि खाना बनाने से पहले एक बार चाय बनेगी. जब वन-भोज होता है, कई लोग देखने आ जाते हैं. जो भी आयेंगे उन्हें चाय दिया जायेगा. लोग भी क्या याद करेंगे! इसके लिए दूध, चीनी और चाय की पत्ती चाहिए. मोहित की मां कह रही थीं कि आधा किलो दूध वे देंगी. चीनी और चाय पत्ती भी थोड़ा-थोड़ा सब अपने घर से ले आयेंगे.
वन-भोज के लिए हो रही मीटिंग में रोज ही इतनी चर्चा कर लेने के बाद इस बात पर फोकस किया जा रहा है कि यह सब तो उस दिन की बात है. अभी तो सबको दस-दस रुपये का इंतजाम करना है. यह रकम आपके लिए मामूली होगी, पर बच्चों को तो दिमाग लगाना पड़ेगा कि दस रुपये का जुगाड़ कैसे होगा? कुछ बच्चे सोच रहे हैं कि मम्मी से एक किलो धान मांग लेंगे. दुकानदार एक किलो धान का बारह रुपयेे देता है!

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