24.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कर्ज में डूबी दुनिया

तेते पांव पसारिये, जेती लांबी सौर. यह मानव सभ्यता की बुनियादी समझ रही है, परंतु लगता है कि आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं ने इसे भुला दिया है. एक दशक पहले दुनिया को कर्जों के बोझ के कारण गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था और उसके बाद सरकारों की कोशिश थी कि यह बोझ कमतर हो […]

तेते पांव पसारिये, जेती लांबी सौर. यह मानव सभ्यता की बुनियादी समझ रही है, परंतु लगता है कि आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं ने इसे भुला दिया है. एक दशक पहले दुनिया को कर्जों के बोझ के कारण गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था और उसके बाद सरकारों की कोशिश थी कि यह बोझ कमतर हो जाये.
लेकिन ऐसा नहीं हो सका. बीते दस सालों में वैश्विक कर्ज 167 ट्रिलियन डॉलर (वित्तीय संस्थाओं को अलग कर दें, तो 113 ट्रिलियन डॉलर) से बढ़कर 247 ट्रिलियन डॉलर (वित्तीय संस्थाओं को अलग कर दें, तो 187 ट्रिलियन डॉलर) हो चुका है. यह दुनिया के कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) से 320 फीसदी यानी करीब तीन गुना ज्यादा है. बीते दशक की तुलना में यह बढ़त 40 फीसदी अधिक है. भारत का कर्ज हमारे जीडीपी से करीब 125 फीसदी और चीन का कर्ज उसके जीडीपी से 247 फीसदी ज्यादा है.
पूरी दुनिया में हर स्तर (घरेलू, कॉरपोरेट एवं सरकारी) पर कर्जे बढ़े हैं. यह संकट गंभीर है. आर्थिक मंदी से उबरने और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की कोशिश में खतरों से भरी परियोजनाओं या कारोबार में धन लगाया गया तथा खर्च कम करने के लिए सरकारों ने कल्याणकारी योजनाओं में निवेश में कटौती की. निवेश और बचत की आय से कर्ज चुकौती एक रास्ता है, पर मुश्किल है कि उत्पादक क्रियाओं में निवेश का स्तर बहुत कम है.
व्यक्तिगत और पारिवारिक कर्ज का बड़ा हिस्सा उपभोग में खर्च हुआ है. कंपनियों ने ज्यादा धन शेयरों को खरीदने और दूसरी कंपनियों के अधिग्रहण में लगाया है. भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं तथा अमेरिका और यूरोप की विकसित अर्थव्यवस्थाएं रोजगार और आय में ठहराव से जूझ रही हैं.
तीन दशकों की आर्थिक गतिविधियां कर्ज पर आधारित रही हैं. बोझ कम करने की कोशिशों से आर्थिक विकास की गति के कुंद होने का खतरा भी है. कर्ज में डूबी कंपनियों और कर्ज देकर फंसे बैंकों को उबारने के नकारात्मक नतीजे भारत में देखे जा सकते हैं. फंसे हुए कर्ज की वैश्विक मात्रा चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 75 ट्रिलियन डॉलर तक जा पहुंची है.
भारत में निवेश कम होने के कारण सरकारी परिसंपत्तियां अपेक्षाकृत कम सृजित हुई हैं तथा दबाव में चल रही कंपनियों की संख्या भी अधिक है. साल 2013 में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को बड़ा झटका लगा था तथा भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की को डांवाडोल अर्थव्यवस्था कह दिया गया था.
तब चीन अधिक निर्यात और सरकारी परिसंपत्तियों के कारण वह झटका बर्दाश्त कर गया था. संकट की स्थिति में कर्ज के बोझ के कारण वित्तीय नीतियां बनाने में भी दिक्कत आ सकती है तथा अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल से नुकसान पहुंच सकता है. अनिश्चित राजनीति, व्यापार युद्ध और अशांति ने भी इस माहौल में योगदान दिया है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस संदर्भ में त्वरित पहल करनी होगी, अन्यथा जल्द ही किसी बड़ी मंदी का सामना हो सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें