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ताकि महागठबंधन न बने

नवीन जोशी वरिष्ठ पत्रकार naveengjoshi@gmail.com पिछले सप्ताह निजामाबाद (तेलंगाना) की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौंकानेवाला एक वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश या मायावती से कोई दिक्कत नहीं है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी या वाम दलों से कोई समस्या नहीं है. कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है, जिसको […]

नवीन जोशी

वरिष्ठ पत्रकार

naveengjoshi@gmail.com

पिछले सप्ताह निजामाबाद (तेलंगाना) की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौंकानेवाला एक वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश या मायावती से कोई दिक्कत नहीं है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी या वाम दलों से कोई समस्या नहीं है. कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है, जिसको इस देश से सदा के लिए मिटा देना चाहिए. उन्होंने कहा कि बाकी सब स्वीकार्य हैं. कांग्रेस को छोड़ अन्य दलों के साथ मिलकर हम काम कर सकते हैं.

साल 2013 से ही मोदी कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने की घोषणाएं करते रहे हैं, किंतु भाजपा-विरोधी दलों के प्रति यह प्यार नया है. उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस वर्तमान राजनीतिक स्थितियों में मोदी के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं.

इन राज्यों में कांग्रेस आज भाजपा की मुख्य विरोधी नहीं है. साल 2019 में अगर उत्तर प्रदेश में उन्हें अपनी सीटें बचानी हैं और बंगाल में भाजपा को बढ़त दिलानी है, तो सपा-बसपा और तृणमूल कांग्रेस को शत्रु नंबर एक मानना होगा. तब मोदी ने उन्हें स्वीकार्य क्यों कह दिया?

नरेंद्र मोदी चतुर-सुजान राजनीतिक नेता हैं. वे कोई भी बात, तथ्यात्मक हो या निराधार, बिना सोचे-विचारे नहीं कहते. चुनावी सभाओं में तो वे साधकर निशाना लगाते हैं. विरोधी को परास्त करने के लिए बातों-जुमलों के नये-नये तीर छोड़ते हैं. इसलिए निजामाबाद की चुनावी रैली में उन्होंने जो कहा, उसका विशेष मंतव्य होगा.

क्या मोदी यह कहना चाहते हैं कि 2019 में त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति होने पर भाजपा अखिलेश, मायावती और ममता से हाथ मिलाने को तैयार हैं? क्या उनके इस वक्तव्य में यह देखा जाये कि आम चुनाव के बाद उन्हें नये सहयोगी दलों की जरूरत पड़ सकती है? यानी उन्हें लगता है कि भाजपा या वर्तमान एनडीए पूर्ण बहुमत नहीं पानेवाला है?

निश्चय ही मोदी जैसे खांटी राजनेता और रणनीतिकार ऐसा संकेत कतई नहीं दे सकते. उन्हें सचमुच बहुमत न मिलने की आहट मिल रही हो, तब भी नहीं. यह तो अपनी कमजोरी जाहिर कर देने जैसा होगा. इसलिए मोदी ने निजामाबाद में जो कहा, वह कोई गहरी बात है.

गौर किया जाये कि तेलंगाना में कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी, भाकपा और तेलंगाना जन समिति का गठबंधन ‘प्रजाकुटुमी’ सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति के विरुद्ध चुनाव लड़ रहा है. भाजपा अकेले मैदान में है. इस गठबंधन को संभव बनानेवाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू हैं.

नायडू लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की पहल कर रहे हैं. नायडू साफ कहते हैं कि भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता की धुरी कांग्रेस ही हो सकती है.

जिस टीडीपी का जन्म कांग्रेस-विरोध के बीज से हुआ था, उसी का अब कांग्रेस के साथ आ जाना तेलंगाना और आंध्र में ही नहीं, बाकी देश में भी भाजपा के लिए खतरा बन सकता है. जल्दी ही भाजपा-विरोधी दलों के नेताओं की बैठक होनेवाली है.

ममता बनर्जी, अखिलेश और मायावती भी भाजपा विरोध का झंडा उठाये हुए हैं. इनमें मायावती को छोड़कर बाकी दो कांग्रेस को साथ लेने के इच्छुक हैं. नायडू उसके साथ आ ही चुके हैं. बिहार में लालू यादव की पार्टी कांग्रेस के साथ है ही. अगर यूपी, बिहार, बंगाल जैसे बड़े राज्यों में भाजपा के मुकाबले तगड़ा गठबंधन बनता है, तो उसे काफी नुकसान होने के आसार हैं.

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा बहुत मजबूत स्थिति में हैं. ऐसे ताकतवर क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस से गठबंधन होना भाजपा-विरोधी मोर्चे को राष्ट्रीय स्वरूप और ताकत देता है. इसके उलट क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में मजबूत होकर उभरे, तो भी उनकी कोई संयुक्त राष्ट्रीय ताकत नहीं बनती. जरूरत पड़ने पर भाजपा का उन्हें अपने साथ लेने का विकल्प भी बना रहेगा.

कांग्रेस इन दलों को जोड़नेवाली डोर बन गयी, तो भाजपा के मुकाबले राष्ट्रीय विकल्प बन सकता है. स्वाभाविक है, मोदी कभी नहीं चाहेंगे कि क्षेत्रीय दलों का ऐसा गठबंधन बने और कांग्रेस उसकी धुरी हो. इसलिए उनकी कोशिश है कि भाजपा-विरोधी ताकतवर क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूर ही रहें. इसलिए उनके प्रति थोड़ी नरमी दिखाना जरूरी है. इसलिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की तीखी आलोचना करते रहे मोदी को अब उन्हें स्वीकार्य कहना पड़ रहा है.

कांग्रेस को देश की समस्त बुराइयों की जड़ बताकर मोदी इन क्षेत्रीय दलों को सचेत करना चाहते हैं कि उसके साथ न खड़े हों. क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस से सावधान करनेवाली बातें मोदी पहले भी कहते रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहे दलों को कई बार याद दिलाया है कि कैसे वह पार्टी क्षेत्रीय नेताओं की उपेक्षा करती रही है.

राजनीति में कांग्रेसी वर्चस्व के दिनों में ये क्षेत्रीय दल राज्यों की उपेक्षा और दादागिरी का आरोप लगाकर उसका विरोध करते रहे हैं. कई क्षेत्रीय दलों का जन्म कांग्रेस-विरोध से हुआ है. कांग्रेस को किसी गठबंधन से दूर रखने के लिए मोदी इन्हीं अंतरविरोधों को प्रकारांतर से सामने रख रहे हैं.

क्षेत्रीय दल कभी जो आरोप कांग्रेस पर लगाया करते थे, वैसा ही विरोध अब राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी भाजपा को झेलना पड़ रहा है. हमारे संघीय ढांचे में किसी राष्ट्रीय दल की राजनीति की इस नियति के अपने कारण हैं. मोदीजी जो कह रहे हैं, उससे उनकी व्यग्रता ही प्रकट होती है. उनका सतत कांग्रेस भय बताता है कि उस पार्टी की जो जगह आज भाजपा ने ले ली है, वह वहां फिर काबिज हो सकती है.

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