Advertisement
भारत की स्थिति बेहतर
आर्थिक वृद्धि दर की बढ़वार किसी अर्थव्यवस्था की बेहतरी का एक पैमाना है. इसके लिए अंदरूनी तौर पर हमेशा सजग और तैयार रहना होता है. तैयारी के बूते ही कोई देश आर्थिक प्रतिस्पर्धा के वैश्विक मैदान में टिके रह सकता है. इस लिहाज से, भारत की स्थिति बड़ी आशाजनक नजर आ रही है. वर्ल्ड इकोनॉमिक […]
आर्थिक वृद्धि दर की बढ़वार किसी अर्थव्यवस्था की बेहतरी का एक पैमाना है. इसके लिए अंदरूनी तौर पर हमेशा सजग और तैयार रहना होता है. तैयारी के बूते ही कोई देश आर्थिक प्रतिस्पर्धा के वैश्विक मैदान में टिके रह सकता है.
इस लिहाज से, भारत की स्थिति बड़ी आशाजनक नजर आ रही है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने आर्थिक प्रतिस्पर्धा में सक्षमता को पैमाना बनाते हुए दुनिया के 140 देशों का एक सूचकांक जारी किया है. इस सूचकांक में भारत प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं के बीच 58वें स्थान पर है. पहले पर अमेरिका है, दूसरे पर सिंगापुर और तीसरे स्थान पर जर्मनी. लेकिन, 58वें स्थान पर भारत की मौजूदगी को साधारण नहीं कहा जा सकता है.
दरअसल, आर्थिक प्रतिस्पर्धा के मानकों पर भारत ने पिछले साल के मुकाबले पांच पायदान की तरक्की की है. रिपोर्ट के मुताबिक, आर्थिक रूप से ताकतवर माने जानेवाले समूह-20 के देशों में प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में सबसे तेज बढ़वार भारत की रही है. ब्रिक्स देशों में भी भारत की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति उम्मीद जगानेवाली मानी जायेगी. भारत इसमें चीन और रूस से तो पीछे है, लेकिन दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील से आगे. दक्षिण एशिया के मुल्कों के बीच भी आर्थिक प्रतिस्पर्धा के लिहाज से सबसे अग्रणी स्थिति भारत की मानी गयी है.
आर्थिक प्रतिस्पर्धा की क्षमता के मामले में, भारत को सबसे ज्यादा बढ़त देनेवाली बात साबित हुई है यहां मौजूद विशाल बाजार. शोध-अनुसंधान की गुणवत्ता ने भी भारत की ताकत में इजाफा किया है. साथ ही, देश में व्यवसाय की शुरुआत और बढ़वार के लिए स्थितियां पहले से ज्यादा अनुकूल हैं.
रिपोर्ट में चीन को 28वां स्थान मिला है, लिहाजा वह भारत से आर्थिक प्रतिस्पर्धा की क्षमता के मामले में दोगुना आगे है, लेकिन इसकी बड़ी वजह है चीन का शोध-अनुसंधान पर विशेष ध्यान देना. मंझोले दर्जे की अर्थव्यवस्थाओं के बीच चीन शोध-अनुसंधान पर सर्वाधिक निवेश करनेवाला देश है, जबकि भारत में इस पहलू पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है. व्यवसाय की वृद्धि के मामले में भारत में नौकरशाही अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम कारगर है.
हालांकि, आर्थिक प्रतिस्पर्धा की क्षमता के लिहाज से भारत की स्थिति आनेवाले दिनों में और बेहतर हो सकती है. दरअसल, देशों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता के आकलन के लिए रिपोर्ट में बुनियादी ढांचा, प्रौद्योगिक तैयारी, बाजार व श्रमबल के आकार और वित्त-व्यवस्था की मजबूती सरीखे बुनियादी मानकों के अतिरिक्त सेहत एवं शिक्षा की स्थिति को भी आधार बनाया गया था. सेहत और शिक्षा के मानकों पर भारत की स्थिति अभी दक्षिण एशिया के देशों में भी अग्रणी नहीं है.
वैश्विक भुखमरी सूचकांक के तथ्य हों या फिर वैश्विक मानव-विकास के सूचकांक के तथ्य- सबमें यह सामने आता है. आर्थिक प्रतिस्पर्धा की क्षमता में बढ़वार के लिए सेहतमंद और कुशल श्रमबल तैयार करना आदि भारत की प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए.
Advertisement