ताजमहल के मरमरी सौंदर्य को प्रदूषण दागदार बना रहा है और सरकार सुस्त है. इससे क्षुब्ध सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि या तो इमारत को सहेजा जाये या फिर इसे तोड़ दिया जाये.
तीन दशकों से अदालत संरक्षण के प्रयासों की निगरानी कर रही है, परंतु दुनियाभर में मशहूर ताजमहल पर जगह-जगह नीले-हरे धब्बे पड़ने लगे हैं. प्रशासन द्वारा तमाम नियम-कायदों को दरकिनार कर ताजमहल के आसपास के इलाकों में औद्योगिक गतिविधियों को मंजूरी दी जा रही है. यदि सरकार ताजमहल जैसी इमारत को नहीं बचा पाती है, तो फिर विरासत के बाकी प्रतीकों की हालत का अनुमान लगाया जा सकता है.
देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विविधता एवं समृद्धि के संरक्षण की लापरवाही का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि केंद्रीय बजट में संस्कृति मंत्रालय का हिस्सा एक फीसदी से भी कम है. वित्तीय अभाव और प्रशासनिक लचरता के कारण अधिकतर इमारतों की दशा बेहद खराब है. दो साल पहले सरकार ने बताया था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की निगरानी में आनेवाली 24 इमारतें और स्मारकें गायब हो चुकी हैं, जिनमें से करीब आधी उत्तर प्रदेश में हैं.
साढ़े तीन हजार से अधिक इमारतों-स्मारकों पर नजर रखने के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान से मदद लेने की भी व्यवस्था की गयी है. इसमें दो राय नहीं है कि रख-रखाव के लिए जिम्मेदार संस्कृति मंत्रालय और केंद्रीय संस्थाओं को मुस्तैद होना होगा तथा सरकार को जरूरी धन-संसाधन मुहैया कराना होगा. राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को भी जिम्मेदार होना चाहिए. शहरी विकास और निर्माण कार्यों की आड़ में कीमती धरोहरों पर बुलडोजर चलाने के मामले अक्सर प्रकाश में आते हैं.
बड़ी संख्या में इमारतें अतिक्रमण और अनधिकृत कब्जे का शिकार हैं. कई ऐसी जगहों को कूड़ेदान बना दिया गया है. इस साल जनवरी में लोकसभा ने नया कानून बना दिया कि अब ऐतिहासिक इमारत के सौ मीटर के भीतर भी निर्माण किया जा सकता है.
यह संशोधन इन धरोहरों के लिए खतरनाक हो सकता है. सितंबर, 2017 में सरकार ने इमारतों की देखभाल में निजी क्षेत्र की भागीदारी के उद्देश्य से एक कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की थी, जिसके तहत कुछ अहम इमारतों को व्यापारिक ब्रांडों से जोड़ा गया है. इस पहल की आलोचना यह की गयी है कि निजी क्षेत्रों को उन्हीं इमारतों से क्यों संबद्ध किया जा रहा है, जो देश की पहचान हैं तथा पर्यटन आदि से बड़ी धनराशि कमाने की क्षमता रखते हैं.
राष्ट्रीय महत्व की धरोहरों पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए तथा निजी क्षेत्र अन्य अहम विरासत को संभालने का जिम्मा ले सकता है. पर्यटन और सांस्कृतिक पहलों से धन कमाने और रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं. इस प्रयास में समाज और नागरिकों की सकारात्मक भूमिका भी होनी चाहिए. विरासत में मिलीं इमारतों को संरक्षित रखना और उनके महत्व को समझना राष्ट्र का कर्तव्य है.