युवराज, विश्व टी20 का फाइनल मैच खत्म होने के बाद जब तुम आसमान और जमीन को बारी-बारी देखते हुए, कमजोर कदमों से पवेलियन की ओर बढ़ रहे थे तो मेरे दिमाग में कई तसवीरें एक क्र म से दौड़ गयी. तुम लड़ रहे थे. क्रिकेट के मैदान पर नहीं, जेहनी तौर पर, अपने ही लोगों से. हाल-फिलहाल में तुमने कुछ नहीं जीता. पर टाइमलाइन पर थोड़ा ही पीछे जाता हूं तो तुम्हें उतना ही विजयी पाता हूं. तुम हमेशा एक विजेता, एक योद्धा रहे, पर फाइनल मैच के बाद तुम्हारे मैदान से वापस जाने में जो निराशा थी, उससे लगा कि तुम अपने ही देश से हार गये हो.
तुम्हारे घर के बाहर हुए प्रदर्शन और सोशल मीडिया के प्रलाप की खबरें तुम तक पहुंची होंगी. तुम्हें लगता होगा कि अपने ही लोग तुम्हारे दुश्मन क्यों हो गये हैं. सिर्फ एक दिन की गलती की वजह से, वह भी उस खेल में जो अनिश्चितताओं से भरा हुआ है. युवी, मैं इस कृतघ्न देश के बर्ताव के लिए तुमसे माफी मांगना चाहता हूं. यह स्वार्थी, भुलक्कड़ और क्रि केट को लेकर प्रतिक्रियावादी मुल्क है.
यह उस दौर को भूल जाता है जब अभ्यास सत्र में खून की उल्टियां करते हुए तुमने न जाने कितनी जीतों की बुनियाद रखी थी. यह भूल जाता है जब अपने भीतर पल रहे कैंसर के चलते तुम बीच मैदान पर खांसने तुम्हीं थे जिसने एक यूरोपीय तेज गेंदबाज की छह गेंदों पर छह छक्के जड़ कर भारतीय दर्शकों को भी सीना फुलाने का मौका दिलाया था. कैंसर से जीत कर अंतरराष्ट्रीय टीम में जगह बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं. तुम्हारा ही तो कहना है कि जब तक बल्ला चल रहा है, तब तक ठाठ है. उम्मीद और दुआ है कि तुम्हारे ठाठ जल्द ही लौटेंगे.
शशि शेखर बल, देवघर