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पूरब से प्यार, सुविधानुसार

।। कमलेश सिंह।। (इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक) सूरज पूरब में उगता है, पर ठहरता नहीं है. पश्चिमी देशों को हम कितना गरियायें और ‘चलो भाग चलें पूरब की ओर’ गायें, पर ताकते तो पश्चिम की ओर ही हैं सूरजमुखी. पूरब के देशों और पश्चिम के देशों में फर्क यही है. पूरब के […]

।। कमलेश सिंह।।

(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)

सूरज पूरब में उगता है, पर ठहरता नहीं है. पश्चिमी देशों को हम कितना गरियायें और ‘चलो भाग चलें पूरब की ओर’ गायें, पर ताकते तो पश्चिम की ओर ही हैं सूरजमुखी. पूरब के देशों और पश्चिम के देशों में फर्क यही है. पूरब के राज्यों को देख लीजिए. असम, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, उत्तर-पूर्व के सूबे. बहुत संपदा है, पर पिछड़ापन पीछा ही नहीं छोड़ता. सभी पश्चिमोन्मुखी हैं रोजगार के लिए. उत्तर प्रदेश के भीतर भी पूरब और पश्चिम का यही फर्क है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की व्यवस्था भले वही हो, पर अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक है. पूर्वाचल पीछे छूट गया है. अब चूंकि चुनाव के वक्त गरीबों, पिछड़ों की याद नेताओं को बहुत सताती है, सभी पार्टियों की नजर पिछड़े पूरब पर है. पश्चिम से नरेंद्र मोदी अपना घर छोड़ कर बनारस में बिराजे हैं. पूर्वाचल में 32 सीटें हैं और उनसे सटे बिहार की चालीस में से दस सीटों पर उसका साइड इफेक्ट है. पुरवा हवा चलती है, तो पुरानी चोट उभर आती है. इनको यहां अपनी हवा चलानी है. पिछड़ जाने की चोट जगानी है और उसे आशा की नयी घुट्टी पिलानी है.

एक अंग्रेज कह गये थे कि बनारस इतिहास और सभ्यताओं को छोड़िए, मिथकों से भी प्राचीन है. बाबा के प्राचीन घर में हर हर महादेव के साथ घर-घर मोदी के नये नारे लग रहे हैं. क्योंकि इस बार पूरब में कमल खिलाना है, और मोदी जी को बनारस के रास्ते ही दिल्ली जाना है. यह अंदाज बनारस जितना ही पुराना है. मुलायम सिंह भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूर्वी उत्तर प्रदेश आ गये. मुसलमानों का दर्द जगा गये. आजमगढ़ से लड़ेंगे, ताकि मोदी की हवा निकाल सकें. भाजपा और सपा दोनों पूरब को प्रगति का भरोसा दिला रहे हैं और चाह रहे हैं कि वोटर भरोसा करे, पर उनको पूरब पर भरोसा नहीं है. मुलायम पश्चिम में अपने भरोसे की मैनपुरी से भी लड़ रहे हैं. मोदी गुजरात में भी खड़े रहेंगे. पूर्वी दिल्ली से पुरबिया नायक-गायक मनोज तिवारी भाजपा के उम्मीदवार हैं, क्योंकि पूर्वाचल-बिहारियों के हिस्से में दिल्ली में भी पूर्वी दिल्ली है, जो पूरब की तरह खटता है पश्चिमवालों की फैक्ट्रियों में. हर चुनाव में उन्हें भी पटाया जाता है, पूरब की तरह.

पूरब के राज्य देश को बेहतरीन इंजीनियर देते हैं, अस्पतालों को डॉक्टर देते हैं, प्रशासनिक सेवाओं को अफसर देते हैं. ये सब मानते हैं कि शिक्षा के लिए जरूरी आधारभूत संरचना के अभाव में भी इन राज्यों की प्रतिभा अपना लोहा मनवाती है. ये भी सच है कि स्कूल भले संख्या में बढ़ गये हों, शिक्षा के स्तर में गिरावट ही आयी है. फिर भी सरस्वती को पूजनेवाले राज्यों से आनेवाली प्रतिभाओं में गिरावट नहीं आयी है. मेहनत के बल पर आगे बढ़नेवालों को यहां रोजगार नहीं मिलता और वे आगे बढ़ चुके राज्यों को और आगे बढ़ाने में योगदान देते हैं. जो पढ़ नहीं पाते, वे रिक्शा खींचते हैं दिल्ली में, टैक्सी चलाते हैं मुंबई में. नोएडा और पुणो में झुग्गियों में रह कर अट्टालिकाएं बनाते हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी को जोड़नेवाली सड़कों के निर्माण में बिहारी पसीने की असली कीमत ये देश कभी चुका नहीं पायेगा. फिर भी श्रम का सम्मान नहीं करनेवाले मुल्क में उनको दुत्कार का सामना है.

जब बिहार एक होता था, तो यह पंक्ति सबको रटी थी : बिहार एक समृद्ध राज्य है जहां गरीब लोग रहते हैं. बंटवारे के बाद बालू और बाढ़ बच गये. झारखंड की छाती चीर कर खनिज निकाल ले गये रॉयल्टी देकर. पंजाब की जमीन पर सोना उगे तो पंजाब का, झारखंड में जमीन के नीचे सोना हो, तो सिर्फ रॉयल्टी. कच्चा लोहा, कोयला यहां से भर कर जाते हैं और लोहे की नयी फैक्ट्री अगड़े राज्यों में लगती है. बिजली ग्रिड से कहीं भी ले जायी जा सकती है, पर कोयला ढो लेंगे, मजदूर भी यहीं के होंगे और बिजली की फैक्ट्री कहीं और लगेगी. उद्योग के स्रोत पर उद्योग नहीं लगे क्योंकि सबका बहाना था, बड़ी कंपनियों के हेडक्वार्टर नहीं खुले क्योंकि माहौल नहीं रहा. या तो माहौल बनाया नहीं गया, बिगड़ा तो सुधारा नहीं गया. आज जंगलों में बंदूकें उग आयी हैं. इतनी नाइंसाफियों के बाद विशेष दर्जा मांगनेवालों के साथ डील की कोशिश होती है. मानो हक नहीं, भीख दे रहे हों. ये होता इसलिए है कि दिल्ली को दर्द नहीं होता, पूरब के दर्द से. इनके यहां कोई बेंगलुरू, कोई पुणो, कोई हैदराबाद नहीं बन पाया. इनको तकनीक और उद्योग के पंख नहीं लगे. पूरब से मालगाड़ियों में भर कर कोयला रोज पश्चिम की ओर जाता है, ताकि वहां की रातें रंगीन रहें. जैसे कोयला जाता है, वैसे एमपी जाते हैं. जिससे संसद भरती है, जो पूरब की फिक्र हर चुनाव में करती है. पूरब से प्यार हो जाता है हर चुनाव में. पूरब जवाब नहीं मांगता. सूरज की बेवफाई का शिकवा नहीं करता. उगते सूरज को नमस्कार करता है.

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