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तेजस्वी के नेतृत्व पर राजद के अंदर सब कुछ ठीक नहीं, लालू की नहीं सुन रहे हैं रघुवंश, जानें पूरा मामला

पटना : कहते हैं सियासत में सत्ता की कमान अपने हाथ में होना काफी मायने रखता है. भले वह कमान पार्टी की ही क्यों न हो. भारतीय राजनीति में गठबंधन के दौर में एक दो दलों को छोड़ दें, तो बाकी क्षेत्रीय पार्टियों में कमोवेश एक चेहरा ही आगे रहता है और बाकी लोग पीछे […]

पटना : कहते हैं सियासत में सत्ता की कमान अपने हाथ में होना काफी मायने रखता है. भले वह कमान पार्टी की ही क्यों न हो. भारतीय राजनीति में गठबंधन के दौर में एक दो दलों को छोड़ दें, तो बाकी क्षेत्रीय पार्टियों में कमोवेश एक चेहरा ही आगे रहता है और बाकी लोग पीछे से सपोर्ट में रहते हैं. हालांकि, कभी-कभी इन पार्टियों में भी कोई सिद्धांत की राजनीति करने की बात कहने वाले नेता, बेबाकी से अपनी बात रख देते हैं, लेकिन होता वहीं है, जो पार्टी का मुखिया चाहता है. इन दिनों बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया और राजद सुप्रीमो लालू यादव कुछ ऐसी ही समस्याओं का सामना कर रहे हैं. लालू यादव ने राजनीति में शुरू से परिवार को प्रथम स्थान पर रखा. पलट कर पीछे के राजनीतिक घटनाक्रम को देखा जा सकता है. जुलाई, 1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी बना ली. चारा घोटाले में गिरफ्तारी तय हो जाने के बाद लालू ने मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. जब राबड़ी के विश्वास मत हासिल करने में समस्या आयी तो कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उनको समर्थन दे दिया.

लालू ने कहा-आज यूथ का जमाना है

बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि लालू सार्वजनिक मंच से फिरकापरस्तों, सांप्रदायिक ताकतों और सर्वहारा के लिए लड़ने की बात जरूर करते हैं. बात जब पार्टी और किसी पद तक पहुंचती है, तो लालू सबसे पहले उसकी संभावना अपने परिवार के सदस्यों में तलाशते हैं, उसके बाद ही वह बाहर देखते हैं. 1997 में पार्टी के राबड़ी के अलावा भी बहुत सारे योग्य नेता थे, जिन्हें सत्ता की कमान सौंपी जा सकती थी, लेकिन लालू ने ऐसा होने नहीं दिया. अब एक बार फिर पार्टी की कमान वह अपने छोटे बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सौंपना चाहते हैं. शुक्रवार को लालू ने पार्टी में मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी पर मीडिया से बातचीत में कहा कि तेजस्वी के बारे में मैं इसलिए नहीं कर रहा हूं वो मेरा बेटा है. तेजस्वी हमलोगों से काफी आगे है. बिहार की जनता तेजस्वी की भाषा और परफॉरमेंस को याद करते है. उन्होंने कहा आज यूथ का जमाना है. टिकट से लेकर सभी जगहों पर यूथ को आगे लाना होगा और यह लोग उत्साहित होकर पार्टी के लिए काम करेंगे.

रघुवंश का एतराज

इधर, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने के मुद्दे पर तकरार बढ़ती जा रही है. लालू का यह बयान भी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को शांत नहीं करा पाया, अपनी बेबाकी के लिए मशहूर वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने तत्काल बयान दिया. उन्होंने कहा तेजस्वी को अभी से सीएम कैंडिडेट घोषित करना उचित नहीं होगा. रघुवंश प्रसाद सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह उनकी पहचान खरा बोलने वाले में से है. तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट करने की बात आई तो इस पर भी उन्होंने खुलकर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता मालिक होती है और जनता ही तय करेगी कि कौन सीएम होगा. उन्होंने कहा कि अभी से इन बातों का कोई मतलब नहीं है और जब समय आयेगा तब इस मसले को देखा जायेगा. पत्रकारों द्वारा बार-बार पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सब अपनी अपनी बात बोल रहे हैं और सबों को बोलने की आजादी है. गौरतलब है कि राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने 2020 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी यादव को सीएम प्रत्याशी प्रोजेक्ट करने की बात कही थी. रामचंद्र पूर्वे द्वारा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित करने के बाद पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं का विरोध सामने आ चुका है. रघुवंश सिंह ने भी खुल कर कह दिया कि अभी से इन बातों का कोई मतलब नहीं है. तेजस्वी को सीएम प्रोजेक्ट करने के मसले को उन्होंने झंझटिया तक करार दे दिया. झंझटिया का मतलब सीएम कैंडिडेट का मुद्दा झंझट वाला है.

सिद्दीकी ने रखी अपनी बात

इससे पूर्व, राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने विरोध जताया था. अब्दुल बारी ने खुलकर भले ही उम्मीदवारी को नकारा नहीं था लेकिन उन्होंने भी यह बात कही थी कि अभी से सीएम कैंडिडेट पद पर चर्चा नहीं हो सकती है. अब्दुल बारी सिद्दीकी के बाद रघुवंश सिंह का बयान मायने रखता है. अब्दुल बारी सिद्दीकी पार्टी के बड़े मुस्लिम नेता हैं. साफ-सुथरी छवि के अब्दुल बारी सिद्दीकी संयमित बोलते हैं और काफी गंभीर मिजाज के नेता माने जाते हैं. अब्दुल बारी सिद्दीकी को अपने पाले में करने के लिए नीतीश कुमार ने काफी प्रयास किया था. एक समय अब्दुल बारी सिद्दीकी को राजद में हुई टूट का अगुआ माना जा रहा था लेकिन सिद्दीकी राजद में बने रह गए.

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