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Section 377: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, दुनियाभर की मीडिया ने दिल खोलकर किया स्वागत

-72 देशों में समलैंगिकता अब भी अपराध, 25 में नहीं-नीदरलैंड ने दिसंबर 2000 में समलैंगिक शादियों को सही करार दिया थानयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 25 अन्य देशों के साथ जुड़ गया, जहां समलैंगिकता वैध है. लेकिन, दुनिया भर में […]

-72 देशों में समलैंगिकता अब भी अपराध, 25 में नहीं
-नीदरलैंड ने दिसंबर 2000 में समलैंगिक शादियों को सही करार दिया था
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 25 अन्य देशों के साथ जुड़ गया, जहां समलैंगिकता वैध है. लेकिन, दुनिया भर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं, जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है. उनमें 45 देश भी हैं, जहां महिलाओं का आपस में यौन संबंध बनाना गैर कानूनी है. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को भादंसं की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन के अनुसार आठ ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है और दर्जनों ऐसे देश हैं, जहां इस तरह के संबंधों पर कैद की सजा हो सकती है. जिन कुछ देशों में समलैंगिक संबंध वैध ठहराये गये हैं, उनमें अर्जेंटीना, ग्रीनलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आॅस्ट्रेलिया, आइसलैंड, स्पेन, बेल्जियम, आयरलैंड, अमेरिका, ब्राजील, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा शामिल हैं.

विवाह को कानूनी रूप देने का सरकार करेगी विरोध
सरकार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि दो समलैंगिक के बीच आपसी सहमति से बनाया जाने वाला यौन संबंध ठीक है, लेकिन सरकार उनके बीच विवाह को कानूनी रूप देने की किसी भी मांग का विरोध करेगी. ऑफ द रिकाॅर्ड उन्होंने कहा कि रूढ़िवादी हिंदुओं को सत्तारूढ़ भाजपा का मजबूत समर्थक के तौर पर देखा जाता है.

समलैंगिकता एक आनुवंशिक दोष
समलैंगिकता एक आनुवंशिक दोष है. यह समाज में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से आपकी स्थिति को प्रभावित नहीं करता है. समलैंगिकों के बीच संबंध को अपराध नहीं करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह प्राइवेट रूप से किया जाता है.
सुब्रमण्यम स्वामी

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प्रकृति और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ
समलैंगिकता प्रकृति, धर्म और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ है. इसको इजाजत नहीं दी जानी चाहिए थी. कुछ तत्वों के शोर-शराबे को आधार बनाकर पूरे समाज को व्यावहारिक परेशानी में नहीं डाला जा सकता. इससे समाज में दिक्कतें पैदा होंगी.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद

संघर्षरत लोगों के लिए उम्मीद की किरण
फैसला भारतीय इतिहास के एक काले अध्याय का द्वार बंद करता है. यह लाखों लोगों के लिए समानता के नये युग का प्रतीक है. आज की यह जीत समुदाय के तीन दशक के संघर्ष में एक मील का पत्थर है. शादी, गोद लेने, उत्तराधिकार के लिए संघर्ष जारी रहेगा.

एमनेस्टी इंटरनेशनल

विश्व मीडिया ने दिल खोलकर किया स्वागत

वाशिंगटन पोस्ट : इस फैसले से दुनिया भर में समलैंगिक अधिकारों को बढ़ावा मिलेगा. यह फैसला भारत में तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश को दिखाता है.

न्यू यॉर्क टाइम्स : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में समलैंगिक अधिकारों की जीत, फैसले ने वर्षों से चल रही कानूनी लड़ाई को खत्म कर दिया.

ह्यूमन राइ्टस वाच : इस फैसले के बाद अन्य देशों को भी प्ररणा मिलेगी कि वे समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर अभी तक मौजूद औपनिवेशिक कानून को खत्म करें.

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संरा प्रमुख ने फैसले का किया स्वागत
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस ने समलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध ठहराने वाले धारा 377 के एक हिस्से को समाप्त करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया. गुतारेस ने ट्वीट किया, ‘‘भेदभाव और पूर्वाग्रह हमेशा ही’तर्कहीन, अनिश्चित और स्पष्ट रूप से मनमाना’ है जैसा कि प्रधान न्यायाधीश ने कहा है. मैं भारत के शीर्ष अदालत के इस फैसले का स्वागत करता हूं, प्यार की जीत.” वहीं यूएनएआईडीएस ने भी इस फैसले का स्वागत किया.

17 वर्षों तक कोर्ट में चला मामला

2001

नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका की दाखिल

2004

सितंबर : हाइकोर्ट ने याचिका खारिज की

दिसंबर: मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

2006

03 अप्रैल : सुप्रीम कोर्ट ने मामला दिल्ली हाइकोर्ट को वापस भेजा

2008

18 सितंबर : केंद्र ने हाइकोर्ट से वक्त मांगा, याचिका नामंजूर, अंतिम बहस शुरू

07 नवंबर : कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

2009

02 जुलाई : हाइकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया

09 जुलाई : फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गयी चुनौती

2012

15 फरवरी : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दिन प्रतिदिन के हिसाब से सुनवाई शुरू की

2013

11 दिसंबर : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाइकोर्ट के 2009 के फैसले को रद्द किया

20 दिसंबर : केंद्र ने फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दाखिल की

2014

28 जनवरी : सुप्रीम कोर्ट का फैसले की समीक्षा से इनकार

2016

02 फरवरी : सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता मामले को पांच जजों वाली पीठ के पास भेजा

2017

24 अगस्त : निजता का अधिकार, संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित

2018

08 जनवरी : सुप्रीम कोर्ट दोबारा विचार करने पर सहमत

10 जुलाई : संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की

11 जुलाई : केंद्र ने निर्णय सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ा

17 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

06 सितंबर : धारा 377 के एक वर्ग को अपराध के दायरे से बाहर रखने का फैसला

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