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मोदी-ट्रंप मुलाकात दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में अमेरिका के दौरे पर होंगे. इस अमेरिकी दौरे की खास बात यह होगी कि उनकी मुलाकात नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पहली बार होगी. उनकी यह पहली मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण है. विश्व के दोनों लोकतांत्रिक देशों के नेताओं की मुलाकात पर नजर लगी […]

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में अमेरिका के दौरे पर होंगे. इस अमेरिकी दौरे की खास बात यह होगी कि उनकी मुलाकात नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पहली बार होगी. उनकी यह पहली मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण है. विश्व के दोनों लोकतांत्रिक देशों के नेताओं की मुलाकात पर नजर लगी हुई है एवं यह भी माना जा रहा है कि द्विपक्षीय संबंधों के अलावा विश्व राजनीति के मुद्दों पर भी विचार विमर्श होगा.

यदि शीत युद्ध के अंत के बाद भारत-अमेरिका के संबंधों का एक विश्लेषण किया जाये, तो स्पष्ट होगा कि इन संबंधों में बहुत ही गुणात्मक परिवर्तन आया है. भारत के आर्थिक सुधारों तथा तकनीकी तरक्की – सूचना क्रांति, अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति, भारतीय बाजार की क्षमता इत्यादि से भारत के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन देखा गया है.

प्रधानमंत्री मोदी अपने विदेश दौरों में भारत के आर्थिक सुधारों तथा सरकार द्वारा उसको प्रोत्साहित करने की नीतियों की चर्चा करते हैं. भारत में उभरती अपार संभावनाओं को दुनिया के सामने रखने का प्रयास करते हैं. जैसे कि ‘मेक इन इंडिया’ एक महत्वपूर्ण तथा व्यापक प्रोग्राम है एवं देश की प्रगति के लिए अतिआवश्यक भी है. भारत इस संबंध में सहयोग का भरपूर प्रयास करता दिख रहा है. अमेरिका भी भारत की आर्थिक प्रगति के प्रति एक सकारात्मक सोच रखता है. दोनों देशों ने आर्थिक संबंधों को बढ़ाने का प्रयास किया है.

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी विदेश नीति में एक परिवर्तन का संकेत मिल रहा है. यदि ट्रंप के चुनावी प्रचार के दौरान व्यक्त किये विचार तथा राष्ट्रपति बनने के बाद की नीतियों का विश्लेषण किया जाये, तो यह संकेत मिलता है कि राष्ट्रपति ने पूरे अमेरिकी विदेश नीति के मुद्दे को एक नये तरह से समझने का प्रयास किया है.

एक तरह से उन्होंने बदली हुई विश्व राजनीतिक परिदृश्य में रखने का प्रयास किया है. राष्ट्रपति ट्रंप के विचार नाटो के संबंध में सकारात्मक नहीं थे. चुनाव के दौरान उन्होंने इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाये. पुन: उन्होंने दूसरे सदस्य देशों से ज्यादा योगदान करने को कहा. नाटो का यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था में प्रमुख स्थान है. राष्ट्रपति के विचारों तथा नीतियों से यूरोपीय देशों में एक असमंजस की स्थिति बनी हुई है. पूर्वी यूरोप के देशों में नाटो का एक महत्वपूर्ण स्थान है. उसकी सुरक्षा व्यवस्था एवं रणनीति कैसे तय होती है, यह समय से पता लग पायेगा.

फन फैलाता आतंकवाद भी विश्व बिरादरी के लिए एक बड़ी चुनौती है. आतंकवाद से दुनिया का हर एक देश कम या ज्यादा प्रभावित है. नये-नये तरीकों से बढ़ते आतंकी हमले विश्व के देशों की सुरक्षा को नयी चुनौतियां देते हैं. पश्चिम एशिया, अफगानिस्तान के राजनीतिक माहौल अस्थिर ही हैं. पश्चिम एशिया की राजनीति एक तरह से जटिल होती जा रही है. अफगानिस्तान में असुरक्षा का माहौल बना हुआ है. 15 सालों से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बल एवं 2014 के बाद उसके सहयोग से अफगान राष्ट्रीय बल वहां एक पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था में पूरी तरह से सफल नहीं रहे हैं. एक संक्षिप्त विश्लेषण के बाद यह पता चलता है कि क्षेत्रीय राजनीति तथा विश्व मुद्दों जैसे सुरक्षा, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन इत्यादि विश्व को चुनौती दे रहे हैं एवं इसको सुलझाने तथा लड़ने के लिए विश्व सहयोग की आवश्यकता है.
राष्ट्रपति ट्रंप तथा प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात इस विश्व राजनीतिक परिस्थितियों में होगी. द्विपक्षीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा होगी. दोनों तरफ से अपेक्षा यही की जा रही है कि दोनों देशों के संबंधों में आये एक सकारात्मक परिवर्तन, व्यापकता तथा बढ़ती समझ को जारी रखा जा सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने की बात करेंगे. दूसरे, यह भी माना जा रहा है कि सुरक्षा के संबंध में दोनों नेताओं में बातचीत होगी. आतंक के साथ कड़ाई से लेकर भारत में ‘मेक इन इंडिया’ को कैसे सहयोग किया जाये, चर्चा के बिंदु हो सकते हैं. यह कहना उचित ही होगा कि आतंक के खिलाफ सैन्य तथा राजनीतिक कार्यवाही, दोनों की आवश्यकता है. अफगानिस्तान तथा पश्चिम एशिया में अस्थिरता से भारत चिंतित होगा. अफगानिस्तान में अस्थिरता भारत की सुरक्षा को प्रभावित करता है. पश्चिम एशिया भी आर्थिक तथा ऊर्जा के संदर्भ में महत्वपूर्ण है. दोनों जगहों पर अमेरिकी नीति की अहम भूमिका है. अत: भारत के साथ इस पर चर्चा हो सकती है. यदि दोनों नेताओं के बीच बातचीत के संदर्भ में देखा जाये, तो यह भी महत्वपूर्ण है कि दोनों के बीच समझ कैसे विकसित होती है. वीजा के मुद्दे और एच1बी पर भी भारत अपनी चिंता जाहिर कर सकता है. इसके अलावा, पेरिस जलवायु समझौता से अमेरिका बाहर हो चुका है. लेकिन, भारत ने अपने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अपनी आस्था व्यक्त की है. बहरहाल, दोनों नेताओं की पहली मुलाकात आनेवाले दिनों में दोनों देशों के संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है.
डॉ दिनोज कुमार
यूरोपीय मामलों के जानकार

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