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हर साल 25 मिलीमीटर के हिसाब से डूब रहा है भारत का यह शहर, क्या तैयार हो रहा दूसरा जोशीमठ!

शोध कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े पैमाने पर भूजल शोधन से इसकी धार ऊपर की ओर हो जाती है. वहीं, छिद्र कम होने के कारण तल पर दबाव पड़ता है. इस कारण जमीन धंसने लगती है. इसके अलावा जमीन में दरार भी पड़ जाती है.

उत्तराखंड का जोशीमठ शहर धंस रहा है. शहर में बने घर, सड़क और इमारत समेत सब कुछ धरती में समा रहा है. लेकिन क्या यह आंख खोलने वाली सच्चाई सिर्फ उत्तराखंड के जोशीमठ के लिए है. आज से करीब दो साल पहले एक स्टडी की रिपोर्ट आई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि गुजरात के अहमदाबाद की जमीन भी हर साल कुछ मिलीमीटर धंस रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने अपनी जांच में पाया है कि अहमदाबाद की जमीन हर साल 25 मिमी धंस रही है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंपीय अनुसंधान संस्थान (आईएसआर) के विशेषज्ञ लगातार जमीन के धंसने की निगरानी कर रहे हैं. अपनी जांच में विशेषज्ञों ने पाया कि 25 मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से इलाके की जमीन धंस रही है. भू धंसान मुख्य रूप से दक्षिण पूर्वी और पश्चिमी भूभागों में देखने के मिल रहा है. शहर के घोड़ासर, वटवा और हाथीजन इलाके में हर साल 20 से 25 मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब के धंसान हो रहा है. घुमामा और बोपन इलाके में भी 15 मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से धंसान देखने को मिला है.

अपनी शोध में विशेषज्ञों की टीम ने पाया कि अहमदाबाद के मध्य पूर्व और मध्य पश्चिम के कुछ और इलाकों में बहुत मंद गति से सालाना 2 से आठ मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से अवतलन हो रहा है. शोध कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े पैमाने पर भूजल शोधन से इसकी धार ऊपर की ओर हो जाती है. वहीं, छिद्र कम होने के कारण तल पर दबाव पड़ता है. इस कारण जमीन धंसने लगती है. इसके अलावा जमीन में दरार भी पड़ जाती है.  

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गौरतलब है की इसी तरह के हालात फिलहाल उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है. जहां जोशीमठ शहर में सड़कों पर दरार आ गयी हैं. इमारतें टूट रही हैं. इलाके के लोगों को वहां से हटाकर दूसरी जगह पर शिफ्ट किया गया है. इसके अलावा प्रशासन वहां बने घरों, जो रेड जोन में हैं, उन्हें तोड़ रहा है. ऐसे में अहमदाबाद के हालात इस तरह के न हो इसके लिए जरूरी है कि अभी से ही ऐहतिया बरती जाए. 

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