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‘योग जीवन को दिव्य बनाने का व्यावहारिक मार्ग’, नोएडा आश्रम में स्वामी चिदानन्द गिरि ने सत्संग के दौरान कहा

स्वामीजी ने कहा, “हम बैठकर ध्यान करते हैं और हमें अनुभव होता है कि हम जानते हैं कि किसी परिस्थिति में कौन से सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है. जब हम अनेक वर्षों और अनेक दशकों तक क्रिया का अभ्यास करते रहते हैं, तो हमारी आत्मा के भीतर छिपी गुप्त एवं सुप्त शक्तियां जाग्रत हो जाती हैं.

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के नोएडा आश्रम में “क्रियायोग की रूपान्तरकारी शक्ति” विषय पर एक आध्यात्मिक सत्संग का आयोजन किया गया. इसमें 1250 से भी अधिक भक्तों और मित्रों ने भाग लिया. इस दौरान YSS/SRF के अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख, स्वामी चिदानन्द गिरि मुख्य वक्ता के रूप से मौजूद थे. बता दें कि इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण भी किया गया. इस दौरान स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि क्रियायोग के अभ्यास और उसके द्वारा उत्पन्न स्थिर एवं निश्चल अवस्था में अपनी चेतना को केन्द्रित करने से अन्तर्ज्ञान का विकास होना प्रारम्भ हो जाता है.

‘सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता’

स्वामीजी ने कहा, “हम बैठकर ध्यान करते हैं और हमें अनुभव होता है कि हम जानते हैं कि किसी परिस्थिति में कौन से सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है. जब हम अनेक वर्षों और अनेक दशकों तक क्रिया का अभ्यास करते रहते हैं, तो हमारी आत्मा के भीतर छिपी गुप्त एवं सुप्त शक्तियां जाग्रत हो जाती हैं. आगे उन्होंने बताया कि हमारे भीतर अनेक क्षमताएं है जिनसे अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि क्रिया से इच्छाशक्ति, सफलता प्राप्त करने की शक्ति, एकाग्रता की शक्ति, वर्तमान संसार के नकारात्मक प्रभावों का प्रतिरोध करने की शक्ति, और प्राणशक्ति एवं दिव्य जीवन के ब्रह्माण्डीय सागर का आवश्यकतानुसार प्रयोग करने की शक्ति जाग्रत होती है, जिनके फलस्वरूप शरीर, मन, और आत्मा का आरोग्य प्राप्त होता है.”

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भारत ने आदर्श-जीवन की एक वास्तविक कला निर्धारित की

साथ ही परमहंस योगानन्द के शब्दों को याद करते हुए उन्होंने कहा, “प्राचीन काल से, भारत ने आदर्श-जीवन की एक वास्तविक कला निर्धारित की थी, जिसमें प्रत्येक मनुष्य का सम्पूर्ण एवं सन्तुलित विकास सम्मिलित था. भारत का व्यावहारिक दर्शन यह प्रदर्शित करता है कि मनुष्य की सर्वोच्च आवश्यकताऐं हैं : पहली, त्रिविध मानवीय कष्टों—भौतिक, मानसिक, और आध्यात्मिक—से स्थायी मुक्ति; और दूसरी, नित्य-नवीन-आनन्द की सकारात्मक प्राप्ति.”

“योगी कथामृत” की हार्डकवर प्रति (Hardcover) का विमोचन

इस विशेष समारोह में स्वामी चिदानन्दजी, YSS/SRF के अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख, ने “Autobiography of a Yogi” के हिन्दी संस्करण, “योगी कथामृत” की हार्डकवर प्रति (Hardcover) का विमोचन भी कियाl बताया जाता है कि यह पुस्तक साधक को आंतरिक जीवन के रूपांतरण की यात्रा, आध्यात्मिक खोज और रोमांच की दुनिया में ले जाती है. साथ ही असाधारण जीवन का जीवंत लेखन, प्राचीन योग-विज्ञान और ध्यान की परंपरा का गहन परिचय देती है.

जनवरी से भारत के वाईएसएस आश्रमों की यात्रा

बता दें कि स्वामीजी जनवरी माह से भारत के वाईएसएस आश्रमों की यात्रा कर रहे हैं. वे श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा सिखाए गये ध्यान के क्रियायोग विज्ञान पर सत्संग कर रहे हैं. एमबीए करने के बाद आईटी सेक्टर में नौकरी करनेवाले फरीदाबाद निवासी एक युवा मैनेजर ने साझा किया कि उन्होंने इस सत्संग से क्या सीखा, “स्वामीजी ने बताया कि राजयोग की इस प्रविधि के अभ्यास के द्वारा हम अपने कर्मों के बीजों को कैसे भस्म कर सकते हैं. और यह भी समझाया कि आधुनिक जीवन के उतार-चढ़ावों से कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं.”

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युवा मनोचिकित्सक ने कहा- भक्ति का विकास करने में मदद मिली

अहमदाबाद के एक युवा मनोचिकित्सक ने कहा, “मैं पिछले चार वर्षों से क्रियायोग का अभ्यास कर रही हूँ. इससे मुझे अन्तर्मुखी होने और भक्ति का विकास करने में सहायता प्राप्त हुई है. जिसके कारण मेरे जीवन में सन्तुलन के साथ ही सुरक्षा की भावना भी आयी है. यह बदलती हुई परिस्थितियों में भी अपरिवर्तित रहती है.” योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप, दोनों आध्यात्मिक संस्थाओं की स्थापना, विख्यात आध्यात्मिक उत्कृष्ट पुस्तक योगी कथामृत (ऑटबाइआग्रफी ऑफ़ ए योगी) के लेखक, विश्व-प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा 100 वर्षों से भी अधिक पूर्व की गई थी.

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