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डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन, केंद्रीय कानून की मांग

doctors strikedoctors strike doctors protest today doctors protest news doctors protest in india डॉक्टरों ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए केंद्रीय कानून की मांग की और इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (एफएआर्एमए) के डॉक्टरों के समूह ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मुख्य गेट पर खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया.

देश में कोरोना संक्रमण के दौरान कई राज्यों में डॉक्टरों के खिलाफ हुई हिंसा की खबरें सामने आयी. लगातार हो रही घटनाओं को लेकर आईएमए की ओर से आज देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया गया. दिल्ली में भी डॉक्टरों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल के मद्देनजर विरोध प्रदर्शन किया.

डॉक्टरों ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए केंद्रीय कानून की मांग की और इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (एफएआर्एमए) के डॉक्टरों के समूह ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मुख्य गेट पर खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया.

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डॉक्टरों पर हो रही हिंसा को लेकर विरोद प्रदर्शन कर रहे एफएआईएमए के संस्थापक डॉ मनीष जांगरा ने कहा, एम्स आरडीए (रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन) इस प्रदर्शन का हिस्सा नहीं है लेकिन आईएमए और एफएआईएमए इस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं. इस विरोध प्रदर्शन में करीब 3.5 लाख डॉक्टर हिस्सा लेंगे.

आईएमए ने इस पूरे मामले पर पहले भी बयान जारी किया है जिसमें उन्होंने डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के विरूद्ध केंद्रीय की कानून की मांग की है. 2019 के तहत ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला के लिए 10 साल की जेल की सजा के प्रावधान की मांग की गयी है जिसका गृह मंत्रालय ने यह कहकर विरोध जताया है कि यह विशेष कानून संभव नहीं है क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है.

उन्होंने कहा, ‘‘पीसीपीएनडीटी कानून और क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट जैसे कई केंद्रीय स्वास्थ्य कानून हैं. वर्तमान में 21 राज्यों में स्थानीय कानून हैं लेकिन हम हिंसा से डॉक्टरों की रक्षा के लिए मजबूत केंद्रीय कानून की मांग कर रहे हैं.”असम के होजल में एक जून को उदाली मॉडल अस्पताल में कोविड-19 और निमोनिया से ग्रस्त एक मरीज की मौत के बाद उसके तीमारदारों ने अस्पताल पर हमला किया था.

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बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले में संज्ञान लेते हुए असम सरकार और राज्य पुलिस के प्रमुख को कथित हमले के संबंध में जांच का निर्देश दिया था और मामले में ‘‘जरूरी, दंडात्मक कार्रवाई” करने को कहा था .

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